-हाईपोथायरॉयड और थायरॉइड लीजंस Thyroid lesions पर स्टडी के पेपर्स व मॉडल केसेज का एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी में हो चुका है प्रकाशन
-विश्व थायरॉयड दिवस पर वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता से थायरॉयड के साक्ष्य आधारित उपचार पर विशेष वार्ता
सेहत टाइम्स
लखनऊ। गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के चीफ कन्सल्टेंट वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता का कहना है कि थायरॉयड की बीमारी ऑटो इम्यून भी है और एंडोक्राइन सिस्टम में खराबी के कारण भी होती है, इसका होम्योपैथी में उपचार उपलब्ध है लेकिन जरूरी यह है कि ट्रीटमेंट कॉन्सीट्यूशनल तरीके से मनोदैहिक (psychosomatic) लक्षणों के आधार पर चुनी हुई दवा से किया जाये न कि पेटेन्ट दवा से।

उन्होंने बताया कि यह भी देखा गया है कि थायरॉयड होने पर यदि व्यक्ति कोई भी हार्मोनल (ऐलोपैथिक) दवा न ले, और सीधे होम्योपैथिक दवा का ही सेवन करे तो ठीक होने की संभावना ज्यादा रहती है। सेंटर पर हुई स्टडी के बारे में उन्होंने बताया कि इलाज से पूर्व रक्त की जांचें, अल्ट्रासाउंड की जांच के साथ मरीजों की पूरी हिस्ट्री ली गयी, जिसमें उनकी पसंद-नापसंद, उनका स्वभाव, दिल पर आघात करने वाली घटना, कोई आकांक्षा न पूरी होना, स्वप्न, डर, भ्रम जैसी मन को प्रभावित करने वाली घटनाओं के बारे में गहराई से जानकारी ली गयी। इसके बाद ही प्रत्येक मरीज के लिए दवा का चुनाव किया गया।
डॉ गिरीश ने कहा कि जीसीसीएचआर में थायरॉयड की बीमारियों पर हुईं रिसर्च का प्रकाशन प्रतिष्ठित एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी में हो चुका है। इनमें हाईपोथायरॉयड के उपचार के लिए Evidence based clinical study on inhibition of TSH in Hypothyroid cases in response to homoeopathic drugs पेपर का प्रकाशन एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी के फरवरी 2010 के अंक में हुआ था, जबकि थायरॉयड lesions को बिना सर्जरी के होम्योपैथिक दवा से उपचार के लिए Non surgical treatment of Thyroid lesions by homoeopathic drugs शीर्षक से मॉडल केसेज के पेपर का प्रकाशन एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी के अगस्त 2011 के अंक में हो चुका है।
डॉ गिरीश गुप्ता ने यह जानकारी विश्व थायरॉयड दिवस (25 मई) के मौके पर ‘सेहत टाइम्स’ के साथ विशेष वार्ता में देते हुए बताया कि इलाज से पूर्व और इलाज के बाद मरीजों की रक्त की जांचें, अल्ट्रासाउंड की जांच और गले में बढ़े हुए थायरॉयड को दिखाती फोटो के साक्ष्य सफल इलाज की कहानी खुद ब खुद बयां करते हैं।

प्रकाशित स्टडी के बारे में उन्होंने बताया कि हाइपोथायरायडिज्म के कुल 80 अच्छी तरह से निदान किए गए गैर-थायरॉक्सिन आश्रित रोगियों को इलाज के लिए पंजीकृत किया गया था। थायरॉयड फ़ंक्शन टेस्ट (टी3, टी4, टीएसएच) द्वारा निदान के बाद होम्योपैथिक दवाओं के साथ कॉन्सीट्यूशनल उपचार ने काफी संख्या में मामलों में उत्कृष्ट प्रतिक्रिया दिखाई। उन्होंने बताया कि इन 80 मरीजों मे 20 वर्ष तक की आयु के 13, 21 से 50 वर्ष की आयु के 62 तथा 50 वर्ष से ऊपर की आयु वाले 5 लोग शामिल थे। इनमें 75 मरीज शहरी इलाकों के तथा 5 मरीज ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वाले थे। उपचार के परिणाम की बात करें तो इनमें से 67 मरीजों यानी 83.75 प्रतिशत मरीजों को लाभ हुआ जबकि यथास्थिति रहने या फायदा न होने वाले मरीजों की संख्या 13 रही।
डॉ गिरीश ने बताया कि इस अध्ययन के परिणाम अत्यंत उत्साहवर्धक तथा होम्योपैथिक चिकित्सकों के लिए थायरॉयड विकारों के रोगियों का आत्मविश्वास के साथ उपचार करने के लिए नए रास्ते खोलने वाले थे। परिणामों से यह भी स्पष्ट है कि बिना किसी हार्मोनल थेरेपी के होम्योपैथिक दवा से TSH स्तर को सामान्य किया जा सकता है। होम्योपैथिक दवाएँ गैर-हार्मोनल, लागत प्रभावी तथा उपयोग में सुरक्षित हैं। उन्होंने बताया कि हाइपोथायरायडिज्म का पारंपरिक उपचार (थायरोक्सिन, थायरोनॉर्म, एल्ट्रॉक्सिन आदि के साथ) पूरक तथा आजीवन होता है जबकि होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति में यह स्थायी होता है क्योंकि यह साइको-न्यूरोहार्मोनल अक्ष के माध्यम से कार्य करके मूल कारण को नष्ट कर देता है।
डॉ गिरीश ने बताया कि इनके अतिरिक्त होम्योपैथिक दवाओं द्वारा थायरॉयड lesions का गैर-शल्य चिकित्सा उपचार को लेकर कुछ मॉडल केसेज का प्रकाशन एशियन जर्नल ऑफ होम्योपैथी के अगस्त 2011 के अंक में किया गया है। इनमें थायरॉइड एडेनोमा, नोड्यूल्स, सिस्ट और मल्टी-नोड्यूलर गोइटर आदि जैसे थायरॉइड lesions के केस शामिल हैं जो पूरी तरह से ठीक हो गये या काफी ठीक हो गये।
उन्होंने बताया कि सामान्यत: आधुनिक चिकित्सा में थायरॉयड ग्रंथि के स्थान घेरने वाले lesions (एसओएल) का उपचार lesions या प्रभावित लोब को शल्य चिकित्सा द्वारा हटाना है, लेकिन बीमारी के कारण का उपचार न होने पर रोग के दोबारा होने की संभावना रहती है। इसके अलावा, यदि रोगी हाइपोथायरायड से पीड़ित है तो थायरोनॉर्म या एल्ट्रॉक्सिन आदि जैसी थायरॉइड दवाओं पर जीवन भर निर्भर रहना एक नियम है। जबकि दूसरी ओर, होम्योपैथी को विभिन्न प्रकार के थायरॉइड lesions के उपचार में उपयोगी पाया गया।
