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सोचने, महसूस करने और कार्य करने के तरीके में सामंजस्य लाता है योग

-एसजीपीजीआई में योग पर कार्यशाला में न्यूरो, कार्डियक, एंडोक्राइन विशेषज्ञों ने बताया योग का वैज्ञानिक महत्व

सेहत टाइम्स

लखनऊ। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हर वर्ष 21 जून को मनाया जाता है. जिससे भारत की प्राचीन परंपरा योग की महत्ता और इसके शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य लाभों को वैश्विक मान्यता दी जा सके। यह दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव के बाद आधिकारिक रूप से घोषित किया गया था। योग केवल व्यायाम का एक रूप नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली है जो मन और शरीर के बीच संतुलन और समरसता को बढ़ावा देती है। आसनों (postures), प्राणायाम (साँस लेने की तकनीक) और ध्यान के माध्यम से योग तनाव को कम करता है, लचीलापन बढ़ाता है, प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करता है और मानसिक स्पष्टता प्रदान करता है। योग दिवस लोगों को इस समग्र अभ्यास को अपनाकर अधिक संतुलित और स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।

वर्ष 2025 का विषय “योग का कल्याण निर्माण में योगदान” इस ओर ध्यान केंद्रित करता है कि योग कैसे जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम में एक प्रभावशाली उपकरण बनता है और जीवन में संतुलन बनाए रखने में सहायता करता है। इसी भावना के अनुरूप, संजय गांधी स्रातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआईएमएस), लखनऊ ने 14 जून को एक व्यापक और प्रभावशाली कार्यशाला का आयोजन किया, जिसका आयोजन अस्पताल प्रशासन विभाग द्वारा जनरल हॉस्पिटल, एसजीपीजीआईएमएस के सहयोग से एसएस अग्रवाल ऑडिटोरियम में किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. आर. हर्षवर्धन, चिकित्सा अधीक्षक एवं प्रमुख, अस्पताल प्रशासन विभाग, एसजीपीजीआईएमएस के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने सभी गणमान्य व्यक्तियों और उपस्थितजनों का स्वागत करते हुए कहा कि योग हमारे सोचने, महसूस करने और कार्य करने के तरीके में सामंजस्य लाता है। उन्होंने संस्थान के योग और जीवन में संतुलन मिशन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “योग जीवनशैली रोगों की रोकथाम और पूरक चिकित्सा के रूप में आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल में अत्यंत प्रासंगिक है।” इसके बाद प्रो. देवेंद्र गुप्ता, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, एसजीपीजीआईएमएस ने योग एक जीवनशैली है, केवल व्यायाम नहीं विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि योग केवल एक अभ्यास नहीं बल्कि एक जीने का तरीका है, जो समग्र स्वास्थ्य और दीर्घकालिक आनंद की ओर ले जाता है।

प्रो. आर. के. धीमन, निदेशक, एसजीपीजीआईएमएस ने योग और दैनिक जीवन : सक्रिय और सजग रहने का मार्ग विषय पर प्रेरणादायक भाषण दिया। उन्होंने बताया कि योग केवल चटाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें हर पल में वर्तमान रहने की शिक्षा देता है चाहे हम चल रहे हों, खा रहे हों, काम कर रहे हों या आराम कर रहे हों। विशेष अतिथि के रूप में डॉ. पियाली भट्टाचार्य, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, जनरल हॉस्पिटल, एसजीपीजीआईएमएस ने भाग लिया।

सभी वक्ताओं को प्रो. आर. हर्षवर्धन द्वारा Celebrating Life: 6 Steps to Complete the Blossoming of your Consciousness” (लेखक: ऋषि नित्यप्रज्ञ) पुस्तक के रूप में एक अर्थपूर्ण स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की वैज्ञानिक रूपरेखा विविध और समृद्ध थी, जिसे ईशा फाउंडेशन और आर्ट ऑफ लिविंग की उपस्थिति ने और भी रोचक बना दिया।

डॉ. रोहित उनियाल (ईशा फाउंडेशन) ने आत्मचिंतन, संतुलन और आंतरिक परिवर्तन की यात्रा पर सभी को प्रेरित किया। उन्होंने इनर इंजीनियरिंग जैसी विधाओं को समझाते हुए बताया कि योग जीवन को सरल और संतुलित बनाता है। इसके बाद डॉ. वी. के. पालीवाल, प्रोफेसर, न्यूरोलॉजी विभाग, एसजीपीजीआईएमएस ने “साँस से मस्तिष्क तकः प्राणायाम कैसे तंत्रिका तंत्र को शांत करता है” विषय पर प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि नियंत्रित श्वास प्रक्रिया सीधे हमारे ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम, विशेष रूप से पैरासिंपैथेटिक शाखा को प्रभावित करती है, जो विश्रांति और उपचार से जुड़ी होती है।

इसके बाद डॉ. हर्षित खरे, असिस्टेंट प्रोफेसर, कार्डियोलॉजी विभाग, एसजीपीजीआईएमएस ने “हृदय स्वास्थ्य में योग की भूमिका विषय पर बात की। उन्होंने बताया कि नियमित आसनों से रक्त संचार, लचीलापन और हृदय की कार्यक्षमता में सुधार होता है, जबकि प्राणायाम और ध्यान तनाव और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। डॉ. अम्बिका टंडन, असिस्टेंट प्रोफेसर, एंडोक्रिनोलॉजी विभाग, एसजीपीजीआईएमएस ने “मधुमेह और मोटापे के प्रबंधन में योग की भूमिका पर प्रकाश डाला। योग मनोवैज्ञानिक कारकों जैसे तनाव, भावनात्मक भोजन और निष्क्रिय जीवनशैली को नियंत्रित करने में सहायक होता है। अंत में. डॉ. श्वेता उपाध्याय और अंजलि सेठ के नेतृत्व में आर्ट ऑफ लिविंग टीम ने सत्र का एक शांत, स्फूर्तिदायक समापन किया। उन्होंने बताया कि जब मन शांत होता है. शरीर स्वस्थ होता है, और आत्मा प्रसन्न होती है तब व्यक्ति समाज में शांति और करुणा का संचार करता है।

सत्र का समापन डॉ. शालिनी त्रिवेदी, अकादमिक वरिष्ठ रेजिडेंट, पीडीसीसी इंचार्ज (रोगी सुरक्षा एवं संक्रमण नियंत्रण) के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। उन्होंने सभी गणमान्य अतिथियों, वक्ताओं, ईशा फाउंडेशन और आर्ट ऑफ लिविंग की टीमों, आयोजकों और प्रतिभागियों का धन्यवाद किया।
इस आयोजन में 150 से अधिक प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिनमें नर्सिंग ऑफिसर, वरिष्ठ नर्सिंग स्टाफ, योग प्रशिक्षक, एनजीओ सदस्य, स्वास्थ्यकर्मी, और मेडिकल टेक्नोलॉजी एवं नर्सिंग कॉलेज के छात्र शामिल थे। इसने यह सिद्ध किया कि योग केवल साल में एक दिन मनाने की चीज नहीं, बल्कि यह एक दैनिक उपहार है- शक्ति, शांति और सम्पूर्ण स्वास्थ्य की ओर एक मार्ग है।

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