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सोरियासिस ठीक नहीं हो सकता…होम्योपैथिक दवा देर से फायदा करती है… दोनों धारणाएं गलत

-ग्वालियर में आयोजित सम्मेलन में डॉ गौरांग गुप्ता ने मरीजों के सफल इलाज की बारीकियों की विस्तार से दी जानकारी

-जीसीसीएचआर के संस्थापक डॉ गिरीश गुप्ता ने भी चिकित्सकों से किया साक्ष्य आधारित इलाज करने का आह्वान

-एशियन होम्योपैथिक मेडिकल लीग के राष्ट्रीय होम्योपैथिक सम्मेलन में प्रस्तुत किये गये कई रिसर्च पेपर

सेहत टाइम्स

लखनऊ। होम्योपैथी में किए जा रहे नए शोधों की जानकारी चिकित्सकों में आदान-प्रदान करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एशियन होम्योपैथिक मेडिकल लीग (एएचएमएल), भारतीय चैप्टर द्वारा 3-4 अगस्त को आयोजित राष्ट्रीय होम्योपैथिक सम्मेलन में देश के होम्योपैथिक चिकित्सकों का जमावड़ा लगा। सम्मेलन के समारोह के मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे.के.माहेश्वरी थे।

कॉन्फ्रेन्स के आयोजक सचिव डॉ. राजेश गुप्ता ने आये हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस दो दिवसीय कॉन्फ्रेन्स का मुख्य उद्देश्य होम्योपैथी में किए जा रहे नए शोधों की जानकारी चिकित्सकों में आदान-प्रदान करना है। एशियन होम्योपैथिक मेडिकल लीग के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. गिरीश गुप्ता ने बताया कि एएचएमएल का गठन भारत में 1987 में किया गया था। उन्होंने बताया कि डॉ. जुगल किशोर इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष रह चुके हैं। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य होम्योपैथी का देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रचार-प्रसार करना है। उन्होंने बताया कि होम्योपैथी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आवश्यक है कि वैज्ञानिक तरीके से साक्ष्य रखते हुए लोगों को इसके सफल परिणामों से अवगत कराया जाये। एशियन होम्योपैथिक मेडीकल लीग के भारत के अलावा 14 देशों में सदस्य हैं, जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, रूस, यूक्रेन, कजाकिस्तान, नेपाल, बर्मा, सिंगापुर, फीजी, दुबई। अभी तक यह संस्था 27 अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेन्स एवं 10 राष्ट्रीय कॉन्फ्रेन्स का आयोजन कर चुकी है। आयोजित सम्मेलन में कई रिसर्च पेपर प्रस्तुत किये गये।

दो सौ प्रतिनिधियों की उपस्थिति वाले इस सम्मेलन में लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के कन्सल्टेंट डॉ गौरांग गुप्ता ने त्वचा रोग सोरियासिस को लेकर प्रचलित धारणाओं, कि सोरियासिस रोग ठीक नहीं होता है, और होम्योपैथिक दवाओं से जल्दी फायदा नहीं होता है, को स्टडी के परिणाम के आधार पर गलत साबित किया। ज्ञात हो विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि सोरियासिस ठीक नहीं होता ह़ै।

डॉ गौरांग ने कहा कि यह सही है कि सोरियासिस आसानी से ठीक नहीं होता, यह भी सही है कि सभी केस ठीक नहीं हो पाते हैं, लेकिन यह सही नहीं है, कि होम्योपैथिक उपचार से सोरियासिस ठीक नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि सोरियासिस एक ऑटोइम्यून रोग है, इसमें मन:स्थिति की बड़ी भूमिका है। उन्होंने बताया कि सोरियासिस के उपचार में की गयी स्टडी में यह पाया गया है कि क्लासिकल होम्योपैथी के अनुसार किये गये उपचार के परिणाम सकारात्मक रहे। ज्ञात हो होम्योपैथी का मूल सिद्धांत यही है कि प्रत्येक रोगी की हिस्ट्री लेकर उसके अनुसार दवा तय करनी चाहिये, न कि एक रोग के लिए एक दवा को सभी रोगियों को दी जाये, रोग के इलाज के लिए दवा देते समय केंद्र बिन्दु में सिर्फ रोग नहीं, बल्कि सम्पूर्ण रोगी मन मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली घटनाओं, मरीज के स्वभाव, उसकी पसंद-नापसंद जैसी बातों को ध्यान में रखकर चयन की गयी दवा से उपचार करने पर चमत्कारिक लाभ सामने आते हैं।

