-अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्ता ने वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ किया उपचारित केसेज का प्रस्तुतिकरण
सेहत टाइम्स
लखनऊ। आमतौर पर बुजुर्ग पुरुषों को होने वाली प्रोस्टेट बढ़ने की बीमारी बीपीएच की पहली से लेकर चौथी स्टेज तक में होम्योपैथिक दवा अत्यन्त कारगर है, क्लीनिकल के साथ ही अल्ट्रासाउंड, पीएसए, यूरोफ्लोमीटरी, रीनल प्रोफाइल जैसे कई वैज्ञानिक सबूतों की कसौटी पर खरी उतरी स्टडी को जहां होम्योपैथिक जगत में सराहा गया वहीं आधुनिक पद्धति एलोपैथी के केजीएमसी जैसे नामचीन संस्थान के विशेषज्ञों ने भी होम्योपैथी दवाओं के दम को स्वीकार किया। बीपीएच के होम्योपैथिक उपचार से हमने 50 से 60 प्रतिशत मरीजों की सर्जरी बचायी है, जो कि बुजुर्गों के लिए वरदान जैसा है। बीपीएच के ग्रेड 1, ग्रेड 2, ग्रेड 3, ग्रेड 4 केसेज किस प्रकार ठीक हुए और उनके ग्रेड में कमी आयी।
यह बात अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 1994 में बीपीएच पर पहली बार जर्नल में पेपर प्रकाशित करने वाले गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता ने इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रमोशन ऑफ होम्योपैथी (IFPH) द्वारा आयोजित वेबिनार में कही। बीपीएच के मॉडल केसेज की विस्तार से हिस्ट्री प्रस्तुत करते हुए एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने होम्योपैथिक चिकित्सकों से अपील करते हुए कहा कि अगर सभी होम्योपैथिक चिकित्सक इस दिशा में मिलकर कार्य करें तो और बड़ी संख्या में बुजुर्गों को बीपीएच रोग के उपचार में सर्जरी से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंटेशन का मेन्टेनेंस है, पूरे देश में डेटा कलेक्ट करें, सबूत कलेक्ट करें जिसमें अल्ट्रासाउन्ड रिपोर्ट, पीएसए, रीनल प्रोफाइल, यूरो फ्लोमीटरी जैसी जांचें शामिल हों, इन्हीं डॉक्यूमेंटेशन के आधार पर ही स्टडी का जर्नल में प्रकाशन कर रोग को ठीक करने का दावा दुनिया के सामने पेश किया जा सकता है।
केजीएमसी के प्रोफेसर ने भी माना होम्योपैथी का लोहा
आधुनिक चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञों में इस उपचार की स्वीकार्यता के बारे में किस्सा साझा करते हुए डॉ गुप्ता ने बताया कि 1994 में पहली बार जब बीपीएच के केसेज पर मेरा पेपर जर्नल छपा तो इसकी न्यूज को पढ़कर केजीएमसी के यूरोलॉजी के प्रोफेसर हरीश चन्द्रा ने मुझे फोन कर कहा कि प्रोस्टेट को घटाने का दावा आपने किया है, यह कैसे संभव है, उन्होंने मुझसे मिलने को कहा। डॉ गुप्ता बताते हैं कि जब मैं उनसे मिला और ठीक हुए मरीजों की क्लीनिकल हिस्ट्री के साथ अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट दिखायीं तो उन्होंने कहा कि अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट तो करा ली लेकिन इसमें पीएसए, रीनल प्रोफाइल, यूरो फ्लोमीटरी जैसी जांचें तो करायी नहीं। डॉ गुप्ता ने बताया कि इसके बाद मैंने उनके द्वारा बतायी गयीं जांचों को भी अपनी स्टडी में शामिल करना शुरू किया जिसके परिणाम भी अच्छे आये। इस पूरी कवायद का सुखद पहलू यह रहा कि सभी कसौटियों पर खरी उतरी होम्योपैथी के दम को प्रो हरीश चन्द्रा और अन्य कई ऐलोपैथिक विशेषज्ञों ने भी स्वीकार किया। डॉ गुप्ता ने कहा कि यहां यह वाक्या बताने का तात्पर्य यह है कि होम्योपैथी को मुख्य धारा में लाने के लिए इसकी वैज्ञानिक प्रामाणिकता को दिखाकर ही हम यह साबित कर सकते हैं कि होम्योपैथी में कितना दम है। यदि किये गये इलाज के परिणाम के वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद हैं तो उसकी स्वीकार्यता पर कोई भी उंगली नहीं उठा सकता है।
