-कोविड से निपटने में टीबी के लिए बनाये गये सेटअप ने निभायी अहम भूमिका
-केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग में विश्व टीबी दिवस पर समारोह का आयोजन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। जो एकता और एकजुटता कोविड से मुकाबला करने में अपनायी उसी तरह से टीबी को खत्म करने के लिए भी हमें प्रयास करना होगा। अब वह समय आ गया है कि उसी एकजुटता के साथ हमें टीबी जैसी गम्भीर बीमारी के प्रसार को भी खत्म करना होगा। कोविड महामारी से निपटने में टीबी की बीमारी के लिए स्थापित की गयीं प्रयोगशालाओं, उपकरणों एवं सर्विलांस सिस्टम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
ये विचार आज यहां केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर विभाग द्वारा विश्व टीबी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक दिवसीय अपडेट समारोह में विशेषज्ञों ने व्यक्त किये। विशेषज्ञों ने कहा कि नवीन अनुसंधान करके टीबी के लिए नवीन दवाइयां एवं उपकरण तैयार करने होंगे जिससे कि टीबी के इलाज में सफलता मिले एवं उसके प्रसार (मुख्यतः मल्टीड्रग रेजिस्टेन्ट टीबी) को रोका जा सके। इस अपडेट में देश और प्रदेश के विभिन्न प्रमुख चेस्ट एवं टीबी विषेशज्ञ और मेडिकल छात्रों ने भाग लिया। अपडेट की शुरुआत उद्घाटन समारोह से हुई। कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ बिपिन पुरी, प्रति कुलपति डॉ विनीत शर्मा, डीन डॉ एके त्रिपाठी, पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकान्त और पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ वेद प्रकाश ने इस समारोह में भाग लिया।
उत्तर प्रदेश में राज्यपाल के सक्षम मार्गदर्शन और नेतृत्व के माध्यम से टीबी के हजारों बच्चों को बेहतर और समग्र देखभाल के लिए गोद लिया गया है। लोगों के द्वारा कोविड अनुकूल व्यवहार को स्वीकार करने से टीबी की रोकथाम में काफी मदद मिलेगी। राज्यपाल के नेतृत्व में टीबी की बीमारी से ग्रसित बच्चों को गोद लिया जा रहा है जिससे उनके इलाज को सुगम बनाया जा रहा है। इसी कड़ी में पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन ने भी विभिन्न गांव के 24 बच्चों को गोद लेकर उनके इलाज को सुगम बनाया है एवं उनकी स्वास्थ्य सम्बिन्धित सहायता की।
मुख्य अतिथि कुलपति ने 2025 तक भारत में टीबी के खतरे को समाप्त करने के लिए अपनाई जा रही रणनीतियों पर जोर दिया। कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ प्रशांत बाजपेयी ने भारत में टीबी रोग के बोझ और इस बीमारी पर काबू पाने की भविष्य की चुनौतियों पर अपने विचार साझा किये। डॉ आरएएस कुशवाहा प्रोफेसर रेस्पिरेटरी मेडिसिन केजीएमयू लखनऊ ने फेफड़े के अतिरिक्त दूसरे अंगो में होने वाली टीबी के संक्रमण के लक्षण एवं उपचार के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की।
डॉ वेद प्रकाश ने ड्रग सेंसिटिव ट्यूबरकुलोसिस के इलाज पर प्रकाश डाला। उन्होने वियमित रूप से टीबी की दवा लेने और उसके पूरा कोर्स करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने टीबी रोगियों में एचआईवी परीक्षण और उपके उचित उपचार की आवश्यकता पर भी जोर दिया। प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलॉजी डॉ अमिता जैन ने टीबी रोग को पहचान्ने के लिए नयी एवं उन्नत तकनीकों के विषय पर जानकारी दी। डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने ड्रग रेजिस्टेंट (दवा प्रतिरोधी) टीबी के विषय पर अपने ज्ञान को साझा किया और बताया कि कैसे हम सभी प्रकार की टीबी के खिलाफ एक यूनिवर्सल टीबी की दवा के कोर्स की दिशा में आगे बढ सकते हैं।
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष पल्मोनरी मेडिसिन एसजीपीजीआई लखनऊ डॉ आलोक नाथ ने टीबी से बचाव के लिए इलाज के बारे में भारतीय परिप्रेक्ष्य पर अपनी बात रखी। उन्होंने कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों जैसे एचआईवी रोगियों, एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों और 5 वर्ष के कम उम्र के बच्चे जो टीबी रोगियों के निकट संपर्क में आये हैं, उनके टीबी से बचाव के तरीको पर जोर दिया। डॉ सूर्यकान्त ने राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के पहत टीबी के खिलाफ लड़ाई और टीबी मुक्त के लक्ष्य को प्राप्त करने में मेडिकल कॉलेजों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताया।
आपको बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक टीबी के प्रसार को 80 प्रतिशत एवं टीबी से होने वाली मृत्यु को 90 प्रतिशत कम किया जा सके। इसके लिए विश्व की सभी सरकारों को चाहिए कि उच्च स्तरीय प्रतिबद्धता एवं वित्त पोषण के साथ ऐसी रणनीति अपनाएं जिससे कि टीबी के संक्रमण के लिए अत्यधिक संवेदनशील आबादी जैसे सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछडे लोगों को टीबी की बीमारी के लिए जागरूकता एवं स्वास्थ्य सहायता मुहैया करायी जाए जिससे कि टीबी के प्रसार को कम किया जा सके एवं टीबी के रोगियों का अच्छा इलाज हो सके। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन- 2025 तक टीबी मुक्त भारत है।
I was examining some of your blog posts on this website and I believe this internet
site is real informative! Retain posting.Raise blog range