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क्या यह तलब वाकई तम्बाकू की है, या कुछ और ?

-विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर मनोचिकित्सा में एमडी, होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गौरांग गुप्ता ने कही महत्वपूर्ण बात

डॉ गौरांग गुप्ता

धर्मेन्द्र सक्सेना

लखनऊ। तम्बाकू की लत की बात हम लोग करते हैं, इसको लेकर गहन मंथन और कोशिशें चलती रहती हैं कि इसे कैसे छोड़ा जाये, यहां महत्वपूर्ण यह है कि हमें लत की सही डायग्नोसिस करने पर भी विचार करना होगा, सही डायग्नोसिस से मेरा आशय किसी टेस्ट कराने से नहीं, बल्कि स्वयं के आकलन से है, जिसमें पता चल सकता है कि वाकई हमें तम्बाकू की लत है भी या नहीं।

यह महत्वपूर्ण बात साइकियाट्री से होम्योपैथिक में एमडी करने वाले गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के कन्सल्टेंट डॉ गौरांग गुप्ता ने आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (31 मई) के मौके पर ‘सेहत टाइम्स’ से विशेष वार्ता में कही। डॉ गौरांग ने कहा कि तम्बाकू खाने की आदत के पीछे की वजहों में एक वजह यह भी हो सकती है कि व्यक्ति की कुछ न कुछ चबाने की आदत बन जाती है, यह आदत वैसी ही होती है जैसे पैर हिलाने की, मुंह से नाखून काटने की, होठ काटने की। कई बार ऐसा होता है कि यह वास्तव में गुटखा की लत नहीं होती है, यह सिर्फ कुछ न कुछ मुंह में चबाने की लत होती है। इसलिए अगर लोगों को यह पता चल जाये कि गुटखा खाने की उनकी आदत नहीं है, सिर्फ चबाने की आदत के चक्कर में गुटखा खाते हैं तो बहुत से लोगों की तम्बाकू की आदत तम्बाकू की जगह कुछ और चबाने से छूट जायेगी। ऐसे लोग च्यूइंग गम, लौंग, इलायची कोई भी चीज चबा सकते हैं।

उन्होंने बताया कि तम्बाकू की लत लगने की एक वजह है कि गुटखा पान मसाला सस्ता और आसानी से उपलब्ध हो जाता है, इसी कारण लोअर इनकम क्लास से लेकर हाई इनकम क्लास तक के लोग इसका सेवन करते हैं। इसका सेवन अपने रोज के काम के दौरान कभी भी कहीं भी आते-जाते, उठते-बैठते कर सकते है जबकि दूसरे नशे जैसे स्मोकिंग हर जगह नहीं कर सकते हैं और अल्कोहल का सेवन हर समय नहीं कर सकते हैं। इसीलिए तम्बाकू की खपत ज्यादा है, चूंकि खपत ज्यादा है तो लोगों में इसकी आदत भी ज्यादा है।

शुरुआती स्टेज में कारगर है मनोवैज्ञानिक थैरेपी : सावनी गुप्ता

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता

तम्बाकू-निकोटिन की आदत वाले लोगों का उपचार मनोवैज्ञानिक तरीके से कैसे किया जाये इस बात करने के लिए ‘सेहत टाइम्स’ पहुंचा फेदर्स की संस्थापक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट सावनी गुप्ता के पास। सावनी ने बताया कि सिगरेट में तम्बाकू और निकोटिन दोनों होती है। ज्यादातर केसेज में यह आदत लम्बे समय की होती है। उपचार को लेकर साधारण तरीके से समझें तो लक्षणों की तीव्रता कम हो तो साइकोलॉजिस्ट, ज्यादा हो तो साइकोलॉजिस्ट के साथ ही साइक्रियाटिस्ट और लक्षणों की तीव्रता बहुत ज्यादा हो, (व्यक्ति के बिना सोचे-समझे कुछ भी करने का खतरा हो) तो उसे सीधे रिहै​बिलिटेशन सेंटर की जरूरत रहती है।

