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‘हाफ डॉक्टर’ ने किया फुल मनोरंजन, दिया बड़ा संदेश

-डॉ संदीप कुमार की पुस्तक पर आधारित संगीतमय नाट्य मंचन से दिया बड़ा संदेश

सेहत टाइम्स

लखनऊ। लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी का खचाखच भरे संत गाडगे जी महाराज ऑडिटोरियम का वातावरण रविवार की संध्या को एक अनोखे सांस्कृतिक आयोजन का गवाह बना, जब यायावर रंगमंडल के तत्वावधान में डॉ. संदीप कुमार और अजय अग्रवाल द्वारा लिखित पुस्तक “हाफ डॉक्टर” का लोकार्पण तथा इसी पर आधारित संगीतमय नाट्य मंचन का भव्य आयोजन किया गया।

डॉ. संदीप कुमार ने अपनी पुस्तक “हाफ डॉक्टर में स्वास्थ्य से संबंधित 51 महत्वपूर्ण विषयों को सरल, सहज और व्यावहारिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। “बीमारी क्या है?”, “उसका घरेलू उपचार कैसे हो सकता है?” और “गंभीर अवस्था में उचित चिकित्सा कहाँ करवाई जाए?” – इन सभी प्रश्नों के उत्तर यह पुस्तक अत्यंत सरल भाषा में देती है। इस रचना में भारतीय चिकित्सा परंपरा की गहराई, लोक-ज्ञान की सोंधी सुगंध और आधुनिक विज्ञान का तार्किक संतुलन स्पष्ट रूप से अनुभव होता है। यह कृति केवल स्वास्थ्य जागरूकता फैलाने का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र के सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचे को नई दिशा देने का प्रयास भी है।

कार्यक्रम के दौरान डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. अनिल कुमार त्रिपाठी और वरिष्ठ पत्रकार सुधीर मिश्रा ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक समाज और राष्ट्र दोनों के सशक्तिकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

इसी पुस्तक पर आधारित संगीतमय नाट्य मंचन “हाफ डॉक्टर” का नाट्यलेखन डॉ. छवि मिश्रा द्वारा और निर्देशन पुनीत मित्तल द्वारा किया गया। नाटक ने स्वास्थ्य और समाज के बीच के गहरे संबंधों को मूवमेंट, संगीत और संवाद के माध्यम से जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। नाटक की कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहाँ एक संवेदनशील युवती ‘सेहत’ डॉक्टर बनने का सपना देखती है और अपने गाँव को झोलाछाप डॉक्टरों की ठगी से बचाते हुए सही इलाज के प्रति लोगों को जागरूक करती है। ग्रामीण परिवेश में अम्मा के घरेलू उपचार और नकली डॉक्टर की चालबाजियों के बीच यह नाटक यह संदेश देता है कि स्वास्थ्य केवल दवा से नहीं, बल्कि जागरूकता, विश्वास और स्वस्थ जीवनशैली से भी प्राप्त होता है।

नाटक “हाफ डॉक्टर” में मुख्य भूमिकाएँ हर्षिता बंसल (डॉ. सेहत), अंशिका पाठक (अम्मा), पुनीत मित्तल (डॉक्टर झोला), वंशिका (शीला), प्रियम यादव (माया), अभिषेक (बिट्टू), सरवजीत (राज्जू) तथा अनुपम रस्तोगी और विनय गुर्जर (गाँववाले) ने निभाई। सभी कलाकारों ने अपने सजीव अभिनय और सहज संवादों से दर्शकों के हृदय को स्पर्श किया।

मंच के पीछे अपनी लगन और निष्ठा से प्रस्तुति को सजीव बनाने में मोहम्मद हफीज (प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन), आद्या घोषाल (संगीत संयोजन), शकील (मंच सज्जा) तथा सुश्रुत गुप्ता और अनूप कुमार सिंह (मंच व्यवस्था) का योगदान अत्यंत सराहनीय रहा। मंच संचालन शाखा बंद्योपाध्याय वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी द्वारा किया गया।

नाटक में कॉन्टेम्पररी, कथक और सायकोफिजिकल मूवमेंट का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया गया। मूवमेंट, संगीत और संवाद का संतुलन इस प्रस्तुति को संवेदनशील, हास्यपूर्ण और विचारोत्तेजक – तीनों स्तरों पर प्रभावशाली बनाता है। यायावर रंगमंडल का यह प्रयास निश्चय ही रंगमंच और समाज के बीच संवाद को एक नई दिशा देता है जहाँ कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि चेतना और जागरूकता का माध्यम बनकर उभरती है।

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