पीएसबीआई संक्रमण से हो सकती है शिशु की मृत्यु
लखनऊ। कोई शिशु जन्म से मां का दूध या दूध न पी पा रहा हो, या पीना बंद कर दे या ठीक से ना पीये, आक्षेप, छाती मे गंभीर आरेखण, बुखार या गर्म स्पर्श 37.5 डिग्री सेंटीग्रेड या ऊपर, कम शरीर का तापमान या ठंड 35.5 डिग्री सेंटीग्रेड से भी कम तेजी से श्वास लेना, 60 से अधिक श्वास प्रति मिनट, स्थानीय संक्रमण और पीलिया की जांच, उम्र बढऩे की समस्याओं या कम वजन के कारण 7 दिनों से ऊपर की आयु में निमोनिया की पहचान करना है। यदि इनमें से एक या अधिक लक्षण मौजूद हों तो तुरंत सावधान हो जायें चिकित्सक से सम्पर्क करें, क्योंकि ये लक्षण पीएसबीआई संक्रमण के हो सकते हैं।
यह बात पीएसबीआई संक्रमण से होने वाली मौतों को कम करने के लिए चल रही परियोजना की प्रमुख अन्वेषक व केजीएमयू के बाल रोग विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. शैली अवस्थी ने कही है। उन्होंने बताया कि सम्पूर्ण भारत मे नवजात बच्चों की मौत की दर 41/1000 है जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में यह मृत्यु दर 63/1000 है। इस मृत्यु दर में 0-59 दिनों के बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। एक अनुमान के मुताबिक 15 प्रतिशत शिशुओं में अधिक गंभीर जीवाणु संक्रमण पीएसबीआई में से एक या अधिक लक्षण मिलता है और इनमें से एक चौथाई बच्चों के परिवार के सदस्यों द्वारा अपने बच्चे को भर्ती कर इलाज कराने से इनकार कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त आधे से ज्यादा बच्चों के परिजन निजी/ अयोग्य चिकित्सकों अथवा झाडफ़ंूक करने वालों के पास चले जाते हैं यही नवजात बच्चों की उच्च मृत्युदर का कारण है।
शोध परियोजना पर कार्य कर रही हैं प्रो शैली अवस्थी
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, नेशनल हेल्थ मिशन एवं किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के सहयोग से पीएसबीआई के लक्षणों की शीघ्र पहचान कर इससे होने वाले नवजात बच्चों की मौत को कम करने के उद्देश्य से एक शोध परियोजना पर कार्य किया जा रहा है। जिससे ऐसे बच्चों मे पीएसबीआई को पहचान कर उनके उपचार के लिए उन्हें उचित सेण्टर पर भेजकर या घर के समीप उपचार मुहैया कराया जा सके और नवजातों के जीवन की रक्षा की जा सके।
जेन्टामाइसिन की रेफरल खुराक बढ़ा देती है जीवन की संभावना
इस परियोजना को लखनऊ जिले के माल, काकोरी, सरोजनी नगर और गोसाई गंज ब्लॉक में 1 जून 2017 से चलाया जा रहा है। डॉक्टर, एएनएम, आशा को पीएसबीआई की पहचान के लिए प्रशिक्षित किया गया है और एएनएम को को जेन्टामाइसिन की रेफरल खुराक देने के लिए प्रशिक्षित किया गया जिससे नवजात के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है और उपचार मे देरी से बचा जाता है। जो लोग उच्च रेफरल सेण्टर जाने से इनकार करते हैं उन्हे घर के पास ही आउटपेशेण्ट/एम्बुलेटरी केयर के तहत एमाक्सिसिलिन को दिन मे दो बार मुख द्वारा मां के द्वारा एवं इंजेक्शन जेंटामाइसिन रोजाना सीएचसी/पीएचसी पर डॉक्टर या एएनएम के द्वारा दिया जाता है। परियोजना कर्मचारियो के निर्देशन में आशाओं द्वारा राष्ट्रीय गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सलाह दी जा रही है जहां वे बच्चे के जन्म के प्रथम 42 दिनों के अंदर 6 से 7 बार जाती है, जहां वह नवजात शिशु और मां की जांच करती है। इस प्रकार आशा पीएसबीआई के लक्षणों की पहचान करने के लिए तत्पर रहती है। यदि इनमें से एक या अधिक लक्षण मौजूद हो जैसे जन्म से बच्चा मां का दूध या दूध न पी पा रहा हो, या पीना बंद कर दे या ठीक से ना पिये, आक्षेप, छाती मे गंभीर आरेखण, बुखार या गर्म स्पर्श 37.5 डिग्री सेंटीग्रेड या ऊपर, कम शरीर का तापमान या ठंड 35.5 डिग्री सेंटीग्रेड से भी कम तेजी से श्वास लेना, 60 से अधिक श्वास प्रति मिनट, स्थानीय संक्रमण और पीलिया की जांच, उम्र बढऩे की समस्याओं या कम वजन के कारण 7 दिनों से ऊपर की आयु में निमोनिया की पहचान करना है।
कुलपति ने कहा, परियोजना को देते रहेंगे सहयोग
यह परियोजना पूर्व में काफी सफल रही है और इसे आशा बहुओं द्वारा पीएसबीआई के लक्षणों को पहचाना जाना और एएनएम द्वारा रेफरल से पूर्व जेंटामाइसिन का डोज दिया जाना प्रशंसनीय है। डॉ.समीरा अबूबकर और डॉ.कसौंडे मिविंगा द्वारा 22 जुलाई से 26 जुलाई तक परियोजना क्षेत्र के पीएचसी/सीएचसी और ग्राम्य सहायक केंद्रों पर भ्रमण कर परियोजना के कर्मचारियों, और समुदाय के लोगों से बात कर संतुष्ट हुये। वे परियोजना निदेशक आलोक कुमार महाप्रबंधक चाइल्ड हेल्थ डॉ. अनिल वर्मा और किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मदनलाल ब्रह्म भट्ट से मिले तथा कुलपति प्रो. भट्ट द्वारा परियोजना की सराहना की गई और कुलपति ने इस परियोजना को लगातार सहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया है।