-सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च एंड एक्सीलेंस के तहत एसजीपीजीआई में हुआ सफल शोध
-मौलिक्युलर मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो स्वस्ति तिवारी के मार्गदर्शन में हासिल हुई उपलब्धि

सेहत टाइम्स
लखनऊ। ICMR के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च एंड एक्सीलेंस (CARE) के तहत संजय गांधी पीजीआई में मौलिक्युलर मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग में किए गए एक शोध में मधुमेह के रोगियों में गुर्दे की बीमारी के प्रारंभिक निदान की क्षमता वाले बायोमार्कर की पहचान की गई है। संजय गांधी पीजीआई के मौलिक्युलर मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग की प्रमुख, जो केयर (CARE) प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर भी हैं, के मार्गदर्शन व निरीक्षण मे केयर टीम के सदस्यों द्वारा इस स्टडी को पूर्ण किया गया। इस टीम में पुड्डुचेरी के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के सदस्यों के साथ संजय गांधी पीजीआई से डॉ धर्मेंद्र के चौधरी, डॉ सुखान्शी कान्डपाल, डॉ दीनदयाल मिश्रा और डॉ बिश्वजीत साहू शामिल थे।
ज्ञात हो मधुमेह क्रोनिक किडनी रोग (CKD) के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है। मधुमेह से पीड़ित तीन में से एक व्यक्ति की डायग्नोसिस CKD के रूप में की जाती है, जो गुर्दे की विफलता और हृदय संबंधी जटिलताओं का कारण बनता है। CKD का शीघ्र पता लगने से समय पर उपचार और प्रबंधन सुनिश्चित हो सकता है।

डॉ स्वस्ति तिवारी ने बताया कि ये बायोमार्कर इस मायने में अद्वितीय हैं कि इनमें CKD की शुरुआत से पहले ही इसका अनुमान लगाने की क्षमता है। ये बायोमार्कर मानव मूत्र में नैनो आकार के पुटिकाओं (बाल से हजारों गुना छोटे) के अंदर पाए जाते हैं, जिससे उनका निदान non Invasive हो जाता है। इसके अध्ययन 2019 में शुरू किए गए थे, जिसमें लखनऊ और पुड्डचेरी के समुदायों से लगभग 1000 मधुमेह रोगियों को चिह्नित किया गया था। इन रोगियों को लगभग पांच वर्षो तक follow up में रखा गया।
उन्होंंने बताया कि इस तकनीक को पेटेंट कराने के लिए भारतीय पेटेंट कार्यालय में मार्च 2024 आवेदन किया गया है। आईसीएमआर ने वर्ष 2023-24 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस नवाचार को शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि एसजीपीजीआई के मौलिक्यूलर मेडिसिन और बायोटेक्नोलॉजी विभाग की प्रयोगशाला भारत में पहली प्रयोगशाला थी, जिसने किडनी रोग के निदान में मूत्र एक्सोसोम की उपयोगिता को प्रदर्शित किया था।
विभाग द्वारा देश में रोगों के शीघ्र निदान के लिए क्षमता निर्माण की भी पहल की गई। तदनुसार, केयर परियोजना के माध्यम से विकसित तकनीकी कौशल प्रदान करने के लिए 2023-24 के बीच दो राष्ट्रीय क्षमता निर्माण कार्यशालाएँ भी आयोजित की गईं।

