-प्रिसिज़न और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन प्रणाली से किया जायेगा उपचार
-एक क्रांति के रूप में उभर रही है यह प्रणाली : ले.ज. प्रो बिपिन पुरी
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में सेंटर फॉर प्रोसीजर मेडिसिन (सीपीएम) की शुरुआत हुई है। यह सेंटर उत्तर भारत का पहला सेंटर है। फिलहाल इस केंद्र पर विभिन्न प्रकार के कैंसर को पहचान कर अलग-अलग मरीजों के अनुसार उनके विभिन्न पहलुओं को देखते हुए मरीज विशेष के लिए प्रभावी व सटीक दवा का चुनाव कर उपचार किया जाएगा।
यह जानकारी देते हुए केजीएमयू के सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च के प्रोफेसर एवं संकाय प्रभारी डॉ ए के त्रिपाठी ने बताया कि फिलहाल उपलब्ध सुविधाओं को देखते हुए विभिन्न प्रकार के कैंसर के मरीजों को इस केंद्र पर अध्ययन कर उनके लिए सटीक व प्रभावी दवा का चुनाव कर उन्हें उपचारित किया जाएगा। डॉ त्रिपाठी ने बताया कि बाद में धीरे-धीरे दूसरी बीमारियों के मरीजों को भी देखे जाने की योजना है। उन्होंने बताया कि इस प्रिसिज़न और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन प्रणाली को दिल के रोगों विशेषकर अचानक कार्डियक अरेस्ट होना जैसी बीमारियों के निदान व उपचार में भी प्रभावी पाया गया है।
शुक्रवार को केजीएमयू स्थित इस सेंटर का उद्घाटन कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ विपिन पुरी ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। अपने उद्बोधन में कुलपति ने कहा कि तो प्रिसिज़नऔर पर्सनलाइज्ड मेडिसिन वैज्ञानिक समुदाय और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एक क्रांति के रूप में उभर रही है। इस सेंटर की स्थापना केजीएमयू के लिए मील का पत्थर साबित होगी, उन्होंने कहा कि प्रिसिज़न और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन की दोनों विधाएं अलग-अलग होती हैं, उन्होंने कहा कि इन विधाओं के सही उपयोग से अनुसंधान अध्ययन विभिन्न और सामान्य जन को भी संचार के माध्यम से सही जानकारी मिलती है उन्होंने कहा यह गौरव की बात है कि अपने विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर प्रिसिज़न मेडिसिन उत्तर भारत का पहला सेंटर है।
सेंटर के मुखिया और आज आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर एके त्रिपाठी ने बताया कि प्रिसिज़न और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन विषय रोग विशेषताओं से संबंधित है जिसके आधार में मॉलिक्यूलर अध्ययन सम्मिलित होता है जो कि रोगी के निदान और परिणाम को प्रभावित करती है। उन्होंने बताया कि पर्सनलाइज्ड मेडिसिन में एक व्यापक तरीके से एक व्यक्तिगत रोगी के कई पहलुओं जैसे आयु, लिंग, अनुवांशिक विशेषताएं, एपीजेनेटिक तथ्य और कोमोरबिडिटी शामिल है। उन्होंने कहा कि पर्सनलाइज्ड मेडिसिन में जीवन की गुणवत्ता, मानसिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भी शामिल किया जाता है। प्रिसिज़न और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन दोनों अलग-अलग विधाएं हैं किंतु मरीज को समुचित उपचार के लिए दोनों विधाएं एक-दूसरे के पूरक में काम करती हैं। प्रोफेसर त्रिपाठी ने बताया कि प्रोसीजन उपचार में प्रिसिज़न मेडिसिन और पर्सनलाइज मेडिसिन संयुक्त रूप से प्रभावी है।
समारोह में क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी लंदन से आए प्रोफेसर धवेंद्र कुमार, जोकि सेंटर फॉर प्रिसिज़न मेडिसिन के अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ सलाहकार भी हैं, ने बताया कि संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण अध्ययन के द्वारा कैंसर के आणविक लक्षणों की पहचान में तेजी से प्रगति हुई है तथा इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के कैंसर से उपचार में सहायता मिली है। जिनोमिक अध्ययन से उचित उपचार को सफल बनाया जा रहा है उन्होंने उदाहरण के रूप में बताया कि मानव एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर के रिसेप्टर ट्रेस्टुजुमैब शामिल है तथा वेमुराफेरीन शामिल है। उन्होंने बताया प्रिसिज़न उपचार में नए चिकित्सा उपकरणों में कैंसर कोशिकाएं विशिष्ट मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विशिष्ट एंटीबॉडी प्रतिरक्षा जांच बिंदु अवरोधक कार्ट-टी, कोशिकाएं आदि शामिल हैं, जिनका उपयोग लिंफोइड विकृतियों के प्रबंधन में किया जाता है।
