मानसिक उत्पीड़न के लिए कौन जिम्मेदार, व्यापम, सहयोगी मित्र या केजीएमयू प्रशासन?
पद्माकर पाण्डेय ‘पद्म’
लखनऊ। केजीएमयू में स्त्रीरोग विभाग की जूनियर डॉक्टर जेआर थ्री ट्रॉमा सेंटर के तृतीय तल स्थित टीवीयू में जिन्दगी और मौत से जूझ रही है। चिकित्सकों के अनुसार उसकी हालत अत्यंत गंभीर बनी हुई है। इस बीच उसकी बहन ने उसके सहयोगी साथी डॉ.उधम सिंह पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज करा दिया है, जबकि अन्य सहयोगियों का मानना है कि व्यापम मामले में आरोपी होने की वजह से ज्रूनियर डॉक्टर को एमडी की परीक्षा में बैठने से रोका गया था, जिससे वह तनाव में थी। वहीं कॉलेज प्रशासन पर आरोप लग रहें हैं कि अगर उसे हौसला दिया जाता तो वह आत्महत्या जैसा कदम न उठाती।
मेहनत से काम और जिम्मेदारी पूर्ण करने वाली जेआर थ्री ने शनिवार शाम को बेहोशी की हाईडोज दवा लेकर आत्महत्या करने का प्रयास किया था । ट्रॉमा में अचेत अवस्था में भर्ती है, उसकी इस हालत तक पहुंचने के कारणों के कयास लगाये जा रहे हैं। जूनियर डॉक्टर की बहन ने, उसके मित्र डॉ.उधम सिंह पर ही प्राथमिकी दर्ज कराते हुए लड़ाई झगड़ा करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया है। सूत्र बता रहे हैं कि बेहोशी की दवा लेने के पहले डॉ. उधम सिंह से उसकी फोन पर लगातार बात हो रही थी, शनिवार शाम को डॉ.उधम सिंह राउण्ड ले रहे थे, उस दौरान उसका फोन आ रहा था, उधम सिंह ने राउंड के बाद बात करने की बात कही, मगर बाद में उसका फोन नहीं उठा। देर शाम उधम उसका हाल लेने सबसे पहले उसके कमरे पहुंचा तो देखा कि वह बेहोश पड़ी है, उसने तुरन्त साथियों को बुलाकर फर्स्ट एड दिया और ट्रॉमा सेंटर पहुंचाया। पॉजिटिव प्रयासों से उसको टीवीयू में भर्ती कराया जा सका।
मगर दूसरी तरफ जूनियर डॉक्टर की बहन का आरोप है कि उसकी बहन और उधम सिंह में कल लड़ाई हुई थी, उधम ने ही आत्महत्या के लिए उकसाया था, जिसकी वजह से बहन ने आत्महत्या की कोशिश की है। वहीं अन्य सहयोगियों का मानना है कि डॉ.उधम सिंह से कुलीग होने के नाते मित्रता थी अन्य साथियों की अपेक्षा अधिक बॉडिंग थी। उधम सिंह ने ही उसके घर वालों को घटना से सूचित किया था।
केजीएमयू को नियमों में ढील देनी चाहिये
वहीं कुछ शिक्षकों का मानना है कि छह माह अबसेंट होने की वजह से उसे परीक्षा से रोका गया था, जिससे वह डिप्रेशन में थी। कई छात्रों के साथ अक्सर होता है, ऐसे में कॉलेज प्रशासन को छात्रों की निष्ठा, काम के दबाव, अनुशासन और पढ़ाई के दबाव को देखते हुए नियमों को कुछ नरम कर देने चाहिये, क्योंकि अब्सेंट होने के वाजिब कारण भी हो सकते हैं, जिन्हें छात्र चाह कर भी नहीं टाल सकता है। ऐसे में उसका कैरियर प्रभावित होने पर वह टूट जाता है। पीड़िता डॉक्टर के साथ भी कुछ ऐसा ही था। कॉलेज प्रशासन को नरमी दिखानी चाहिये थी, ताकि उसका हौसला बना रहता।