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क्या पहले रोग बढ़ाती है होम्योपैथिक दवा ?

-जीसीसीएचआर के कन्सल्टेंट डॉ गौरांग गुप्ता ने व्याख्यान में बतायी असलियत

डॉ गौरांग गुप्ता

सेहत टाइम्स

लखनऊ। कई बार ऐसा होता है कि चर्म रोगों में होम्योपैथिक उपचार करने पर रोग उभर आता है, ऐसे में आम धारणा यह है कि ऐसा होम्योपैथिक दवा का इस्तेमाल करने के कारण होता है, लेकिन यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूंं कि रोग का उभार दवा से नहीं बल्कि पूर्व में किये गये स्टेरॉयडयुक्त क्रीम के इस्तेमाल करने के कारण होता है, क्योंकि प्रभावित त्वचा पर स्टेरॉयडयुक्त क्रीम लगाने जो रोग अंदर दब गया था, वह बाहर आता है, चूंकि जब शरीर के अंदर रोगों से लड़ने की शक्ति पर्याप्त मात्रा में बढ़ जाती है तो शरीर कभी भी खराब चीज को अपने अंदर नहीं रहने देता है, उसे बाहर निकालता है, इसीलिए क्रीम का इस्तेमाल बंद करने के बाद त्वचा में दबा रोग उभरने लगता है।

संवेदना होम्योपैथिक ऐकेडमिक प्रोग्राम के तत्वावधान में आयोजित ऑर्गेनन ऑफ मेडिसिन विषय पर दो दिवसीय एजूकेशनल वर्कशॉप में व्याख्यान देने के लिए डॉ गौरांग गुप्ता को सम्मानित किया गया।

यह जानकारी गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के कन्सल्टेंट डॉ गौरांग गुप्ता ने पिछले दिनों गोमती नगर स्थित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्थान में डॉ गौरी शंकर द्वारा संचालित संवेदना होम्योपैथिक ऐकेडमिक प्रोग्राम के तत्वावधान में आयोजित ऑर्गेनन ऑफ मेडिसिन विषय पर दो दिवसीय एजूकेशनल वर्कशॉप में दिये अपने व्याख्यान के दौरान कही। स्टेरॉयडयुक्त क्रीम का इस्तेमाल करना होता है। उन्होंने बताया कि दरअसल उपचार के लिए शरीर पर लगाने वाली क्रीम में स्टेरॉयड होता है, इससे मलहम लगाने पर मरीज को फायदा तो दिखता है, लेकिन दरअसल क्रीम से रोग दब जाता है, शरीर से बाहर निकलता नहीं है। इसीलिए जब मरीज क्रीम लगाना बंद करता है, और दूसरी ओर होम्योपैथिक उपचार करना शुरू करने पर शरीर की जब इम्युनिटी बढ़ती है तो दबी बीमारी शरीर बाहर धकेलता है, जिससे ऐसा लगता है कि होम्योपैथिक दवाओं से रोग बढ़ गया है।

उन्होंने बताया कि क्रीम लगाना बंद करने पर अगर होम्योपैथिक दवा न भी दी जाये तो भी दबा रोग बाहर आयेगा ही आयेगा। डॉ गौरांग ने कहा कि न सिर्फ ऐलोपैथिक बल्कि आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक मलहम भी त्वचा के रोगों को दबाता है, इसलिए त्वचा की बीमारियों का इलाज इंटरनल मेडिसिन (खाने वाली) से ही किया जाना चाहिये, एक्सटर्नल मेडिसिन (लगाने वाली) से नहीं। इसके उदाहरण के लिए उन्होंने दो केसों, एक युवक जो कि सोरियासिस से ग्रस्त था, और एक बच्चा जो मोलस्कम कॉन्टेजिसोयम से ग्रस्त था, के केस के बारे में विस्तार से दिखाया कि किस प्रकार उनका रोग पहले बढ़ा तथा बाद में ठीक हुआ। डॉ गौरांग अपने व्याख्यान के दौरान वहां मौजूद चिकित्सकों से बीच-बीच में बात भी करते रहे, इससे एक प्रकार से यह इंटरेक्टिव सेशन बन गया, जिसे वहां मौजूद चिकित्सकों ने भी पसन्द किया। इस मौके पर डॉ गौरांग गुप्ता को कार्यक्रम के आयोजक डॉ गौरी शंकर ने स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

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