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आरएसएस की स्थापना के 100 वर्ष होना खुशी की नहीं, दु:ख की बात : संघ प्रचारक संजय श्रीहर्ष

-नववर्ष चेतना समिति, बाराबंकी के तत्वावधान में संगोष्ठी सम्पन्न

सेहत टाइम्स

लखनऊ/बाराबंकी। संजय श्रीहर्ष, संघ प्रचारक, अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री, भारतीय इतिहास संकलन योजना ने कहा है कि संघ की स्थापना के सौ वर्ष हो रहे हैं यह खुशी की बात नहीं है, बल्कि यह दुख की बात है क्योंकि राष्ट्रवाद और समाज सुधार के जिन लक्ष्य की पूर्ति के लिए संघ की स्थापना की गयी थी, वह 100 साल में भी पूरा नहीं हुआ है। इसीलिए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघ आज भी अपने कार्य में लगा हुआ है। उन्होंने भारतीय संस्कृति पर हो रहे हमले को बचाने के लिए मातृशक्ति का आह्वान किया है कि वे ही यह कार्य कर सकती हैं।

संजय श्रीहर्ष ने ये विचार आज बाराबंकी में नगर पालिका परिषद के हॉल में नव वर्ष चेतना समिति के तत्वावधान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना के 100वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में अपने सम्बोधन में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना के 100 वर्ष पर दुखी होने की बात को इस तरह से समझें कि जैसे शरीर पर कोई घाव होता है तो घाव के ऊपर एक पपड़ी जम जाती है, धीरे-धीरे जब शरीर स्वस्थ हो जाता है तो पपड़ी ऊपर से निकल जाती है, यह पपड़ी ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है। लेकिन अफसोस की बात है कि हमारा खून बिगड़ गया, हमें राष्ट्र सेवा में भी काम करना चाहिये लेकिन समाज में मैं, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे के हितों तक ही लोग सिमट गये हैं। समाज, राष्ट्र के प्रति भी हमारा उत्तरदायित्व है, इसे हम भूल गये हैं।

उन्होंने कहा कि इसी प्रकार एक और लक्ष्य था भेदभाव विहीन समाज का निर्माण करना, जैसे लिंग भेद, समानता का भाव, गरीब और अमीर का भेद, शिक्षा का भेद, भेदभाव विहीन समाज भावना भी हम पूरी तरह से दूर नहीं कर सके हैं। यह भी हम अभी दूर नहीं कर सके हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य के लिए अगला लक्ष्य तय करने से पहले पिछले लक्ष्य पर भी ध्यान देना होगा। हमें देखना होगा कि विश्व में किसी के भी साथ अन्याय होता है तो हमारी आवाज निकलती है क्या, और उस आवाज की धमक से अन्याय करने वाले पर असर होता है क्या।

उन्होंने कहा​ कि 1983 मे लखनऊ में संघ के कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में सर संघ चालक बाला साहेब देवरस ने स्वयं सेवकों को 40 साल के लिए जो लक्ष्य दिया था, 2023 में 40 साल पूरे हो चुके हैं, हम उस लक्ष्य में कहां तक पहुंचे, यह देखना होगा। उन्होंने कहा कि बाला साहेब ने लक्ष्य दिया था रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, अतिथि सत्कार। अब इसकी पूर्ति पर नजर डालें तो आज रोटी, कपड़ा तो थोड़ा सा भी प्रयास करने से मिल जाती है, लेकिन मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, अतिथि सत्कार की व्यवस्था अभी सभी लोगों तक पूरी नहीं हुई है।

उन्होंने कहा कि हम भी नहीं चाहते हैं कि लगातार 100 वर्ष तक हम शाखा चलाते रहें, क्योंकि शाखा चलाने के लिए भी परिवारों ने अपने बेटों को समाज सेवा के लिए समर्पित किया है, माताओं ने अपने लड़कों को देश सेवा के लिए सौंप कर घर से भेज देती है। लोगों को सुधारने के लिए शाखा लगातार चलाते रहना हमारी मजबूरी है। डॉ हेडगेवार का स्वप्न आज भी अधूरा है।

