-केजीएमयू में ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग में आयोजित ‘पुनर्भवम 2025′ एवं ‘मैक्सिलोफेशियल ट्रॉमा गैलरी 2025’ में बोले त्रिपुरा के मुख्यमंत्री
-“मातृ भाषा में चिकित्सा शिक्षा का महत्व” विषय पर दिया टीएन चावला ओरेशन

सेहत टाइम्स
लखनऊ। जब भाषा की बाधा हटती है, तब सोच की दिशा बदल जाती है। विद्यार्थी केवल रटने वाले नहीं रहते- वे सोचने वाले, प्रश्न करने वाले और नवाचार करने वाले बनते हैं। यही वह परिवर्तन है जो NEP चाहती है- जहाँ शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री नहीं, बल्कि मौलिकता और चरित्र निर्माण हो। भारत का चिकित्सा परिदृश्य विशाल है, विविध है। हमारे रोग, हमारे समाज, और हमारी आवश्यकताएँ अलग हैं। इसलिए हमारे समाधान भी भारतीय सोच से आने चाहिए-और वह सोच तभी संभव है जब शिक्षा हमारी अपनी भाषा में होगी।

यह उद्गार त्रिपुरा के मुख्यमंत्री डॉ माणिक साहा, जो केजीएमयू के ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी (ओ एम एफ एस) OMFS विभाग के पूर्व छात्र भी हैं, ने आज 31 अक्टूबर को KGMU के ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग तथा एसोसिएशन ऑफ ट्रॉमा एंड ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन्स (ATOMS) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “पुनर्भवम् 2025” एवं “एटम्स मैक्सिलोफेशियल ट्रॉमा कॉन्फ्रेंस” ‘मैक्सिलोफेशियल ट्रॉमा गैलरी 2025′ का उद्घाटन समारोह में टी. एन. चावला ऑरेशन में व्यक्त किये। इस अवसर पर उन्हें एटम्स ATOMS की मानद फैलोशिप (Honorary Fellowship) प्रदान की गई।
केजीएमयू के पुरातन छात्र भी हैं डॉ माणिक साहा
डॉ माणिक साहा ने कहा कि आज इन पावन प्रांगणों में खड़े होकर मुझे अपने छात्र जीवन की अनगिनत स्मृतियाँ याद आ रही हैं। केजीएमयू मेरे लिए केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि एक संस्कारस्थली है-जहाँ से मेरे चिकित्सकीय जीवन का बीज अंकुरित हुआ। आज जब मैं पुनः यहाँ उपस्थित हूँ, तो मन में कृतज्ञता, गौरव और आत्मीयता के संगम का गहरा भाव जागता है-। उन्होंने कहा कि हम सब ‘पुनर्भवम्’ और एसोसिएशन ऑफ ट्रॉमा ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन्स (ATOMS) के वार्षिक सम्मेलन ‘मैक्सिलोफेशियल ट्रॉमा गैलरी 2025’ के इस ऐतिहासिक अवसर पर एकत्र हुए हैं। यह केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि विचार, अनुभव और नवाचार का उत्सव है। मुझे ATOMS की मानद फेलोशिप से सम्मानित किया जाना एक अत्यंत गौरवपूर्ण क्षण है, जिसे मैं अत्यंत विनम्रता के साथ स्वीकार करता हूँ। साथ ही, टी. एन. चावला ओरेशन देने का अवसर मेरे लिए अत्यंत प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा कि ट्रॉमा केयर और नवाचार के क्षेत्र में केजीएमयू के उत्कृष्ट योगदान की सराहना करता हूँ।

भारतीय चेतना को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम
उन्होंने कहा कि आज के व्याख्यान का विषय “मातृ भाषा में चिकित्सा शिक्षा का महत्व” सीधे-सीधे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की भावना से ओत-प्रोत है। उन्होंने कहा कि ‘पुनर्भवम्’ (फिर से पूर्व जैसा हो जाना, अपने वास्तविक रूप को प्राप्त करना) नाम अपने आप में एक गहरा दार्शनिक अर्थ रखता है- पुनर्जन्म, पुनर्निर्माण, और नवीनीकरण। यह केवल एक अकादमिक आंदोलन नहीं है, बल्कि एक वैचारिक जागरण है जिसने बहुत पहले यह दृष्टि रखी कि वैज्ञानिक शोध और चिकित्सा शिक्षा मातृभाषा में भी हो सकती है, और होनी चाहिए और इस अनूठे विचार को मूर्तमान कर देने के लिए मैं डॉ विभा सिंह और उनकी टीम की हृदय से प्रशंसा करता हूँ। यह दृष्टि आज NEP की आत्मा बन चुकी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह स्पष्ट कहती है कि मातृभाषा या भारतीय भाषाओं में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा देना केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक मौलिक सुधार है। यह उस भारतीय चेतना को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम है, जिसे वर्षों की औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली ने दबा दिया था। उन्होंने कहा कि एक सर्जन और एक जनसेवक के रूप में मैं यह भलीभाँति अनुभव करता हूँ कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, यह संवेदना की डोर है।