डॉ गुप्ता ने बीपीएच केसेज और उससे जुड़ी स्टडी के जर्नल में पब्लिकेशन के बारे में बताया कि 1994 में उनके बीपीएच के पेपर का प्रकाशन एशियन होम्योपैथिक जर्नल के वॉल्यूम 4 नम्बर 3 जुलाई-सितम्बर 1994 के अंक में हुआ था। ऐसा पहली बार था जब न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में बीपीएच के पेपर का जर्नल में प्रकाशन हुआ था। इसी पेपर को मैंने बंग्लादेश में आयोजित कॉन्फ्रेंस में जनवरी 1994 में प्रस्तुत किया था।
इसके बाद बीपीएच पर भारत सरकार के प्रोजेक्ट पर किये गये कार्य का प्रकाशन आईजेआरएच के पीयर रिव्यू जर्नल के अक्टूबर-दिसम्बर 2010 के अंक में प्रकाशित हुआ। डॉ गुप्ता ने बताया कि भारत सरकार के इस प्रोजेक्ट में यूरो सर्जन डॉ सलिल टंडन और केजीएमसी के यूरो सर्जन डॉ विनोद जैन ने दवा से होने वाले लाभ के आकलन में अपनी सेवाएं दी थीं। डॉ गिरीश ने बताया कि इसके बाद जब मैं 2011 में अमेरिका गया था तो वहां मैंने आईजेआरएच के पीयर रिव्यू जर्नल में छपे पेपर्स के केसेज दिखाये तो वहां मौजूद अमेरिकन जर्नल ऑफ होम्योपैथिक मेडिसिन के पदाधिकारियों ने इस पेपर को अपने जर्नल में भी छापने की इच्छा व्यक्त की, चूंकि यह पेपर भारत सरकार के प्रोजेक्ट से संबंधित केसेज का था, ऐेसे में मैंने सीसीआरएच की सहमति लेना उचित समझा, सहमति के बाद अमेरिकन जर्नल ऑफ होम्योपैथिक मेडिसिन के वॉल्यूम 105 नम्बर 2 समर 2012 Volume 105 No. 2 Summer 2012 में इसका प्रकाशन हुआ। इसके अतिरिक्त बीपीएच पर एक और पेपर का प्रकाशन आईजेआरएच के पीयर रिव्यू जर्नल के अक्टूबर-दिसम्बर 2016 में हुआ।
वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्ता ने बीपीएच के तीन मॉडल केसेज का विस्तार से प्रस्तुतिकरण किया, इनमें पहला केस ग्रेड-3 की प्रोस्टेटोमेगाली (ग्रेड-2 के फैटी लिवर के साथ पीएसए) Prostatomegaly (Grade-3) Prostate specific antigen Fatty Liver (Grade -2), दूसरा केस ग्रेड-2 की प्रोस्टेटोमेगाली-क्रॉनिक किडनी डिजीज (Prostatomegaly (Grade-2) Chronic kidney disease तथा तीसरा केस प्रोस्टेटोमेगाली जो कि सीसीआरएच प्रोटोकॉल पर आधारित था, शामिल था। उन्होंने बताया कि इन तीनों ही केसेज में डॉ हैनिमैन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत, जिसमें उपचार करते समय मरीज के शारीरिक तथा मन:स्थिति के इतिहास को जानकर सम्पूर्ण लक्षणों को ध्यान में रख कर ही दवा का चुनाव किया जाता है, का पालन किया गया। मरीज की आदतों, उसकी पसंद-नापसंद, व्यवहार आदि को ध्यान में रखकर चुनी गयी दवा से उपचार किया गया।
अपने प्रेजेन्टेशन में डॉ गिरीश गुप्ता ने इन मरीजों की रोग के पहले और रोग के बाद की स्थिति को दर्शाते हुए ओरिजनल रिपोर्ट भी प्रस्तुत कीं। साथ ही मरीज के पहले दिन से उनके पास आने के बाद से ठीक होने तक के विजिट, मरीज की विस्तृत हिस्ट्री जैसी सभी प्रक्रियाओं को भी पेपर्स के माध्यम से प्रदर्शित किया। (कुछ पेपर्स के फोटोग्राफ इस समाचार के साथ प्रस्तुत किये गये हैं) इस मौके पर वेबिनार में जुड़े कई चिकित्सकों ने अपने प्रश्न रखे, जिनके बारे में डॉ गुप्ता ने जानकारी दी। वेबिनार में जुड़े चिकित्सकों द्वारा डॉ गुप्ता के कार्य की प्रशंसा के साथ वेबिनार का समापन हुआ।