माताएं अपने बच्चों को मोबाइल से बचायें

उन्होंने कहा कि आज भारतीय संस्कृति पर हमला हो रहा है, हमारी माताएं, बहने बताती हैं कि सिंदूर लगाने पर उनका मजाक बनाया जाता है, उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को बचाने की जरूरत है, इसे महिलाएं ही बचा सकती हैं, क्योंकि आज भी महिलाएं दीवारों पर रेखाचित्र बनाती हैं, उसमें इतिहास की झलक होती है, बच्चे के जन्म, शादी-विवाह में जो गीत गा रही हैं, उनमें भी इतिहास की झलक होती है, उन्होंने महिलाओं का आह्वान किया कि कोई मजाक उड़ाये तो उसका दृढ़ता से जवाब देना होगा। संजय श्रीहर्ष ने कहा कि आजकल के बच्चों का बचपन मोबाइल लील रहा है, विकृतियां दे रहा है, माता ही बालक को संस्कार देती हैं, माताओं से मैं निवेदन करता हूं कि बच्चों को मोबाइल से बचायें।

आखिर क्यों पड़ी नववर्ष चेतना समिति के गठन की जरूरत

इससे पूर्व नववर्ष चेतना समिति की बाराबंकी शाखा के संरक्षक डॉ विनय कुमार जैन ने आये हुए अतिथियों का स्वागत किया। नववर्ष चेतना समिति के सचिव डॉ सुनील अग्रवाल ने अपने संबोधन में पिछले दिनों उन्नाव में आयोजित व्याख्यानमाला का जिक्र करते हुए नववर्ष के उपलक्ष्य में आगामी 29-30 मार्च को लखनऊ में होने वाले कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी। नववर्ष चेतना समिति के अध्यक्ष डॉक्टर गिरीश गुप्ता ने बताया कि नव वर्ष चेतना समिति बनाने की आवश्यकता अगली पीढ़ी को भारतीय नव वर्ष के बारे में चेतना जगाने के लिए 2009 में की गयी थी। क्योंकि लोग ज्यादातर अंग्रेजी का नया साल जो 1 जनवरी से प्रारंभ होता है उसी के बारे में जानते थे। डॉ एससी राय ने पहल करते हुए नव वर्ष चेतना समिति का गठन किया। डॉ गिरीश गुप्ता ने बताया कि समिति के प्रयासों के फलस्वरूप जो खास काम हुए उनमें सम्राट विक्रमादित्य पर डाक टिकट जारी होना, लखनऊ में सरदार पटेल डेंटल कॉलेज के सामने पार्क का आवंटन मुख्य रूप से शामिल हैं। उन्होंने बाराबंकी में भी विक्रमादित्य के नाम पर पार्क, चौराहा डेवलप करने का आह्ववान किया। उन्होंने आगामी भारतीय नववर्ष मनाने की भी अपील की। नववर्ष चेतना समिति की मुख्य संरक्षक रेखा त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में संघ की स्थापना डॉ हेगड़ेवार ने कैसे की, इसके बारे में जानकारी दी।

