-संवेदना होम्योपैथिक ऐकेडमिक प्रोग्राम में डॉ गिरीश गुप्ता का व्याख्यान


सेहत टाइम्स
लखनऊ। मॉडर्न साइंटिस्ट को उसी की भाषा में समझाकर (यानी वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरे परिणाम दिखाकर) ही हम होम्योपैथी की ताकत का अहसास करा सकते हैं, और इसके लिए सिर्फ दो बातों का ध्यान रखना है पहली बात यह कि होम्योपैथिक के मूल सिद्धांत यानी होलिस्टिक अप्रोच (शरीर और मन दोनों को प्रभावित करने वाले कारणों को जानना) के साथ मरीज की हिस्ट्री तैयार कर दवा का चुनाव करें तथा दूसरा जांच रिपोर्ट के साथ मरीज के उपचार का डॉक्यूमेंटेशन मेन्टेन करें। ऐसा करना जहां होम्योपैथी पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों का मुंह बंद करेगा वहीं साक्ष्य आधारित उपचार करके दुनिया भर में अपना परचम लहरा सकते हैं।
डॉ गिरीश गुप्ता ने यह बात यहां गोमती नगर स्थित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्थान के सभागार में 1 एवं 2 नवम्बर को डॉ गौरी शंकर द्वारा संचालित संवेदना होम्योपैथिक ऐकेडमिक प्रोग्राम के तत्वावधान में ऑर्गेनन ऑफ मेडिसिन विषय पर आयोजित दो दिवसीय वर्कशॉप में यूट्राइन फाइब्रॉयड (बच्चेदानी में गांठ) रोग के इलाज पर व्याख्यान के दौरान कही। डॉ गिरीश ने अपने व्याख्यान में हार्मोन के असंतुलन के चलते होने वाली यूट्राइन फाइब्रॉइड बीमारी से ग्रस्त 1157 केसेज की स्टडी के बारे में प्रेजेन्टेशन दिया। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग यह जानने की कोशिश करते हैं कि मैंने रोग विशेष के लिए किस दवा की खोज की है, लेकिन ऐसा नहीं है एक रोग में एक दवा सभी को फायदा करे यह संभव नहीं है, मैंने जो रिसर्च में सफलता हासिल की है वह मरीज के रोग के सही कारण तक पहुंचने और उसके अनुसार दवा का चुनाव करने के होम्योपैथिक सिद्धांत का पालन करने का परिणाम है। उपचार की दिशा मरीज के होलिस्टिक लक्षणों के आधार पर तय जाती है।

डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा कि एवीडेंस बेस्ड मेडिसिन मॉडर्न पैरामीटर पर परखे सोने की तरह है जिसमें मिलावट अलग ही पता चल जाती है, इसलिए हमें मॉडर्न साइंटिस्ट को उसकी भाषा में ही समझाना होगा। उन्होंने कहा कि 1985 में प्रैक्टिस शुरू करने के 10 साल बाद जब मुझे अहसास हुआ तब 1995 में डॉक्यूमेंटेशन प्रारम्भ किया, आज नतीजा यह है कि डॉक्यूमेंटेशन के चलते जहां स्टडी का मार्ग प्रशस्त हुआ वहीं इलाज के पूर्व, इलाज के बीच में और इलाज के बाद की स्थिति की जांच रिपोर्ट से होम्योपैथिक पर उंगली उठाने वालों, इसे प्लेसिबो बताने वालों को सबूत दिखने से बाद से उनकी बोलती बंद हो सकी।
उन्होंने कहा कि डॉ गौरी शंकर का ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन विषय पर किया जा रहा कार्य सराहनीय है, वे डॉ हैनिमैन के सिद्धांत पर चल रहे हैं। डॉ गुप्ता ने अपने रिसर्च वर्क के बारे में बताते हुए कहा कि उनकी स्टडी के परिणाम बीएचएमएस में ऑर्गेनन ऑफ मेडिसिन में पढ़ायी जाने वाली थ्योरी पर मुहर लगाते हैं।
उन्होंने कहा कि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जब मरीज की हिस्ट्री ली जाती है, उस समय किसी कारणवश अगर कोई महत्वपूर्ण बात किसी भी वजह से रिकॉर्ड में नहीं आती है, और रोग का कारण उसी बात में छिपा होता है तो जाहिर है मरीज को लाभ नहीं होगा, रोग अपनी जगह बरकरार रहेगा। उन्होंने कहा कि लेकिन यहां यह ध्यान देने की बात है कि कई बार ऐसा भी होता है कि जब इलाज से फायदा न होने पर केस का पुनरावलोकन किया जाता है जिसमें होलिस्टिक एप्रोच के साथ फिर से मरीज का इतिहास लिया जाता है, इसमें यह भी होता है कि अब तक जो दवा दी गयी थी उस दवा से पूर्व की हिस्ट्री में बतायी गयीं बहुत सी दिक्कतें ठीक हो चुकी होती हैं, लेकिन चूंकि मुख्य दिक्कत जिसे लेकर मरीज क्लीनिक आया था, वह बनी रहती है, ऐसे में दोबारा हिस्ट्री लेते समय जब मुख्य दिक्कत का कारण सामने आता है और उसके अनुसार दवा दी जाती है तो मरीज को लाभ हो जाता है। अपनी इस बात की पुष्टि के लिए उन्हें यूट्राइन फाइब्रॉइड के एक केस का विस्तार से वर्णन भी किया।
आयोजक डॉ गौरी शंकर, डॉ रेनू महेन्द्रा ने डॉ गिरीश गुप्ता को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ पंकज श्रीवास्तव ने अपने चिर-परिचित अंदाज में शेरो-शायरी के साथ एंकरिंग के दायित्व का निर्वहन किया।

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