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बिगड़ी हुई जीवन शैली की छलनी में आखिर कैसे टिकेगा स्वास्थ्य का दूध ?

-विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) पर डॉ सूर्यकान्त की ✍️ कलम से

एक कहावत है कि छलनी में दूहो और कर्मों को रोओे, यानी अगर आप छलनी में दूध दूहेंगे तो दूध आखिर कैसे रुकेगा क्योंकि छलनी में तो अनेक छेद होते हैं, और फिर आप अपने भाग्य को दोष दें कि मेरे भाग्य में तो दूध ही नहीं है, कुछ ऐसा ही है आजकल के समय में हमारे स्वास्थ्य का हाल। प्रस्तुत है विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) के मौके पर इसी हाल को बयां करता डॉ सूर्यकान्त का लेख…

डॉ सूर्यकान्त

विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को अपने स्थापना दिवस को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाता है। स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और डॉक्टरों के योगदान को चिन्हित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। सन् 1948 में पहली विश्व स्वास्थ्य सभा का आयोजन जिनेवा में किया गया था, जिसमें ’वर्ड हेल्थ डे’ मनाने का संकल्प लिया गया। पहला ’’विश्व स्वास्थ्य दिवस’’ 7 अप्रैल 1950 को आयोजित किया गया था। फिर इसके बाद से प्रत्येक वर्ष इसी तिथि को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। हर वर्ष एक विशेष स्वास्थ्य विषय (थीम) को चुना जाता है और पूरी दुनियां में लोगों को उसके प्रति जागरूक किया जाता है। इस वर्ष की थीम है- ’’Healthy beginnings, hopeful futures’’ अर्थात ’’स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य’’।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया की 10 प्रमुख बीमारियां निम्नवत हैं – हृदय (इस्केमिक हृदय रोग, स्ट्रोक) और श्वसन (कोविड-19, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, लोअर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन), नियोनेटल कंडिशन, ट्रेकिया, ब्रोंकस लंग कैंसर, एल्जाएमर एण्ड डिमेंशिया, डायरिया, डायबिटीज, लिवर एवं किडनी डिजीज। वैश्विक स्तर पर कुल मौतों के 10 प्रमुख कारणों में से 7 गैर-संचारी रोग हैं, जो सभी मौतों का 38 प्रतिशत या शीर्ष 10 कारणों का 68 प्रतिशत जिम्मेदार हैं। भारत में लगभग 10 करोड़ हायपरटेंशन व हृदय रोग, सांस के रोगी 10 करोड़, 7 करोड़ डायबिटीज, और प्रतिवर्ष 7 लाख रोगी कैंसर के है। विश्व का टी.बी. का हर चौथा मरीज भारतीय है। आकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मानसिक रोगी रहते हैं, भारत में हर तीन में से एक व्यक्ति मानसिक रोगी होता है। मृत्यु के कारणों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता हैः संचारी (संक्रामक और परजीवी रोग और मातृ, प्रसवकालीन और पोषण संबंधी स्थितियाँ), गैर-संचारी (जीर्ण) और चोटें। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि 18 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले लोगों का पूर्व में आत्महत्या करने का असफल प्रयास रहा है।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष दुनिया भर में लगभग 1.3 करोड़ लोगों की मौतें पर्यावरणीय कारणों से हो जाती हैं, जिनसे पूरी तरह से बचा जा सकता है। इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु संकट, वायु प्रदूषण मुख्य रूप से कारक हैं। जो मानव जाति के लिए एक बहुत बड़ा स्वास्थ्य से जुड़ा खतरा है। 28 जुलाई 2022 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसके अनुसार- स्वच्छ, स्वस्थ और शुद्ध पर्यावरण हर एक मनुष्य का सार्वभौमिक मानव अधिकार होना चाहिए। जबकि अस्वास्थ्यकर प्रदूषित हवा वाले क्षेत्रों में रहने से लाखों भारतीयों को इस मूल अधिकार से वंचित किया जा रहा है। लगभग सभी भारतीय ऐसी हवा में सांस लेते हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुरूप नही है। 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार खराब वायु गुणवत्ता वाले विश्व के 50 शहरों में से 35 शहर भारत के हैं। भारत में लगभग 17 लाख मौतें वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष होती हैं, इसका अर्थ है कि, भारत में प्रति मिनट तीन मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती है।