डॉ गौरांग ने सोरियासिस के उपचार पर दी गयी अपनी 15 मिनट की प्रस्तुति में दो मॉडल केस प्रस्तुत किये। पहला मॉडल केस प्रस्तुत करते हुए डॉ गौरांग ने बताया कि 25 जुलाई 2019 को एक छह वर्षीय बच्चे को जीसीसीएचआर लाया गया था, परिजनों ने बताया कि एक माह पूर्व से बच्चे के पूरे शरीर में बेहद सूखी, छिली-छिली त्वचा हो रही थी, उसकी हिस्ट्री ली तो पता चला कि बौद्धिक समझ वाले बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा, जिद, भावुकता वाला था, उसे कॉकरोच से डर लगता था, इसके अतिरिक्त उसे नमकीन चीजें पसंद थीं, प्यास ज्यादा लगती थी, ठंड का असर जल्दी होता था तथा वह सोते समय दांत पीसता था।

डॉ गौरांग ने स्लाइड के माध्यम से बताया कि किस प्रकार उसके लिए दवा का चुनाव किया गया, 25 जुलाई 2019 को पहली बार दवा दी गयी, एक हफ्ते बाद 1 अगस्त को काफी लाभ दिखा, लगातार उपचार के बाद 20 सितम्बर को बच्चा पूरी तरह से ठीक हो गया था। उसका इलाज भी बंद हो गया। उन्होंने बताया कि 1 साल 4 महीने 29 दिन बाद 18 फरवरी 2021 को बच्चा किसी दूसरे कार्य से क्लीनिक आया था, तब देखा गया तो उसकी स्थिति बराबर ठीक थी।

दूसरा मॉडल केस 24 वर्ष के युवक का दिखाया, यह युवक 19 जुलाई, 2017 को पहली बार क्लीनिक आया, रोगी ने बताया कि उसे 2012 से चेहरे और नितंबों पर खुजलीदार पपड़ीदार मैकुलोपापुलर घाव थे, हिस्ट्री जानी तो पाया कि वह 2011-12 में रक्षा सेवाओं में चयनित न होने से निराश था। अन्य हिस्ट्री में पाया गया कि युवक में निराशा, उदासी, एकांत की इच्छा, भावुक, अतीत पर विचार करना, छोटी-छोटी बातों पर चिंता करना, जल्दी गुस्सा आना, चिंतन, हथेली में पसीना जैसे लक्षण थे। उन्होंने बताया कि चार-पांच माह बाद भी युवक को फायदा न होने पर 8 दिसम्बर 2017 को केस रिव्यू किया गया, इसके बाद दवा दी गयी, जिसके दो माह बाद ही 6 फरवरी, 2018 को युवक लगभग ठीक हो गया।

डॉ गौरांग ने अपने प्रेजेन्टेशन में यह भी बताया कि देखा गया है कि एमडी या पीएचडी करने वालों को अपनी थीसिस तैयार करते समय मरीजों के रेफरेंस देने में कठिनाई आती है, ऐसे लोगों से यह कहना है कि वे अपनी थीसिस में जीसीसीएचआर में सोरियासिस पर हुए शोध/स्टडी में शामिल केस का रेफरेंस दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस सम्बन्ध में फरवरी 2015 में सोरियासि​स : एन एवीडेंस बेस्ड क्लीनिकल स्टडी और जून 2019 में सोरियासिस : बेस्ट केस सीरीज का प्रकाशन जर्नल में हो चुका है।

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