-कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में गीता-दर्शन, योग और आयुर्वेद की भूमिका और महत्व पर दो दिवसीय वेबिनार सम्पन्न
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय, संस्कृत विभाग के पदमश्री प्रोफेसर बृजेश कुमार शुक्ल ने कहा है कि यदि हम मानवीयता और उच्च संस्कारों को पुनर्जीवित करें तो कोरोना जैसी महामारी और विपदाओं से बचा जा सकता है।
प्रोफेसर बृजेश कुमार शुक्ल ने “कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में गीता-दर्शन, योग और आयुर्वेद की भूमिका और महत्व” विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप में अपने सम्बोधन में योग दर्शन, श्रीमद्भागवत गीता और आयुर्वेद की भूमिका पर अपने विचार रखते हुए संपूर्ण समन्वय और मानवीय संवेदनाओं के विकास की आवश्यकता पर बल दिया।
वेबिनार का आयोजन महाराजा बिजली पासी राजकीय स्नातकोत्तर महविद्यालय, आशियाना, लखनऊ के संस्कृत विभाग द्वारा किया गया। 30 व 31 मई को दो दिन तक चले इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में देश-विदेश के कई विषय विशेषज्ञों और चिंतकों ने भाग लिया और कोविड-19 से उत्पन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और शारीरिक चुनौतियों के संबंध में अपने नवीन और और उत्कृष्ट विचार रखे।
मानवीय और प्राकृतिक विपदाओं से बचा सकते हैं कर्म
विशिष्ट अतिथि के रुप में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रोफ़ेसर हरिप्रसाद अधिकारी ने श्रीमद्भागवत गीता और योग संबंधी भारतीय ग्रंथों में आपदाओं से बचने के उपाय पर विस्तृत प्रकाश डाला। नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय, काठमांडू, नेपाल से प्रोफेसर काशीनाथ न्यूपाने ने अपने मुख्य वक्तव्य में गीता दर्शन को पुनः परिभाषित किया और कर्म की महत्ता को मानवीय और प्राकृतिक विपदाओं से बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय बताया। संस्कृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रोफेसर मुरली मनोहर पाठक ने योग और गीता दर्शन पर वर्तमान परिस्थितियों में विचार रखते हुए श्रेष्ठ संस्कारों को आत्मसात करने पर जोर दिया।
गीता में दिये स्थितप्रज्ञ से किया जा सकता है कोविड से मुकाबला
आयुर्वेद महाविद्यालय और चिकित्सालय, लखनऊ से प्रो0 प्रकाश चंद्र सक्सेना ने आयुर्वेद में उल्लिखित उन उपायों पर सहज तरीके से चर्चा की जिनसे कोविड-19 जन्य परिस्थितियों में मुकाबला कर सकते हैं। द्वितीय दिवस के मुख्य वक्ता गढ़वाल विश्वविद्यालय, उत्तराखंड के डॉ आशुतोष कुमार गुप्ता ने श्रीमद्भागवत गीता में व्याख्यायित स्थितप्रज्ञ को वर्तमान परिस्थितियों में कोविड-19 से मुकाबला करने का उत्तम मार्ग बताया।
हॉन्ग कॉन्ग से जुड़ी पारोमिता घोष ने योग, चिंतन, आसन व प्राणायाम के व्यवहारिक पक्ष पर सविस्तार चर्चा की। महाराष्ट्र से डॉ प्रीति बोरकर ने आयुर्वेद को कोविड-19 से बचने और प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की कुंजी बताया। गुजरात से डॉ शांतनु मिश्र ने प्राकृतिक चिकित्सा और योग के पारस्परिक समन्वय के माध्यम से कोविड-19 जन्य परिस्थितियों में स्वयं को सशक्त करने का श्रेष्ठ मार्ग बताया। लखनऊ विश्वविद्यालय के यौगिक केन्द्र के डॉ0 सत्येंद्र मिश्रा ने योग दर्शन पर विस्तार से अपने विचार रखें। गोरखपुर से वैद्य डा0 मृत्युंजय त्रिपाठी ने आयुर्वेद के व्यावहारिक पक्ष को स्पष्ट किया।
30 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गये
अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में लगभग 300 प्रतिभागियों ने परिचर्चा में भाग लिया और 30 से अधिक शोध पत्रों का वाचन किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजु दीक्षित ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद दिया। प्रोफेसर मंजु दीक्षित ने प्राचीन भारतीय संस्कृति की ओर लौटने का आह्वान किया।
कार्यक्रम का सफल संचालन अंतरराष्ट्रीय वेबिनार की संयोजिका और संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ उमा सिंह और सह-संयोजक हिंदी विभाग डॉ0 राघवेंद्र मिश्र द्वारा किया गया। वेबिनार के आयोजन सचिव डॉ0 गुंजन शाही और डॉ0 मधुमिता गुप्ता ने अपनी-अपनी भूमिकाओं का सफलतापूर्वक निष्पादन किया। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के समन्वयक डॉ0 अजीत कुमार ने महाविद्यालय परिवार और आयोजन समिति की ओर से सभी अतिथि वक्ताओं, विभिन्न माध्यमों से ऑनलाइन जुडे लगभग 1000 से अधिक प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया। महाविद्यालय परिवार के सभी प्राध्यापक और कर्मचारी सामाजिक दूरी का अनुपालन करते हुए अपने अपने घरों से इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में अपना सहयोग प्रदान किया।