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भारत पारंपरिक चिकित्सा की वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध

-नयी दिल्ली में हो रहे तीन दिवसीय सम्मेलन के बारे में लखनऊ में रीजनल आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने आयोजित की प्रेस वार्ता

सेहत टाइम्स

लखनऊ। आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियाँ न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण आधार हैं, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य-कल्याण के लिए स्थायी और प्रभावी विकल्प भी प्रदान करती हैं।

ये उद्गार यहां इंदिरा नगर स्थित रीजनल आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रभारी सहायक निदेशक डॉ संजय सिंह ने आज 9 दिसम्बर को एक पत्रकार वार्ता में व्यक्त किये। संस्थान के संगोष्ठी कक्ष में की गयी प्रेस वार्ता का आयोजन भारत में पारंपरिक चिकित्सा पर आगामी 17-19 दिसंबर तक नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित होने वाले आयुष मंत्रालय एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन के दूसरे वैश्विक शिखर सम्मेलन के बारे में जानकारी देने के लिए किया गया था।

डॉ. संजय कुमार सिंह ने पत्रकारों को बताया कि सम्मेलन के बारे में 8 दिसम्बर को नयी दिल्ली में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रतापराव जाधव ने कहा कि इस कार्यक्रम में दुनिया भर के मंत्री, नीति निर्माता, वैश्विक स्वास्थ्य नेता, शोधकर्ता, विशेषज्ञ, उ‌द्योग प्रतिनिधि और चिकित्सक एक साथ आएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि इसमें 100 से अधिक देशों की भागीदारी अपेक्षित है। केंद्रीय मंत्री ने पारंपरिक चिकित्सा में भारत के वैश्विक नेतृत्व पर जोर देते हुए कहा कि आयुष प्रणालियाँ आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा और होम्योपैथी सदियों से लोगों की सेवा करती रही हैं और आज समग्र स्वास्थ्य के लिए विश्वसनीय समाधान के रूप में दुनिया भर में मान्यता प्राप्त हैं।

डॉ संजय सिंह ने बताया कि शिखर सम्मेलन की इस वर्ष की थीम “संतुलन बहाल करनाः स्वास्थ्य और कल्याण का विज्ञान और अभ्यास एवं पारंपरिक चिकित्सा पर आयुर्वेद के माध्यम से दी जा रही चिकित्सीय सेवा” है। संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि यह वैश्विक शिखर सम्मेलन पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों जैसे आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, के वैज्ञानिक, प्रमाण आधारित विकास तथा उनके वैश्विक स्तर पर सुरक्षित एवं जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि सम्मेलन का उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान, नवाचार, गुणवत्ता नियंत्रण, नियमन तथा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के साथ समन्वय को सुदृढ़ करना है। यह भी बताया कि भारत पारंपरिक चिकित्सा की वैश्विक नेतृत्वकारी भूमिका को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रेस वार्ता में यह भी बताया गया कि सम्मेलन में भारत द्वारा विकसित औषधीय पौधों पर आधारित अनुसंधान, नवीन तकनीक, डिजिटल पारंपरिक चिकित्सा डेटाबेस और अंतरराष्ट्रीय सहयोग परियोजनाएँ भी प्रस्तुत की जाएँगी। इस प्रेस वार्ता में डॉ संजय सिंह के साथ ही संस्थान के डॉ. आलोक कुमार श्रीवास्तव, डॉ. अंजलि बी. प्रसाद, डॉ. कांबले पल्लवी नामदेव, डॉ. सुरेन्द्र कुमार, डॉ. श्रीकला वी. एवं संस्थान के अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। इस मौके पर आयुर्वेद में खानपान की भूमिका के बारे में वक्ताओं ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अश्वगंधा के क्या-क्या लाभ हैं, इसे कब और कितना खाना चाहिये। यह भी बताया गया कि विरुद्ध आहार कौन से हैं जिन्हें एक साथ नहीं लेना चाहिये।

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