प्रोफेसर धवेंद्र कुमार ने बताया कि टीकेआई अवरोधक क्रॉनिक मायलायड ल्यूकीमिया में उपयोगी है। इसके साथ-साथ एक प्रोटीन ए बी एल/बी सी आर, सी एम एल (क्रॉनिक मायलॉयड ल्यूकेमिया) के उपचार में नियोप्लास्टिक प्रक्रिया की उत्पत्ति एवं रखरखाव के लिए जिम्मेदार है।
संगोष्ठी में ऑनलाइन माध्यम से जुड़े हैदराबाद के प्रोफेसर थंगराज ने पापुलेशन जिनोमिक्स के जरिए अपने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शोध के जरिए बताया कि हम भारतीयों की मूल उत्पत्ति कहां हुई है वहीं लंदन के प्रोफेसर शरलै तथा प्रोफेसर पीर मोहम्मद ने दवाओं के लोगों में अलग-अलग प्रभाव के कारणों को जेनेटिक संरचना से जोड़कर बताया कि कुछ दवाएं जैसे वारफैरिन (ब्लड थिनर) देने से पहले मरीज की संबंधित जीन संरचना का अध्ययन किया जाता है।
इस मौके पर केजीएमयू के प्रोफेसर शैली अवस्थी ने बताया कि प्रिसिज़न मेडिसिन को यूजी-पीजी के कोर्स में शामिल किया जा रहा है, जिससे मेडिकल स्टूडेंट्स को भी इसकी जानकारी शुरू से ही मिलने लगेगी। केजीएमयू की प्रोफेसर अमिता जैन ने प्रिसिज़न मेडिसिन की कोविड-19 अंदर महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताया।
केजीएमयू के ही प्रो शैलेंद्र सक्सेना ने बताया कि उपचार के साथ-साथ वैक्सीन के निर्माण में भी यह विधा महत्वपूर्ण है, आने वाला समय इसी विधा के ऊपर निर्भर रहेगा। उन्होंने कहा कि सटीक दवा (पीएम) और सटीक सार्वजनिक स्वास्थ्य (पीपीएच), जिसका उद्देश्य अद्वितीय व्यक्ति या जनसंख्या-स्तर के लक्षणों के लिए उपचार और हस्तक्षेप करना है, पारंपरिक सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोणों का पूरक हो सकता है। सटीक चिकित्सा दृष्टिकोण बायोमार्कर की एक श्रृंखला के आधार पर अधिक सटीक निदान और उपचार पर जोर देते हैं, जिसमें आनुवंशिक वेरिएंट और रोगियों के पर्यावरण, जीवन शैली और व्यवहार के बारे में डेटा शामिल हैं। COVID-19 के प्रति व्यक्तियों की संवेदनशीलता और प्रतिक्रियाओं में भिन्नता को समझने में PM दृष्टिकोण उपयोगी हो सकता है। उदाहरण के लिए, हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि गंभीर COVID-19 संक्रमण क्रोमोसोम 3 (3p21.31) और क्रोमोसोम 9 (9q34.2), ApoE e4 जीनोटाइप, और एक्स-क्रोमोसोमल टीएलआर7 पर लॉस-ऑफ-फंक्शन वेरिएंट से जुड़े हैं। हालांकि इन रूपों के नैदानिक महत्व पर बहस चल रही है, इस तरह के निष्कर्ष प्रारंभिक अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं कि जनसांख्यिकी और कॉमरेबिडिटी (सहरुग्णता) के मामले में समान दिखने वाले मरीजों में काफी अलग प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। सटीक दृष्टिकोण आशाजनक हैं, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और बीमारी के मूलभूत कारणों को दूर करने के प्रयासों को बदलने के बजाय पूरक होना चाहिए।
प्रोफेसर त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान समय में अनुसंधान के लिए धन सीमित है, और उसे देश में बजट, बीमारी के बोझ और प्राथमिकताओं के आधार पर आवंटित और निर्देशित किया जाना चाहिए जिससे कि बड़ी आबादी लाभान्वित हो सके। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर रश्मि कुशवाहा ने किया तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ एसपी वर्मा ने किया।