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रेगुलर दवा खाने के बाद भी अगर परेशान कर रहा है अस्थमा, तो अब मौजूद है इसका नया इलाज

-हेल्थ सिटी विस्तार सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पल्मोनरी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ ओपी वर्मा से विशेष बातचीत

सेहत टाइम्स

लखनउ। ब्रॉकियल अस्थमा के रोगी, रेगुलर दवा खाने के बाद भी आराम नहीं मिलता तो ऐसे व्यक्ति जटिल अस्थमा से ग्रस्त हो सकते हैं, उनके लिए भी अब नया इलाज उपलब्ध है, इस इलाज को करने से उनका बिगड़ा हुआ अस्थमा नियंत्रित हो जाता है, जिसके बाद वे अपने जीवन का अच्छे से निर्वहन कर सकते हैं।

यह महत्वपूर्ण जानकारी हेल्थ सिटी विस्तार सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के चीफ कन्सल्टेंट व हेड डॉ ओपी वर्मा ने ‘सेहत टाइम्स’ के साथ एक विशेष वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि मरीजों का अस्थमा जब अनियंत्रित हो जाता है, और नॉर्मल दवाओं, इन्हेलर के बाद भी नियंत्रण में न आ रहा हो, बल्कि स्थिति और बिगड़ती जा रही हो तो ऐसे अस्थमा को जटिल स्थिति का अस्थमा कह सकते हैं, इस अस्थमा को भी कंट्रोल करने का नया इलाज उपलब्ध है।

डॉ वर्मा ने बताया कि इस नये इलाज के लिए इन्हेलर्स के अलावा बायोलॉजिक्स के इंजेक्शन उपलब्ध हैं, जो इम्युनिटी को बढ़ाते हैं, जिससे सांस की नलियों में सूजन/सिकुड़न रुकती है, यह इंजेक्शन रोगी को माह में एक बार देना होता है, इसके साथ- साथ व्यक्ति की जीवन शैली में बदलाव से इस अनियंत्रित स्थिति को नियंत्रित किया जाता है।

डॉ वर्मा बताते हैं कि इसके अतिरिक्त अस्थमा को कंट्रोल में रखने की वैक्सीन भी उपलब्ध है, वैक्सीन का लाभ यह है कि जब बदलते मौसम या अन्य कारणों से पनपने वाले बैक्टीरिया आदि से अस्थमा रोगियों पर अटैक होता है और उनकी परेशानियां बढ़ जाती हैं, तो ऐसी स्थिति में यदि रोगी को वैक्सीन लगी हुई है तो उसे ये परेशानियां कम होती हैं। उन्होंने सलाह दी कि क्रॉनिक अस्थमा के सभी रोगियों को वैक्सीन लगवानी चाहिये, इन रोगियों के अलावा भी जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, डायबिटीज है, हाइपरटेंशन है, किडनी के मरीज हैं, कार्डियक के मरीज हैं, जिनका लिवर, हार्ट, फेफड़ा कुछ भी प्रत्यारोपित हुआ है तो ऐसे मरीज को भी यह वैक्सीन नियमित रूप से लगवाते रहना चाहिये।

वैक्सीन की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि एक इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन साल में एक बार और न्यूमोकोको की वैक्सीन एक बार लगने के बाद दस साल बाद रिपीट होती है। इसके अलावा एक वैक्सीन हरपीस की होती है, यह भी दस बाद रिपीट होती है। इसके अतिरिक्त एक और वैक्सीन आती है जो बुजुर्ग मरीजों और क्रॉनिक सांस के रोगियों को लगती है, वह है डिप्थीरिया की वैक्सीन, जो बच्चों को भी लगती है, यह वैक्सीन अब बुजर्गों में भी लगनी शुरू हो गयी है।

डॉ वर्मा ने बताया कि कुछ बुजुर्गो को लगातार कफ की शिकायत रहती है, ऐसे लोग कुछ भी दवा लेते हैं लेकिन फिर भी बार-बार असहजता की स्थिति होती है, उन्हें खंखारकर कफ निकालना पड़ता है, दरअसल ऐसे लोगों को डिप्थीरिया की शिकायत हो सकती है। उन्होंने बताया कि डिप्थीरिया में गले में सांस की नली में फ्लेम बनती है जिससे व्यक्ति को लगता है कि गला खराब है और कुछ फंसा-फंसा का महसूस होता है जो कि हल्के खांसने पर निकल जाता है। ऐसे में अगर डिप्थीरिया की वैक्सीन लगी हुई होती है तो इस परेशानी से बच सकते हैं।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर बीमारी गंभीर होती है तो एक समय के बाद इन्हेलर का असर कम हो जाता है। उसे दूसरी दवाओं से ही कंट्रोल में लाना होता है। उन्होंने कहा कि बेहतर स्थिति तो बीमारी से बचाव ही है, इसके लिए प्रदूषण, स्मोकिंग से दूर रहिये, नियमित लंग, चेस्ट की एक्सरसाइज करिये, वजन नियंत्रित रखना चाहिये, भोजन का पैटर्न ध्यान रखना होगा। डॉ वर्मा ने कहा कि जिन चीजों से एलर्जी है, उनसे परहेज करिये, भले ही वह खाने की वस्तु हो या सूंघने की या छूने की वस्तु हो। इसमें एक खास बात उन्होंने कही कि बहुत सी चीजें ऐसी होती हैं कि जिनसे सभी को नुकसान नहीं होता है, एक ही चीज किसी को नुकसान करती है, और किसी को नुकसान नहीं करती है, इसलिए ऐसी चीजों को एक बार इस्तेमाल कर अवश्य देखिये, अगर दिक्कत लगती है तो इसका अर्थ है कि उससे आपको एलर्जी है, तो उस चीज का इस्तेमाल मत करिये लेकिन अगर नुकसान नहीं होता है तो इस्तेमाल करिये और आनंद लीजिये।

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