हमारे ग्रह पृथ्वी पर हमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता होती है। आंकड़ों के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक लोग दूषित हवा में सांस लेते हैं। वायु प्रदूषण से विश्व भर में प्रति वर्ष 80 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है, जिसका अर्थ है कि हर मिनट में लगभग 13 लोगों की मौतें हो जाती हैं। लगभग 2 अरब लोग (एक तिहाई जनसंख्या) खाना बनाने के लिए बायोमास ईंधन (जैसे लकड़ी, कोयला, गोबर से बने कन्डे, उपले आदि) का उपयोग कर रहे हैं। 200 करोड़ लोगों के पास हमारे ग्रह पर सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता नहीं हो पाती है, जो कि हमारी वैश्विक आबादी का एक तिहाई है। विश्व की आधी आबादी (3.6 अरब) के पास सुरक्षित शौचालय नहीं हैं। प्रदूषित पानी एवं अस्वच्छता के कारण हर साल लगभग 8 लाख लोग डायरिया जैसी बीमारियों की वजह से मर जाते हैं। तंबाकू से प्रति वर्ष लगभग 80 लाख लोगों की मौतें होती है। वहीं दूसरी ओर हर साल 6 लाख करोड़ सिगरेट बनाने के लिए लगभग 60 करोड़ पेड़ों को काटा जाता है।

अस्वास्थ्यकर जीवनशैली, व्यायाम और योग की कमी और फास्ट फूड का सेवन भी खराब स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है। जबकि पारम्परिक भारतीय थाली स्वास्थ्य के गुणों से भरपूर होती है। इस गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए खीरा, खरबूज, तरबूज का सेवन अधिक करना चाहिए साथ ही कोल्डड्रिंक व जूस के स्थान पर मौसमी फल व देशी पेय जैसे कि मठ्ठा, लस्सी, शिकंजी, नारियल पानी, बेल का शरबत, गन्ने का रस आदि का सेवन करना चाहिए। सत्तू का सेवन भी इस मौसम में विशेष लाभकारी होता है। आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी में लोगों की लाइफ स्टाइल (जीवन शैली) एक दम से बदल गयी है। लोग रात के 12 बजे तक जगते रहते हैं और सुबह 8 बजे के बाद सो कर उठते है। लोगों के खाने पीने का कोई भी समय निर्धारित नही है। शारीरिक श्रम, घूमना, टहलना, पैदल चलना न के बराबर है। ऑनलाइन फूड से मोटापा एवं गैस की समस्या में बढ़ोतरी हुयी है। हमें ऑनलाइन फूड, जो मिर्च मसाले से भरा होता है, की जगह घर पर बना हुआ साफ एवं ताजा भोजन ही करना चाहिये जिसमें मौसमी फल एवं सब्जियां मौजूद हों। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमें योग, प्राणायाम, ध्यान एवं शारीरिक श्रम करना चाहिये। आज कल यह भी देखा जाता है कि एक छोटा बच्चा हो या बडे़ बुजुर्ग सबमें स्ट्रेस (तनाव) बढ़ रहा है, जिसे कम करने की जरूरत है। सोशल मीडिया का चलन स्क्रीन टाइम को बढ़ावा दे रहा है, जिससे भी लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा हैं। मोबाइल, लैपटॉप या टीवी की स्क्रीन से घंटों चिपके रहने का सीधा असर आज हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है । घंटों बैठे हुए स्क्रीन पर समय देने के कारण लोगों को मोटापा भी घेर रहा है, जिससे अन्य बीमारियाँ भी तेजी से पाँव पसार रही हैं। सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम में अगर समय रहते सुधार नहीं लाये तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

पुरानी कहावत है कि “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।“ किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए वहाँ के लोगों का स्वस्थ एवं खुशहाल होना आवश्यक है, क्योंकि स्वस्थ लोगों से ही समृद्ध राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है। अधिकाधिक वृक्षारोपण, धूम्रपान/तंबाकू/नशीले पदार्थो के सेवन की लत से दूर रहना, सार्वजनिक परिवहन का अधिक उपयोग करना एवं परिवहन के लिए पर्यावरण के अनुकूल ईंधन का उपयोग करना, पैदल चलना और साइकिल चलाना, भोजन बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन का उपयोग करना, प्लास्टिक का उपयोग न करना, स्वस्थ जीवन शैली, पारंपरिक भोजन, योग और व्यायाम, ये सब स्वस्थ रहने के मूल मंत्र हैं।

(लेखक डॉ सूर्यकान्त किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं)

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