उन्होंने बताया कि जब मरीज सम्पर्क करता है तब उसकी कंडीशन देखकर उसके रोग की तीव्रता देखकर यह तय किया जाता है कि उसे किस प्रकार के उपचार की जरूरत है, सिर्फ थैरेपी की जरूरत है तो बेसिक डीटॉक्स, बेसिक सोशल, साइकोलॉजिकल, इमोशनल सिम्प्टम्स पर कार्य किया जाता है जिसमें मोटीवेशनल इन्हैन्समेंट थैरेपी, कॉग्नेटिव थैरेपी, सपोर्टिव थैरेपी, ग्रुप थैरेपी दी जा सकती है। लेकिन अगर साइकोलॉजिकल लक्षण जैसे डिप्रेशन आदि ज्यादा हैं तो थैरेपी के साथ ही मेडिसिन के लिए साइकियाट्रिक का सहारा लिया जाता है, और लत कुछ ज्यादा ही हो गयी है, व्यक्ति बहुत अग्रेसिव हो रहा है तो थैरेपी और दवा के साथ ही रिहैबिलिटेशन का भी सहारा लेना होता है।

उन्होंने कहा कि उपचार के तीनों स्तर की व्याख्या करें तो लक्षणों के अनुसार दवा का निर्धारण साइकियाट्रिस्ट करेगा लेकिन दवा के दौरान जो बीच में जो इमोशनल, साइकोलॉजिकल, सोशल और फैमिली का सपोर्ट जो चाहिये होता है तो इसके लिए साइकोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ती है, और अगर मोटर फंक्शनिंग की दिक्कत आ रही है, डिप्रेशन हो रहा है, एडिक्शन इतना बढ़ गया है कि वह चोरी में, मारपीट में यानी ऐसी स्थिति जो एब्नॉर्मल, दूसरों और उसके स्वयं के लिए असुरक्षित हों तब रिहैबिलिटेशन सेंटर में डालना होता है।

इसकी आदत के बारे में उन्होंने कहा कि साइकोलॉजिकल, इमोशनल और सोशल कारणों से लोग इसका सेवन शुरू कर देते है। जब तनावग्रस्त व्यक्ति तम्बाकू सिगरेट का सेवन करता है तो उसका आधा दिमाग तो सुन्न पड़ जाता है, ऐसे में जिन विचारों से वह परेशान हो रहा था, वे नहीं आ पाते हैं, उसके ब्रेन को एक किक मिलती है, जिससे वह अपने को बहुत रिलेक्स महसूस करता है लेकिन कुछ समय बाद तनाव से निकलने के चक्कर में शुरू किया गया तम्बाकू-सिगरेट का सेवन लत का रूप लेने लगता है।

तम्बाकू की तलब कम करती हैं होम्योपैथिक दवाएं : डॉ गिरीश गुप्ता

डॉ गिरीश गुप्ता

 

गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि तम्बाकू खाने की इच्छा को कम करने के साथ ही तम्बाकू खाने से हुए नुकसान को ठीक करने में होम्योपैथिक दवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों से मेरे पास एक युवक को लेकर उसके पिता आये उनकी शिकायत यह थी कि उनका बेटा तम्बाकू के साथ ही अल्कोहल लेने का आदी हो रहा है, उनका कहना था कि बेटे को रोज समझाता हूं, वह भी मुझसे वादा करता है कि नहीं लेगा लेकिन शाम को जब घर लौटता है तो मैं देखता हूं कि वह फिर तम्बाकू और अल्कोहल का सेवन किया है।

डॉ गिरीश ने बताया कि मरीज की हिस्ट्री ली गयी, और उसकी पसंद-नापसंद, उसका स्वभाव, उसका व्यक्तित्व आदि की जानकारी लेकर उसके आधार पर दवा तय करके दी गयी तो नशा करने की उसकी इच्छा में कमी आयी है, इस बात को मरीज ने स्वयं स्वीकार किया साथ ही उसके पिता भी काफी खुश दिखे।

 

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