-संजय गांधी पीजीआई के बराबर वेतन व भत्ते देने के शासनादेश को पांच साल बाद भी लागू न किये जाने के विरोध में की जा रही है हड़ताल
सेहत टाइम्स
लखनऊ। पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में पांच वर्षों से लंबित वेतनमान लागू न करने के विरोध में कर्मचारी परिषद के तत्वावधान में गैर शैक्षणिक कर्मचारिचों की बेमियादी हड़ताल पूरे जोश के साथ आज 16 नवम्बर से शुरू हो गयी है। इमरजेंसी सेवाओं को हड़ताल से अलग रखा गया है। कर्मचारियों ने ओपीडी ब्लॉक के गेट पर ही धरना देना शुरू कर दिया है। हड़ताल पर रहते हुए अपनी भागीदारी दिखाते हुए बड़ी संख्या में महिला कर्मचारी भी धरने पर बैठी हैं।
ज्ञात हो लम्बे समय से चल रहे इस मैटर में समय-समय पर विरोध और आश्वासनों का दौर चलता रहा लेकिन शासनादेश पर अब तक क्रियान्वयन न होने के फलस्वरूप आज ऐसी स्थिति आ गयी कि कर्मचारियों की बेमियादी हड़ताल शुरू हो गयी है। इसका खामियाजा सबसे ज्यादा जो भुगतेगा वह होगा मरीज क्योंकि परचा बनाने से लेकर डॉक्टर को दिखाने, जांच आदि सभी जगह गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की भी भूमिका होती है, और चूंकि गैर शैक्षणिक कर्मी ही हड़ताल पर चले गये हैं ऐसे में चिकित्सीय सेवाओं पर सीधा असर पड़ना शुरू हो गया है।
इस बारे में जानकारी देते हुए कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष प्रदीप गंगवार ने बताया कि संजय गांधी पीजीआई के बराबर वेतन-भत्ते देने की तत्कालीन मुख्यमंत्री की घोषणा तथा कैबिनेट के अनुमोदन के पश्चात 23 अगस्त 2016 को शासनादेश निर्गत किया गया था। उन्होंने कहा है कि इस शासनादेश के अनुपालन में पूरे 5 वर्ष पश्चात भी अभी तक मात्र 2 संवर्गों का ही समवर्गीय पुनर्गठन (कैडर स्ट्रक्चरिंग) किया गया है, जिसमें भी सिर्फ़ एक ही सवर्ग के शासनादेश को लागू कर लाभ दिया गया है।
उन्होंने बताया कि जनवरी माह में चिकित्सा शिक्षा एवं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना, तत्कालीन विभागीय अपर मुख्य सचिव डॉ रजनीश दुबे, तत्कालीन अपर मुख्य सचिव वित्त संजीव मित्तल, कुलसचिव तथा कर्मचारी परिषद के मध्य विधान परिषद स्थित मंत्री के कार्यालय में एक बैठक आहूत की गयी ,जिसमें मंत्री द्वारा कर्मचारी परिषद की मांग को जायज़ ठहराते हुए मार्च माह तक चार कैडर तथा सितम्बर माह तक समस्त कैडरों की कैडर स्ट्रक्चरिंग करने के लिए शासन के समस्त उच्चाधिकारियों को निर्देशित किया गया था।
प्रदीप गंगवार का कहना है कि मंत्री के सख़्त निर्देशों के उपरांत भी शासन के अधिकारियों पर कोई असर नहीं पड़ा। आख़िर के जी एम यू के कर्मचारियों ने मजबूर होकर स्वयं को तकलीफ़ देते हुए “पेट के बल लेटकर मुख्यमंत्री से गुहार लगाने का प्रयास किया (जिसमें काफ़ी कर्मचारियों को अभी तक शारीरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है) किंतु कर्मचारियों को रास्ते में ही पुलिस बल द्वारा रोक लिया गया तथा प्रमुख सचिव ,चिकित्सा शिक्षा आलोक कुमार के अनुरोध पर उनके द्वारा सचिवालय स्थित अपने कार्यालय में कुलसचिव की उपस्थिति में कर्मचारी परिषद को आश्वस्त किया गया तथा कहा गया कि सितंबर माह में 4 कैडर तथा विधानसभा चुनाव से पूर्व अन्य कैडरो की कैडर स्ट्रक्चरिंग का पक्का वादा किया गया, लेकिन अफसोस वर्तमान स्थिति तक कोई एक कैडर भी नहीं किया गया है, बल्कि शासन द्वारा कार्य को लम्बित करने के लिए अनावश्यक सूचनाओं का अम्बार लगाकर विलम्ब किया जा रहा है।
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गंगवार ने कहा कि के जी एम यू के कर्मी शासन की नकारात्मक मंशा को भलीभांति जान चुके हैं। के जी एम यू के कर्मचारी दिन-रात कोविड से लेकर आम दिनो तक ट्रॉमा सेंटर से लेकर सुपरस्पेशियलिटी विभागों में अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए शहीद भी हुए हैं, लेकिन उन शहीदों के परिवारों को भी अभी तक सरकार-शासन द्वारा न ही कोई मुआवज़ा दिया गया और न ही कर्मचारियों की कैडर स्ट्रक्चरिंग की जा रही है, जिससे कर्मचारियों में उदासीनता के साथ-साथ रोष उत्पन्न हो रहा है। प्रदीप गंगवार ने यह भी कहा है कि कर्मचारी परिषद ने निर्णय लिया है कि जब तक शासनादेश जारी होना शुरू नहीं हो जाते तब तक सरकार के किसी मंत्री, शासन एवं प्रशासन के किसी भी उच्च अधिकारी के किसी भी आश्वासन पर आंदोलन नहीं स्थगित किया जाएगा बल्कि आंदोलन के समय के जी एम यू में आने वाले मंत्रियों एवं शासन के अधिकारियों का पुरज़ोर विरोध किया जाएगा।