जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 81
प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्य बुजुर्ग बच्चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से ‘सेहत टाइम्स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्वास्थ्य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…
प्रस्तुत है 81वीं कहानी – बूढ़ा पिता
गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे और बहू के साथ रहता था। परिवार सुखी-संपन्न था किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी।
बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा-खासा नौजवान था आज बुढ़ापे से हार गया था, चलते समय लड़खड़ाता था लाठी की जरुरत पड़ने लगी, चेहरा झुर्रियों से भर चुका था बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहा था।
घर में एक चीज़ अच्छी थी कि शाम को खाना खाते समय पूरा परिवार एक साथ टेबल पर बैठ कर खाना खाता था।
एक दिन ऐसे ही शाम को जब सारे लोग खाना खाने बैठे। बेटा ऑफिस से आया था भूख ज्यादा थी सो जल्दी से खाना खाने बैठ गया और साथ में बहू और एक बेटा भी खाने लगे।
बूढ़े हाथ जैसे ही थाली उठाने को हुए थाली हाथ से छिटक गयी थोड़ी दाल टेबल पर गिर गयी।
बहू-बेटे ने घृणा दृष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाने में लग गए। बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथों से खाना खाना शुरू किया तो खाना कभी कपड़ों पर गिरता, कभी जमीन पर।
बहू ने चिढ़ते हुए कहा – हे राम कितनी गन्दी तरह से खाते हैं मन करता है इनकी थाली किसी अलग कोने में लगवा देते हैं, बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो।
पोता यह सब मासूमियत से देख रहा था। अगले दिन पिता की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गयी।
पिता की डबडबाती आँखें सब कुछ देखते हुए भी कुछ बोल नहीं पा रहीं थी। बूढ़ा पिता रोज की तरह खाना खाने लगा, खाना कभी इधर गिरता कभी उधर।
छोटा बच्चा अपना खाना छोड़कर लगातार अपने दादा की तरफ देख रहा था।
माँ ने पूछा क्या हुआ बेटे तुम दादा जी की तरफ क्या देख रहे हो और खाना क्यों नहीं खा रहे।
बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला – माँ मैं सीख रहा हूँ कि वृद्धों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जाओगे तो मैं भी आपको इसी तरह कोने में खाना खिलाया करूँगा।
बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही बेटे और बहू दोनों काँप उठे शायद बच्चे की बात उनके मन में बैठ गयी थी क्योंकि बच्चे ने मासूमियत के साथ एक बहुत बड़ा सबक दोनों लोगों को दिया था।
बेटे ने जल्दी से आगे बढ़कर पिता को उठाया और वापस टेबल पर खाने के लिए बिठाया और बहू भी भाग कर पानी का गिलास लेकर आई कि पिताजी को कोई तकलीफ न हो ।
शिक्षा माँ-बाप इस दुनिया की सबसे बड़ी पूँजी हैं आप समाज में कितनी भी इज्जत कमा लें या कितना भी धन इकट्ठा कर लें लेकिन माँ बाप से बड़ा धन इस दुनिया में कोई नहीं है यही इस कहानी की शिक्षा है।