महिलाएं निडर बनें, डरें नहीं

बाराबंकी जिला संघ चालक डॉ आर एस गुप्ता ने संघ के पांच परिवर्तन के बारे में बताते हुए कहा कि इनमें पहला कुटुंब प्रबोधन, दूसरा सामाजिक समरसता, तीसरा पर्यावरण, चौथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और पांचवा है नागरिक कर्तव्य है। उन्होंने बताया महाभारत काल में वर्ण व्यवस्था तो थी लेकिन जाति व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने कहा कि जाति, उपजाति में बंटे होने के कारण हम लोग कमजोर हो रहे हैं, इसलिए समानता लाने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने महिला दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि महिलाएं आजादी की कहानियां पढ़ें, उन्होंने कहा कि निडर बनिये, डरिये नहीं। इस मौके पर 15 महिलाओं को उपहार देकर सम्मानित किया गया। नववर्ष चेतना समिति के उपाध्यक्ष अजय सक्सेना ने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय पंचांग की एक खास बात है आप हमेशा बता सकते हो कि फाल्गुन की पूर्णिमा पर होली, श्रावण की पूर्णिमा पर रक्षाबंधन होता है, इसके लिए किसी भी कलेंडर को देखने की जरूरत नहीं है।

जब हम एक होंगे तो शक्तिशाली होंगे

कार्यक्रम के अध्यक्ष आध्यात्म गुरु स्वामी चेतनानंद ने विक्रमादित्य के बारे में बोलते हुए कहा कि सम्राट विक्रमादित्य विक्रम संवत के प्रवर्तक थे, उन्होंने ईसा से 57 वर्ष पूर्व शकों को परास्त करके अखंड भारत का निर्माण किया। उन्होंने कहा कि जब हमारा नव वर्ष आता है तो हम लोग नवरात्र में मां भगवती का पूजन करते हैं, नयी फसलें आ जाती हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग समाज को तोड़ते हैं और कुछ लोग समाज को जोड़ते हैं हमारा जो संत समाज है चाहे भगवान बुद्ध, रामकृष्ण, गोरख नाथ, शंकराचार्य, स्वामी दयानंद, विवेकानंद जितने भी महापुरुष हैं, सब ने समाज को जोड़ा है। जब हम एक होंगे तो शक्तिशाली होंगे अब समय आ गया है कि हम इन सारी चीजों को छोड़कर के आगे बढ़े और संघ की जो परियोजनाएं हैं वही संतों की परियोजनाएं हैं वही आपका संकल्प है वही हमारा विचार है और जब हम सब लोग एक होकर के कार्य करेंगे तो निश्चित ही भारत को हम आगे ले जाएंगे और इसको हम एक ही बहुत ही सुंदर और सशक्त अच्छा राष्ट्र देखना चाहते हैं तो हम सब मिलकर के इसके लिए कार्य करें। इस अवसर पर बच्चों ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया साथ ही एक मनमोहक नृत्य भी पेश किया। आये हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद नववर्ष चेतना समिति बाराबंकी के अध्यक्ष राम स्वरूप यादव ने ज्ञापित किया। वंदे मातरम के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

कार्यक्रम का संचालन राष्ट्र भाषा परिषद, बाराबंकी के सचिव अजय सिंह ने किया। इस मौके पर नववर्ष चेतना समिति की मुख्य संरक्षक रेखा त्रिपाठी, अध्यक्ष डॉ गिरीश गुप्ता, सचिव डॉ सुनील अग्रवाल, उपाध्यक्ष अजय सक्सेना, उपाध्यक्ष डॉ रंजना द्विवेदी, उपाध्यक्ष डॉ राधेश्याम सचदेवा, उपाध्यक्ष बिन्दा प्रसाद पाण्डेय, समीर चंदेल, कार्यकारिणी सदस्य शोभित अग्रवाल, कार्यालय प्रभारी अरुण कुमार मिश्रा, कार्यकारिणी सदस्य राकेश कुमार यादव, कार्यकारिणी सदस्य हरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, कार्यकारिणी सदस्य मुदिल सिंघल, कार्यकारिणी सदस्य श्यामजी, कार्यकारिणी सदस्य राजेश शुक्ला, पुनीता अवस्थी, अमरजीत मिश्रा, कार्यकारिणी सदस्य कमलेन्द्र मोहन, नववर्ष चेतना समिति उन्नाव के अध्यक्ष अरुण दीक्षित सहित अनेक लोग उप​स्थित रहे।

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