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राज्‍यों की सरकारें कर्मचारियों की सुन नहीं रहीं, प्रधानमंत्री से लगायेंगे गुहार

-इप्‍सेफ की वर्चुअल बैठक में शामिल हुए कई प्रदेशों के प्रतिनिधि, 9 अगस्‍त को भेजेंगे ज्ञापन

-आजादी के बाद भी देश भर के कर्मचारी गुलामी की जिंदगी जी रहे

-अक्‍टूबर में राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तय होगी आंदोलन की रूपरेखा

वी पी मिश्र

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। इंडियन पब्लिक सर्विस एंप्लाइज फेडरेशन (इप्सेफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी पी मिश्रा की अध्यक्षता में हुई वर्चुअल बैठक में निर्णय लिया गया कि चूंकि भारत सरकार एवं अधिकांश राज्यों की सरकारें कर्मचारियों की समस्याओं की लगातार अनदेखी कर रही हैं। कर्मचारी संगठनों से मुख्यमंत्री, मंत्री व अधिकारी समस्याओं पर बात करके सार्थक निर्णय करने की इच्छाशक्ति नहीं रखते हैं, ऐसे में देशभर के कर्मचारी भी देश की आजादी की 74वीं वर्षगांठ पर आर्थिक एवं सामाजिक न्याय की मांग करेंगे और प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजेंगे।

इप्सेफ के राष्ट्रीय महामंत्री प्रेमचंद ने बताया कि कर्मचारियों की अनेक मांगें लंबित पड़ी हैं, अधिकारी भी नाइंसाफी कर रहे हैं। 74 वर्ष की आजादी के बाद भी देश भर के कर्मचारी गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं। अधिकांश मंत्रिमंडल के सदस्य एवं उच्च अधिकारी कर्मचारियों की मांगों पर बात करना भी पसंद नहीं करते हैं, इसलिए 9 अगस्त को देशभर के कर्मचारी आर्थिक एवं सामाजिक आजादी की मांग करने हेतु मीटिंग कर प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजेंगे।

बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि अक्टूबर में इप्सेफ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली में होगी। जिसमें आंदोलन की रूपरेखा घोषित की जाएगी। बैठक में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्‍य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आसाम, मिजोरम आदि प्रदेशों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए।

वी पी मिश्र ने खेद व्यक्त किया कि प्रधानमंत्री एवं कैबिनेट सचिव को देश भर से ज्ञापन भेजने पर महंगाई भत्ता का बकाया किस्तों का जुलाई से भुगतान करने का आदेश तो कर दिया परंतु भत्तों की बकाया कटौती की धनराशि का भुगतान करने का निर्णय नहीं किया। जिसके कारण इस बीच सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को पेंशन, ग्रेच्युटी, लीव इनकेशमेंट आदि में भी घाटा होगा। उनपर कटौती का दोहरा भार पड़ेगा, जो अन्यायपूर्ण है ।

श्री मिश्र ने बताया कि 1977 में इमरजेंसी के दौरान महंगाई की 4 किस्तें नहीं दी गई तो कर्मचारियों की नाराजगी से केंद्र सरकार को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। वर्तमान सरकार यदि कर्मचारियों की पीड़ा को सुनकर सार्थक निर्णय नहीं करेगी तो आगामी चुनाव में उसकी भी वही दशा होगी। देशभर के कर्मचारियों की पीड़ा की अनदेखी की जाती रही तो उसे अनेकों प्रकार से प्रजातांत्रिक आंदोलन करने की बाध्यता होगी।

प्रमुख मांगें

1-   एन पी एस को समाप्त कर पुरानी पेंशन लागू की जाए। सुझाव सरकार अपना 14% धनराशि वापस ले ले और कर्मचारी की 10% जमा धनराशि कर्मचारी के जी पी फण्ड में डाल दे।

2- भत्ते की कटौती की बकाया धनराशि कर्मचारी को वापस कर दें क्योंकि कर्मचारी परिवार बढ़ती महंगाई से कर्जदार हो गया है ।

3- आउटसोर्सिंग/ संविदा कर्मचारियों का भविष्य बनाने के लिए नियमित करने की नीति बनाई जाए तथा उनकी सेवाएं सुरक्षित की जाएं ।

4- अंग्रेजों के समय के बनाएं गये सेवा संबंधी कानून समाप्त करके आधुनिक आजादी के हिसाब कानून बनाया जाए।

5-निजीकरण पर रोक लगाई जाए।

6-  30 जून को रिटायर होने वाले कर्मचारियों को एक इंक्रीमेंट जोड़कर पेंशन निर्धारित की जाए।

इप्सेफ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं कैबिनेट सचिव राजीव गाबा से आग्रह किया है कि देशभर के कर्मचारियों की पीड़ा को सुनने के लिए बातचीत करने का समय निर्धारित करके अवगत कराएं। श्री मिश्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि इप्सेफ गैर राजनीतिक संगठन है। वह केवल देशभर के कर्मचारियों के आर्थिक एवं सामाजिक नयाय दिलाने के लिए प्रयासरत है।

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