-भारतीय प्रोस्थोडॉन्टिक सोसायटी के सम्मेलन में प्री-कॉन्फ्रेंस कोर्स का आयोजन
-केजीएमयू में आयोजित सम्मेलन में दुनिया के कई देशों से विशेषज्ञ भाग ले रहे
सेहत टाइम्स
लखनऊ। कॉस्मेटिक दृष्टिकोण के लिहाज से सर्वाधिक महत्वपूर्ण चेहरे से जुड़े अंगों के नष्ट हो जाने की दशा में असली जैसे दिखने वाले कृत्रिम अंगों के पुनर्निर्माण की जानकारी देते हुए किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) ने पूरे भारत में मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेसिस, मौखिक पुनर्वास के लिए डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया।
केजीएमयू के मीडिया प्रवक्ता डॉ सुधीर सिंह द्वारा जानकारी देते हुए बताया गया है कि केजीएमयू ने पहले भारतीय प्रोस्थोडॉन्टिक सोसायटी के सम्मेलन में प्री-कॉन्फ्रेंस कोर्स का आयोजन किया है। इस आयोजन में डॉ तीरथवज श्रीथिवाज, महिदोल विश्वविद्यालय, थाईलैंड और डॉ सुनीत, डॉ रघुवर, डॉ बालेंद्र और डॉ नीति सहित केजीएमयू की टीम ने कृत्रिम आंखों के निर्माण का प्रशिक्षण दिया। इस सम्मेलन के आयोजन सचिव प्रो पूरन चंद द्वारा चेहरे के कृत्रिम अंग के बारे में डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया गया उन्होंने यह भी जानकारी दी कि कृत्रिम आंख के संदर्भ में सर्जन को क्या निर्देश दिए जाने चाहिए ताकि ऑपरेशन के बाद उन मरीजों को अच्छी कृत्रिम आंख दी जा सके जिनकी आंख दुर्घटना, कैंसर आदि के कारण चली गई है।
ज्ञात हो केजीएमयू कुलपति ले जन डॉ.बिपिन पुरी 8 अप्रैल को औपचारिक रूप से सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे। आयोजन अध्यक्ष प्रो. स्वतंत्र अग्रवाल ने कहा कि जनता को जागरूक किया जाना चाहिए कि कृत्रिम आंख, कान, उंगलियों को प्राकृतिक त्वचा के समान दिखने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है।
एम्स, नई दिल्ली की प्रो. वीना जैन ने डॉक्टरों को सभी दांतों के खराब या छोटे होने या बीमारी के कारण टूटने आदि के बारे में प्रशिक्षित किया। उन्होंने बताया कि मरीजों को आउटडोर क्लिनिक में जागरूक किया जाना चाहिए।
डॉ. स्वाति गुप्ता ने डॉक्टरों को कृत्रिम दांत देने के बारे में प्रशिक्षित किया जो डिजिटल स्कैनर का उपयोग करके पर्याप्त कठोरता के साथ अधिक प्राकृतिक दिखता है। इस तकनीक से दूर-दराज के इलाकों में काम करने वाले डेंटल सर्जन भी मुंह की संरचनाओं को स्कैन कर भारत के किसी भी बड़े शहर की लैब में भेज सकते हैं। इस तरह मरीजों को बड़े शहर की यात्रा नहीं करनी पड़ेगी।
इस सम्मेलन में 180 से अधिक प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया है और चार देशों (थाईलैंड, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड और नेपाल) के वक्ता विभिन्न दंत रोगों और उनके उपचार के बारे में अपने अनुभव साझा करेंगे।