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विकसित उत्तर प्रदेश @2047 में आयुष पद्धतियों के संभावित योगदान पर परामर्श बैठक

-प्रमुख सचिव रंजन कुमार का आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी के विशेषज्ञों से वन-टू-वन संवाद

सेहत टाइम्स

लखनऊ। 2047 तक विकसित भारत का सपना पूरा करने के लिए किये जा रहे प्रयासों के क्रम में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विकसित उत्तर प्रदेश @2047 का लक्ष्य निर्धारित किया है, इसी क्रम में पिछले दिनों 4 दिसम्बर को आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथिक जैसी आयुष पद्धतियों से उपचार के जरिये चिकित्सा क्षेत्र में दिये जा रहे योगदान को लेकर प्रदेश सरकार के आयुष विभाग द्वारा एक परामर्श बैठक का आयोजन किया गया। लगभग सवा सौ आयुष विधाओं के विशेषज्ञों को इस बैठक में आमंत्रित किया गया था, तथा करीब 25 विशेषज्ञों को अपने शोध और किये गये कार्यों को प्रस्तुत करने का अवसर देते हुए इन सभी वक्ताओं के साथ प्रमुख सचिव ने वन-टू-वन संवाद किया। ज्ञात हो रंजन कुमार द्वारा बैठक में अपने सम्बोधन में पूर्व में ही स्पष्ट कर दिया गया था कि जो भी स्पीकर्स अपनी विधा में किये गये कार्यों, शोधों के बारे में जानकारी दें, वे आंकड़ों और साक्ष्य पर आधारित होने चाहिये।

योजना भवन के सभागार में आयोजित इस परामर्श बैठक में आयुष विभाग के प्रमुख सचिव रंजन कुमार आईएएस और आयुष महानिदेशालय की निदेशक चैत्रा वी के साथ ही प्रधान सचिव, योजना आलोक कुमार, प्रधान सचिव, पर्यटन अमृत अभिजात, मुख्यमंत्री के सलाहकार और पूर्व DCGI डॉ. जी एन सिंह, कार्यक्रम निदेशक, नीति आयोग राजीव कुमार सेन, अध्यक्ष स्टेट ट्रांसफॉरमेशन कमीशन लखनऊ मनोज कुमार सिंह तथा मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश कुमार अवस्थी उपस्थित थे।

डॉ गिरीश गुप्ता को सम्मानित करते रंजन कुमार

होम्योपैथी से दो स्पीकर आमंत्रित

इस बैठक में कुल 25 स्पीकर्स में से होम्योपैथिक के सिर्फ दो विशेषज्ञों, प्रयागराज के साईनाथ पोस्ट ग्रेजुएट होम्योपैथिक इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डॉ एसएम सिंह और गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च, लखनऊ के मुख्य परामर्शदाता डॉ गिरीश गुप्ता को ही होम्योपैथिक की विशेषता, रोगों के उपचार में किये गये शोध के बारे में जानकारी देने के लिए चयन किया गया। डॉ एसएम सिंह ने जहां होम्योपैथिक दवाओं के निर्माण के साथ इसकी क्षमताओं के बारे में जानकारी दी वहीं डॉ गिरीश गुप्ता ने संक्षिप्त लेकिन प्रभावी रूप से अपने शोध कार्यों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यूट्राइन फायब्रॉयड, ओवेरियन सिस्‍ट, पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम, ब्रेस्‍ट लीजन्‍स जैसे स्त्रियों के रोगों, ल्‍यूकोडर्मा, सोरियासिस, लाइकिन प्‍लेनस, वार्ट सहित विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों के अलावा अर्थराइटिस, प्रोस्टेट घटाने, किडनी स्टोन, किडनी फेल्योर, लिवर सिरोसिस, फैटी लिवर सहित कई अन्य रोगों के इलाज पर शोध किया है, जिसके डॉक्यूमेंट्स, एवीडेंस मौजूद हैं। ये शोध विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ गुप्ता ने बताया कि उनके द्वारा अब तक स्त्री रोगों, त्वचा रोगों तथा एक्सपेरिमेंटल पर आधारित तीन पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं।

मेरिट और लिमिटेशन का रखना होगा ध्यान

प्रमुख सचिव के साथ चर्चा में डॉ गिरीश ने एक महत्वपूर्ण बात कही कि आयुष पद्धतियों के चिकित्सकों को अपनी-अपनी चिकित्सा पद्धति की मेरिट और लिमिटेशन को ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिये। उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को स्वत: निष्कर्ष निकालना चाहिये कि किन रोगों के लिए उनकी चिकित्सा पद्धति में अच्छा इलाज है, तथा किन रोगों का उनसे बेहतर इलाज दूसरी चिकित्सा पद्धति में है। मरीज के सम्पर्क करने पर यदि चिकित्सक को लगता है कि उसके रोग का इलाज दूसरी विधा में ज्यादा अच्छा है, तो ईमानदारी के साथ मरीज को उस विधा के चिकित्सक के पास रेफर कर देना चाहिये। डॉ गुप्ता ने यह भी कहा अपने लिए एक लक्ष्मण रेखा खींचते हुए चिकित्सकों को मिक्सोपैथी से बचना चाहिये, मिक्सोपैथी को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि चिकित्सक को अपना इलाज करते समय अपनी दवा के साथ ही दूसरी विधा की दवाएं नहीं लिखनी चाहिये, क्योंकि जिस चिकित्सा पद्धति की डिग्री नहीं ली है, उस पद्धति की दवा लिखना गैरकानूनी और अनैतिक है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग मिक्सोपैथी करके पैसा भले ही कमा लें लेकिन इससे वे अपनी चिकित्सा पद्धति का नुकसान करते हैं। डॉ गुप्ता ने यह भी कहा कि होम्यापैथिक दवा बनाने वाली कम्पनियां रोग के नाम से पेटेंट दवा बनाती हैं, यह भी गलत है, एक प्रकार की दवा से उस रोग के सभी मरीज ठीक हो जायें, ऐसा सम्भव नहीं है, क्योंकि होम्योपैथिक पद्धति का सिद्धांत है कि इलाज रोग का नहीं बल्कि रोगी का किया जाता है, रोगी को हुए रोग के लक्षणों के साथ ही रोगी की प्रकृति, पसंद-नापसंद, उनके मन की स्थिति जैसी जानकारियों की हिस्ट्री लेकर ही उस रोग की दर्जनों दवाओं में से उस मरीज विशेष की हिस्ट्री के हिसाब से उपयुक्त उसके लिए दवा का चुनाव किया जाता है।

होम्योपैथी की उपयोगिता को शासन के समक्ष अत्यंत प्रभावी ढंग से रखने के लिए डॉ गिरीश की सराहना विभाग में भी हो रही है। कहा जा रहा है कि होम्योपैथिक पर डॉ गुप्ता का पिछले चार दशकों से अधिक समय से किया जा कार्य वाकई आधुनिक माहौल के अनुसार वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरा उतरता है। ज्ञात हो अनेक होम्योपैथिक चिकित्सक काम तो अच्छा कर रहे हैं, मरीजों को फायदा भी होता है लेकिन प्रॉपर डॉक्यूमेंटेशन, उनके रोग से पूर्व और रोगमुक्त होने के बाद की जांच रिपोर्ट, फोटो आदि दस्तावेज साक्ष्य के रूप में उपलब्ध न होने से चिकित्सकों की दावेदारी कमजोर पड़ जाती है।

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