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भारी तनाव के बीच ढहने से पूर्व विवादित ढांचे के अंदर रामलला के दर्शन करने का मिला था सौभाग्य

31 वर्ष पूर्व का वह समय रोमांच पैदा कर देता है : डॉ विनोद जैन

सेहत टाइम्स

लखनऊ। दिसंबर 1992 की घटना से पूर्व भारी तनाव के बीच सरकारी ड्यूटी और चिकित्सीय दायित्व निभाने अयोध्या पहुंचे डॉ विनोद जैन विवादित ढांचे के अंदर किए दर्शन के बारे में बताते हुए आज भी रोमांच से भर जाते हैं। केजीएमयू में सर्जरी विभाग में प्रोफेसर, अधिशासी अधिकारी रेडियो केजीएमयू गूंज, प्रभारी केजीएमयू इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्किल्स एवं डीन फ़ैकल्टी ऑफ़ पैरा मेडिकल साइंस की जिम्मेदारी निभा चुके डॉ विनोद जैन ने ‘सेहत टाइम्स’ से अपनी यादों को ताजा किया।

डॉ जैन ने बताया कि वर्ष 1992 में मैं बलरामपुर चिकित्सालय लखनऊ में पोस्टेड था, अयोध्या में किसी तनाव उत्पन्न होने की आशंका को देखते हुए मुझे तीन अन्य चिकित्सकों डॉ यूसी द्विवेदी, डॉ आर के मिश्रा, डॉ एनएन त्रिपाठी के साथ बलरामपुर चिकित्सालय की ओर से अयोध्या जाने का अवसर प्राप्त हुआ।

उन्होंने बताया कि वहाँ पर हम चारों लोग एक गेस्ट हाउस में रुक गए और अयोध्या के चिकित्सालय में अपनी ड्यूटी करने लगे। हमारे साथ गए हुए डॉक्टर यू सी द्विवेदी को वहाँ पर लगभग सभी लोग जानते थे उन्होंने हम सबको हनुमान गढ़ी, सरयू घाट एवं श्रीराम लला विराजमान के दर्शन कराए। साथ में हम लोगों ने बाबरी ढांचा को भी देखा। क्यूँकि हम लोग सरकारी ड्यूटी पर थे तथा हम लोगों के पास सरकारी पास था इस लिए हम लोगों को श्रीराम लला विराजमान तथा विवादित ढांचा को नज़दीक से देखने का अवसर भी प्राप्त हुआ। वहाँ पर हम लोगों ने महंत राम चंद्र परमहंस एवं महंत नृत्यगोपाल दास के भी दर्शन किए तथा उनसे वार्तालाप करके उनका आशीर्वाद भी प्राप्त किया।

डॉ जैन कहते हैं कि उस समय एक अस्थायी निर्माण में श्री रामलला विराजमान थे जिसको देखकर बहुत अच्छा नहीं लगा। जब हम लोगों ने ढांचा अंदर से देखा तो उसमें पाया कि उस के खंभों में और उसकी दीवारों में कुछ ऐसे चिन्ह बने हैं जो वस्तुतः किसी मंदिर में पाए जाते हैं ऐसा लगता था कि किसी मंदिर के अवशेषों से यह ढांचा तैयार किया गया है।डॉ विनोद जैन बताते हैं कि 2 दिसंबर 1992 को तनाव चरम सीमा पर होने की सूचना थी हम सभी लोग सुबह से अयोध्या के चिकित्सालय में तैनात थे। लगभग 11-12 बजे के बीच में अशोक सिंहल के भतीजे अरविन्द सिंघल अयोध्या चिकित्सालय में आए उनके नाक पर चोट लगी हुई थी, हम लोगों ने टाँके लगाए। उन्होंने बताया कि दो तारीख़ की शाम और रात तक हम लोग चिकित्सालय में ही रहे तथा किसी अन्य चिकित्सा कार्य की अपेक्षा करते रहे परंतु उस दिन और कुछ नहीं हुआ, फिर हम लोग 3 और 4 दिसंबर तक भी रुके और 4 दिसंबर की शाम को वापस आ गए। डॉक्टर जैन कहते हैं कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं चार दिन तक श्री रामलला विराजमान की सेवा में अयोध्या में उपस्थित रहा। आज भी श्रीराम लला विराजमान की वह छवि आँखों में बसी है और प्रसन्न्ता इस बात की है कि उनको एक भव्य मंदिर में स्थापित किया जा रहा है जो पूरे राष्ट्र के लिए हर्ष का विषय है।

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