ज्ञान बन जाता है अनुभव और इलाज सहानुभूति
उन्होंने कहा कि जब एक छात्र अपने सोचने की भाषा में चिकित्सा विज्ञान सीखता है, तो ज्ञान केवल स्मरण नहीं रहता- वह अनुभव बन जाता है। और जब एक डॉक्टर मरीज की मातृभाषा में बात करता है, तो इलाज केवल उपचार नहीं रह जाता- वह सहानुभूति में बदल जाता है। जैसा महर्षि पतंजलि ने कहा था – “शब्दो नित्यं, ज्ञानं च अनन्तम्।” यानी भाषा केवल ध्वनि नहीं, ज्ञान का माध्यम है; और ज्ञान की कोई सीमा नहीं।
तकनीक बुद्धि दे सकती है संवेदना नहीं
डॉ साहा ने कहा कि AI, डेटा विज्ञान और डिजिटल हेल्थकेयर का युग निश्चित रूप से चिकित्सा को नए आयाम दे रहा है, लेकिन यह भी सच है कि तकनीक बुद्धि दे सकती है, पर संवेदना नहीं। वह कार्य भाषा करती है-जो मन और मनुष्य के बीच पुल बनाती है। उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति NEP के पाँच प्रण और मातृभाषा हमारे प्रधानमंत्री ने देश के अमृतकाल में पाँच प्रणों (Panch Pran) की बात की थी और उनमें से दो प्रण मातृभाषा शिक्षा से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ते हैं- “अपनी विरासत पर गर्व करना” और “एकता और एकजुटता को सशक्त करना।” मातृभाषा में शिक्षा इन दोनों उद्देश्यों को साकार करती है। यह न केवल ज्ञान को सबके लिए सुलभ बनाती है, बल्कि उस सांस्कृतिक आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करती है, जो भारत की पहचान है।
डॉ साहा ने कहा कि आप सब उस नई दिशा की शुरुआत कर रहे हैं जहाँ ज्ञान और भाषा, परंपरा और नवाचार, विज्ञान और संवेदना एक साथ चलते हैं। मेरी शुभकामना है कि यह संगोष्ठी केवल एक शैक्षणिक आयोजन न रहे, बल्कि एक सांस्कृतिक जागरण बने – जो यह संदेश दे कि “मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा केवल संभव ही नहीं, बल्कि आवश्यकता है।” उन्होंने आह्वान किया कि आइये हम सब मिलकर वह भारत बनाएं – जो वैज्ञानिक रूप से सशक्त, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, और मानवीय रूप से संवेदनशील हो।
समारोह की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति पद्मश्री प्रो. (डा.) सोनिया नित्यानंद को ‘एटम्स’ द्वारा “एपिटोम ऑफ एक्सीलेंस” सम्मान से अलंकृत किया गया। कुलपति ने ट्रॉमा ओएमएफ़एस के कार्यों को देखते हुए इसके विस्तार के लिए डेडिकेटेड ट्रॉमा 2 में एक पूरे फ्लोर की यूनिट पर ऑपरेशन थियेटर एवं वार्ड देने की घोषणा की।
विभागाध्यक्ष प्रो. उमा शंकर पाल ने बताया कि सम्मेलन का उद्देश्य मैक्सिलोफेशियल ट्रॉमा के क्षेत्र में नवाचार, शोध और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना है। डा. मदन मिश्रा, अध्यक्ष एटम्स, ने कहा कि सम्मेलन में देशभर से विशेषज्ञ चिकित्सक शामिल हुए हैं और यह आयोजन “विज्ञान, संस्कार और संस्कृति” का अनूठा संगम बन गया है।
डा. अरूणेश कुमार तिवारी, अध्यक्ष-चयनित एवं सम्मेलन सचिव, ने बताया कि सम्मेलन में कैडैवरिक डिसेक्शन, एयरवे एवं एटीएलएस सत्र, तथा मातृभाषा में वैज्ञानिक शोधपत्र प्रस्तुति जैसे सत्रों का आयोजन किया गया, जिन्हें प्रतिभागियों ने अत्यंत सराहा।
डा. विभा सिंह, संस्थापक “पुनर्भवम्”, ने कहा कि इस आयोजन में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2025 की भावना को मूर्त रूप दिया गया, जिसमें भारतीय भाषाओं और संस्कृति को चिकित्सा शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया गया है।
मीडिया प्रभारी डा. के. के. सिंह ने बताया कि इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. ए. के. त्रिपाठी और चेन्नई से आये प्रोफेसर डा. पी. अनंतनारायणन की विशेष उपस्थिति रही। डा. अमिय अग्रवाल, अधीक्षक ट्रॉमा सेंटर एवं सचिव, एटम्स, ने कहा कि यह आयोजन केवल वैज्ञानिक संवाद का मंच नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना और सेवा भावना का प्रतीक भी सिद्ध हुआ।
इन्हें मिली मानद फेलोशिप
समारोह में इससे पूर्व एटम्स की मानद फेलोशिप (Honorary Fellowship) 6 प्रतिष्ठित व्यक्तियों को प्रदान की गई, इनमें समारोह के मुख्य अतिथि डॉ माणिक साहा के साथ ही विभागाध्यक्ष प्रो यूएस पाल, प्रो विजय कुमार, प्रो. समीर मिश्रा, प्रो. नितिन वर्मा और प्रो पी. अनंतनारायणन शामिल हैं।
इन्हें मिली फेलोशिप
इसके अतिरिक्त 12 विद्वानों को फेलोशिप से भी सम्मानित किया गया, इनमें डॉ. अभिषेक सिंह, डॉ. अभिज्ञान मानस, डॉ. प्रियंकर सिंह, डा. संदीप कुमार पांडेय, डा. ले. कर्नल विशाल कुलकर्णी, डा. अश्विन प्रीतम कुमार, डॉ. प्रेम राज सिंह, डा. अखिलेश कुमार पांडेय, डा. पद्मनिधि अग्रवाल, डा. रवि कुमार, डा. अंशु सिंह और डॉ अखिलेश कुमार सिंह शामिल हैं।

Sehat Times | सेहत टाइम्स Health news and updates | Sehat Times