-जीसीसीएचआर में हुई है स्टडी, प्रतिष्ठित जर्नल में हो चुका है प्रकाशन
-विश्व हेपेटाइटिस दिवस (28 जुलाई) के मौके पर डॉ गिरीश गुप्ता से वार्ता

हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त मरीज की उपचार से पूर्व और उपचार के बाद की पैथोलॉजिकल रिपोर्ट

सेहत टाइम्स
लखनऊ। हेपेटाइटिस का मुख्य कारण हेपेटाइटिस वायरस है। यह वायरस यकृत (लीवर) में सूजन पैदा करता है, जिससे लीवर ठीक से काम नहीं कर पाता। हेपेटाइटिस वायरस ए, बी, सी, डी और ई प्रकार के होते हैं, और प्रत्येक का अपना अलग-अलग कारण और संचरण का तरीका होता है। इन सभी में हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी ज्यादा खतरनाक होता है, लेकिन इन दोनों में भी हेपेटाइटिस सी को अधिक खतरनाक माना जाता है, क्योंकि यह क्रॉनिक संक्रमण और लीवर को गंभीर क्षति की उच्च दर से जुड़ा हुआ है। लोगों को हेपेटाइटिस के प्रति जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम ‘हेपेटाइटिस : लेट्स ब्रेक इट डाउन’ है।

इस मौके पर ‘सेहत टाइम्स’ ने गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) लखनऊ के चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता से मुलाकात की। डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि होम्योपैथी में हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी दोनों ही हेपेटाइटिस का सफल उपचार किया जा चुका है, इस पर हमारे सेंटर पर हुई स्टडी को प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित भी किया जा चुका है।
उन्होंने बताया कि स्टडी में हेपेटाइटिस बी के उपचार में सफलता की दर 78 प्रतिशत और हेपेटाइटिस सी के उपचार में सफलता की दर 69 प्रतिशत पायी गयी। उन्होंने बताया कि ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन सभी मरीजों का इलाज उनकी पसंद-नापसंद, उनके स्वभाव, उनकी मन:स्थिति को ध्यान में रखते हुए दवा का चुनाव कर किया गया। उन्होंने बताया कि यही होम्योपैथी का सिद्धांत है, होम्योपैथी के जनक डॉ सैमुअल हैनिमैन ने मरीज को रोग से स्थायी छुटकारा दिलाने के लिए उपचार का जो सिद्धांत दुनिया को दिया है, इसमें रोग और रोगी दोनों की हिस्ट्री ली जाती है और उसके अनुसार दवा का चुनाव किया जाता है। किसी एक विशेष दवा से सभी रोगियों को लाभ हो जाये ऐसा आवश्यक नहीं है।
डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि इसी सिद्धांत पर चलते हुए हमारे रिसर्च सेंटर जीसीसीएचआर पर हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी के मरीजों के किये गये उपचार पर स्टडीज की गयी हैं। उन्होंने बताया कि पैथोलॉजिकल जांच में हेपेटाइटिस बी के पॉजिटिव पाये गये 18 केसेज की स्टडी में सफलता की दर 78 प्रतिशत पायी गयी। इन 18 केसेज में नौ लोगों में वायरस निगेटिव हो गया, पांच केसों में वायरल लोड कम हुआ, जबकि चार रोगियों को दवाओं से लाभ नहीं हुआ। यह स्टडी ‘एडवांसमेंट्स इन होम्योमपैथिक रिसर्च’ जर्नल के मई 2022 अंक में ‘एन एवीडेंस बेस्ड क्लीनिकल स्टडी ऑन होम्योपैथिक ट्रीटमेंट ऑफ हेपेटाइटिस बी पेशेंट्स’ शीर्षक से छपी है।
डॉ गुप्ता ने बताया कि इसी प्रकार हेपेटाइटिस सी के 13 केसेज की स्टडी की गयी थी, इसमें सफलता का प्रतिशत 69 रहा। इन 13 केसेज में से 9 केसेज में वायरस निगेटिव हो गया या वायरल लोड कम हो गया जबकि चार केसेज में दवाओं से कोई लाभ नहीं हुआ। इस स्टडी का प्रकाशन ‘एडवांसमेंट्स इन होम्योपैथिक रिसर्च’ जर्नल के मई 2017 के अंक में ‘रोल ऑफ होम्योपैथिक मेडिसिन्स इन द पेशेन्ट्स ऑफ क्रॉनिक हेपेटाइटिस सी’ शीर्षक से किया गया है।
एक सवाल के जवाब में डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि चूंकि हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी का संक्रमण इससे ग्रस्त व्यक्ति के खून या शरीर से निकलने वाले अन्य तरल पदार्थों के माध्यम से होता है। इसीलिए लोगों को चाहिये कि एक सीरिंज से एक से ज्यादा व्यक्ति को इंजेक्शन न लगायें, एक ही ब्लेड से दो लोग दाढ़ी न बनायें, सैलून में भी बाल कटाते और दाढ़ी बनवाते समय ध्यान रखें कि उस्तरे में नया ब्लेड लगा हो। इसके अलावा संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिये तथा खून चढ़ाते समय यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि उस रक्त की संक्रमण की जांच हो चुकी है।

