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आयुष प्रणालियों से हो रही पारम्परिक चिकित्सा को विश्व भर में मिलेगा नया आयाम

-सीसीआरएच लखनऊ ने आयोजित की प्रेस वार्ता, दूसरा वैश्विक शिखर सम्मेलन नयी दिल्ली में 17 से 19 दिसम्बर तक

-दुनिया भर के मंत्री, नीति निर्माता, वैश्विक स्वास्थ्य नेता, शोधकर्ता, विशेषज्ञ, उ‌द्योग प्रतिनिधि और चिकित्सक आएंगे एक साथ

सेहत टाइम्स

लखनऊ। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आगामी 17-19 दिसंबर को आयोजित होने वाले द्वितीय विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन के बारे में केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रतापराव जाधव ने नयी दिल्ली में 8 दिसम्बर को विस्तार से जानकारी देते हुए इस बात पर गर्व किया कि भारत 2023 में गुजरात में आयोजित पहले सफल आयोजन के बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दूसरे वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह शिखर सम्मेलन मानवता के स्वास्थ्य, खुशी और कल्याण के लिए पारंपरिक चिकित्सा को मुख्यधारा में लाने के सामूहिक वैश्विक प्रयास में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो भारत के “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः” के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

केन्द्रीय मंत्री के इस संवाददाता सम्मेलन के बारे में जानकारी देने के लिए केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) की यहां जानकीपुरम स्थित इकाई में आज 9 दिसम्बर को एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस संवाददाता सम्मेलन में डॉ. रेनु बाला, अनुसंधान अधिकारी (होम्योपैथी) वैज्ञानिक- 2, डॉ. अमित श्रीवास्तव, अनुसंधान अधिकारी (होम्योपैथी) / वैज्ञानिक 2 एवं वीपी सिंह, प्रयोगशाला प्राविधिक उपस्थित रहे।

नयी दिल्ली में केन्द्रीय मंत्री श्री जाधव ने बताया कि इस वर्ष के शिखर सम्मेलन का विषय “संतुलन बहाल करनाः स्वास्थ्य और कल्याण का विज्ञान और अभ्यास” है। इस कार्यक्रम में दुनिया भर के मंत्री, नीति निर्माता, वैश्विक स्वास्थ्य नेता, शोधकर्ता, विशेषज्ञ, उ‌द्योग प्रतिनिधि और चिकित्सक एक साथ आएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि इसमें 100 से अधिक देशों की भागीदारी अपेक्षित है। केंद्रीय मंत्री ने पारंपरिक चिकित्सा में भारत के वैश्विक नेतृत्व पर जोर देते हुए कहा कि आयुष प्रणालियाँ आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा और होम्योपैथी सदियों से लोगों की सेवा करती रही हैं और आज समग्र स्वास्थ्य के लिए विश्वसनीय समाधान के रूप में दुनिया भर में मान्यता प्राप्त हैं। उन्होंने कहा कि भारत के साथ साझेदारी में गुजरात के जामनगर में विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना, भारत की पारंपरिक ज्ञान संचय में बढ़ते वैश्विक विश्वास को दर्शाती है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि शिखर सम्मेलन के समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की संभावना है।

इस शिखर सम्मेलन में “अश्वगंधा: पारंपरिक ज्ञान से वैश्विक प्रभाव तक – प्रमुख वैश्विक विशेषज्ञों के दृष्टिकोण” शीर्षक से की चर्चाओं के हिस्से के रूप में एक सत्र का आयोजन किया जायेगा, जो अश्वगंधा की वैज्ञानिक समझ को गहरा करने के लिए प्रमुख शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और चिकित्सकों को एक साथ लाएगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की क्षेत्रीय निदेशक एमेरिटस और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक की पारंपरिक चिकित्सा पर वरिष्ठ सलाहकार डॉ. पूनम खेत्रपाल ने इस बात पर जोर दिया कि पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरा विश्व स्वास्थ्य संगठन वैश्विक शिखर सम्मेलन वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि 100 से अधिक देशों की भागीदारी के साथ, यह शिखर सम्मेलन राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में पारंपरिक, पूरक, एकीकृत और स्वदेशी औषधियों के साक्ष्य-आधारित, न्यायसंगत और सतत एकीकरण के लिए एक दशक लंबी रुपरेखा को आकार देगा।

दिल्ली में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री के साथ आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा, पत्र सूचना कार्यालय के प्रधान महानिदेशक धीरेंद्र ओझा, आयुष मंत्रालय की संयुक्त सचिव अलरमेलमंगई डी, आयुष मंत्रालय की संयुक्त सचिव मोनालिसा दाश और आयुष मंत्रालय के उप महानिदेशक सत्यजीत पॉल मंच पर उपस्थित थे।

लखनऊ में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद सीसीआरएच में किये जा रहे कार्यों के बारे में भी जानकारी देते हुए बताया गया कि यह भारत में एक शीर्ष अनुसंधान संगठन है और होम्योपैथी के क्षेत्र में वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। सीसीआरएच अपने संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से कई प्रमुख विषयों पर पूरे भारत में बहु-केंद्रित अनुसंधान करता है। इनमें औषधि प्रमाणीकरण शामिल है, जिसमें दवा के लक्षणो को सिद्ध करना (स्वस्थ स्वयंसेवकों पर परीक्षण), होम्योपैथिक दवाओं का मानकीकरण और उनके चिकित्सीय प्रभावों का नैदानिक सत्यापन शामिल है। इसके अतिरिक्त, परिषद नैदानिक अनुसंधान करती है, जिसमें विभिन्न रोग स्थितियों के लिए होम्योपैथिक उपचार की प्रभावकारिता का आकलन करने के लिए कई नैदानिक परीक्षण शामिल हैं। वर्तमान में संस्थान में विभिन्न बीमारियों के अध्ययन के लिए ठोस नैदानिक अनुसंधान प्रोटोकॉल पर आधारित कई अनुसंधान परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं, जिनमें हाइ‌पोथायरायडिज्म, प्राइमरी डिसमेनोरिया, सर्वाइकल लिम्फैडेनोपैथी, मल्टीमॉर्बिडिटी, प्रतिकूल औषधि घटनाएँ, मॉलस्कम कॉन्टैजियोसम, माइग्रेन, औषधियों का नैदानिक सत्यापन, विटामिन-डी की कमी तथा रोगी संतुष्टि सर्वेक्षण प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त अनेक नई शोध परियोजनाएँ शीघ्र ही प्रारंभ होने वाली हैं, जिनमें क्रॉनिक अर्टिकेरिया, नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज, मधुमेह, हाइपरयूरिसेमिया, विटिलिगो, वाट्स, शीत लहर प्रकोप, न्यूरोकॉग्निटिव विकार एवं प्रारंभिक डिमेशिया, एलर्जिक राइनाइटिस, सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस एवं मेलाज्मा शामिल हैं। संस्थान द्वारा अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संगठनों, जैसे सीएसआईआर-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर), सीएसआईआर- केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप), लखनऊ विश्ववि‌द्यालय, जैव चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (सीबीएमआर) आदि के साथ साक्ष्य-आधारित सहयोगात्मक अनुसंधान अध्ययन करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए है। संस्थान में हेमेटोलॉजी, पैथोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री एवं सिरोलॉजी से संबंधित लैब परीक्षणों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। रोगियों के हित में एक्स-रे एवं अल्ट्रासाउंड की सुविधा भी शीघ्र उपलब्ध होने वाली है। सभी सामान्य और आवश्यक दवाएं गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज (जीएमपी) प्रमाणित दवा कंपनियों से खरीदी जाती हैं।

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