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तनाव, उच्च रक्तचाप और क्रॉनिक किडनी रोग का आपस में गहरा सम्बन्ध

-उच्च रक्तचाप जैसी सह-रुग्णताओं co morbidities को बढ़ाता है क्रोनिक किडनी रोग

डॉ नारायण प्रसाद

सेहत टाइम्स

लखनऊ। तनाव एक महत्वपूर्ण कारक है जो क्रोनिक किडनी रोग (CKD) सहित कई पुरानी बीमारियों में योगदान देता है। तनाव, उच्च रक्तचाप और क्रोनिक किडनी रोग के बीच गहरा संबंध है। तनाव क्रोनिक किडनी रोग की प्रगति को भी तेज कर सकता है। क्रॉनिक किडनी रोग उच्च रक्तचाप जैसी सह-रुग्णताओं co morbidities को बढ़ाता है।

यह कहना है संजय गांधी पीजीआई के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ नारायण प्रसाद का। एक विशेष वार्ता में डॉ नारायण प्रसाद ने ‘सेहत टाइम्स’ को बताया कि जब कोई व्यक्ति तनाव में होता है, तो सहानुभूति तंत्रिका तंत्र sympathetic nervous system की गतिविधि में वृद्धि होती है। इससे तनाव हार्मोन stress hormones और अधिक मात्रा में रिलीज़ होते हैं। ये हार्मोन हृदय और संवहनी प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे तनाव उच्च रक्तचाप और गुर्दे की बीमारी से जुड़ जाता है।

उन्होंने कहा कि सीकेडी हाईपरटेंशन होनेे का एक बड़ा कारण है, और यह सेकंडरी हाईपरटेंशन का सर्वाधिक प्रचलित कारण है। डॉ नारायण प्रसाद कहते हैं कि जब उच्च रक्तचाप कम उम्र, विशेष रूप से 40 वर्ष की आयु से पहले विकसित होता है, तो क्रोनिक किडनी रोग अक्सर एक महत्वपूर्ण योगदान कारक होता है। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त, क्रोनिक किडनी रोग के चलते उत्पन्न हुआ यह उच्च रक्तचाप हृदय संबंधी जटिलताओं के जोखिम को बढ़ाता है, जिससे पूरा स्वास्थ्य खराब होता है।

गुर्दा रोगी प्रोटीन का सेवन बंद न करें, बस थोड़ा कम कर दें

एक प्रश्न के उत्तर में डॉ नारायण प्रसाद ने बताया कि संतुलित आहार स्वस्थ गुर्दे के कार्य को बनाए रखने और गुर्दे की बीमारी की प्रगति को रोकने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि यदि गुर्दे की बीमारी हो गयी है तो इसे बढ़ने की गति को धीमा करने में सबसे महत्वपूर्ण आहार संबंधी विचारों में से एक उचित और पर्याप्त पोषण है। उन्होंने कहा कि आहार को दवा के रूप में माना जाना चाहिए। डॉ नारायण प्रसाद ने कहा कि दो प्रमुख आहार घटक जो गुर्दे की बीमारी की प्रगति को कम करने में महत्वपूर्ण रूप से मदद करते हैं, वे हैं कम नमक का सेवन और प्रोटीन प्रतिबंध। इसके अतिरिक्त, डिस्लिपिडेमिया (असामान्य कोलेस्ट्रॉल स्तर) एक और कारक है जो क्रोनिक किडनी रोग को तेजी से बढ़ने का कारण बन सकता है। अत्यधिक वसा का सेवन किडनी के कार्य पर दबाव डाल सकता है और इसके स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह अवश्य ध्यान रखें कि प्रोटीन सेवन प्रतिबंधित करने का मतलब यह नहीं है कि प्रोटीन को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए। इसका मतलब बस सामान्य सेवन सीमा से थोड़ा कम प्रोटीन का सेवन करना है। जैसे कि सामान्य व्यक्ति प्रति दिन शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम लगभग 0.8 से 1 ग्राम प्रोटीन का सेवन करता है, तो क्रोनिक किडनी रोग वाले व्यक्तियों को प्रति दिन शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम 0.6 से 0.8 ग्राम का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी प्रकार नमक के सेवन की बात करें तो आदर्श रूप से, नमक का सेवन अनुशंसित सीमा (प्रति दिन 5 ग्राम) से अधिक नहीं होना चाहिए। अत्यधिक नमक का सेवन हाइपरफिल्ट्रेशन का कारण बन सकता है जो क्रोनिक किडनी रोग की प्रगति को खराब और तेज कर सकता है।

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