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केजीएमसी के नामचीन प्रोफेसर का तंज चुभ गया था डॉ गिरीश गुप्‍ता को, और फि‍र उनके कदम बढ़े…

-होम्‍योपैथी पर उंगली उठाने वालों को वैज्ञानिक सबूत के साथ जवाब देने के लिए मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही रिसर्च की ओर बढ़े कदम

-पुस्‍तक ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ की समीक्षा भाग-1

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

होम्योपैथिक दवा से अनेक जटिल रोगों के सफल उपचार पर किये गये अपने शोधों का देश-विदेश में लोहा मनवाने वाले लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक व चीफ कंसल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता की हालिया किताब ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ उनके होम्‍योपैथी में किये गये रिसर्च वर्क का निचोड़ है। किताब में बताया गया है कि किस तरह और किन परिस्थितियों में डॉ गुप्‍ता ने अनेक बाधाओं को पार करते हुए होम्‍योपैथी की ताकत को वैज्ञानिक प्रामाणिकता के साथ देश-विदेश के सामने लाने के लिए शोध कार्य किये।

डॉ गुप्‍ता की इस पुस्‍तक का विमोचन केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने नयी दिल्‍ली में आयोजित एक सरकारी समारोह में राज्‍यमंत्री आयुष मंत्रालय डॉ मंजू पारा महेन्‍द्र भाई की उपस्थिति में 9 अप्रैल 2022 को किया था।

केंद्रीय आयुष मंत्री ने किया डॉ गिरीश गुप्‍ता की पुस्‍तक का विमोचन

वास्‍तव में अगर देखा जाये तो यह किताब नये होम्‍योपैथिक चिकित्‍सकों और छात्रों के लिए प्रेरणादायक है। इसमें डॉ गुप्‍ता ने जो अपने अनुभव साझा किये हैं, वे इस बात की प्रेरणा देते हैं कि परिस्थितियां चाहें कितनी भी विपरीत हों लेकिन अगर आपका उद्देश्‍य ‘सर्वे भवन्‍तु सुखिन:’ है, और आपकी इच्‍छाशक्ति मजबूत है तो फि‍र आपके लिए लक्ष्‍य हासिल करना असम्‍भव नहीं है। किसी ने कहा भी है कि ‘कौन कहता है कि आसमां में छेद हो नहीं सकता, एक पत्‍थर तो तबीयत से उछालो यारों…’

डॉ गुप्‍ता ने इस पुस्‍तक में बताया है कि किन परिस्थितियों में उन्‍होंने होम्‍योपैथी में रिसर्च करने की शुरुआत मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही की। यह जुनून भरा संयोग ही था जिसने उनसे वह करा दिया जो आज की तारीख में होम्‍योपैथी की ताकत पर उंगली उठाने वालों को सबूत के साथ जवाब देने में सक्षम है। दरअसल डॉ गुप्‍ता को शोध करने की प्रेरणा होम्‍योपैथी पर किये गये नामचीन चिकित्‍सक के तंज ने दी। उन्‍होंने इस बारे में अपनी किताब में लिखा है कि यह वर्ष 1979 की बात है जब वे लखनऊ में नेशनल होम्‍योपैथिक मेडिकल कॉलेज में चौथे वर्ष के छात्र थे। एक दिन उन्‍होंने लखनऊ से प्रकाशित अंग्रेजी के समाचार पत्र ‘दि पायनियर’ में एक समाचार पढ़ा, जिसमें उस समय के किंग जॉर्ज मे‍डिकल कॉलेज (अब विश्‍वविद्यालय) के मेडिसिन के एक नामचीन प्रोफेसर चिकित्‍सक ने होम्‍योपैथी पर कमेन्‍ट्स करते हुए इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाये थे। इन चिकित्‍सक ने होम्‍योपैथी को प्‍लेसिबो थेरेपी, एक्‍वा थेरेपी और साइको थेरेपी की संज्ञा दी थी। उन्‍होंने यह भी कहा था कि एक चुटकी साधारण नमक अगर हरिद्वार में गंगाजी में डालो तो वह कानपुर पहुंचकर 30 पोटेंसी और इलाहाबाद में 200 पोटेंसी हो जायेगा। इसके अलावा भी इन चिकित्‍सक ने होम्‍योपैथी को लेकर अनेक व्‍यंग्‍यात्‍मक टिप्‍पणियां की थीं।

केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने 9 अप्रैल को नयी दिल्‍ली में  राज्‍यमंत्री आयुष मंत्रालय डॉ मंजू पारा महेन्‍द्र भाई की उपस्थिति में किया था ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ का विमोचन (फाइल फोटो)

डॉ गुप्‍ता ने अपनी किताब में लिखा है कि इस समाचार को पढ़कर उन्‍हें अत्‍यन्‍त पीड़ा हुई, और यह बात उनके दिल पर लग गयी। उन्‍होंने लिखा है कि मैं परेशान था और सोच रहा था कि मेरी स्थिति एक स्‍टूडेंट की है, होम्‍योपैथी पर की गयी इस टिप्‍पणी का जवाब मैं किस प्रकार दे सकता हूं, मैंने अपने कई शिक्षकों व चिकित्‍सकों से इस सम्‍बन्‍ध में बात की, वे सभी होम्‍योपैथी पर की गयी उन चिकित्‍सक की टिप्‍पणी से आहत तो थे लेकिन इस टिप्‍पणी पर विरोध जताने के लिए खुलकर सामने आने को तैयार नहीं थे। डॉ गुप्‍ता लिखते हैं कि मैं बहुत बेचैन रहा और विचार करता रहा कि क्‍या करूं, अंतत: इस टिप्‍पणी का मुंहतोड़ जवाब देने का फैसला मैंने किया और इसके लिए मैंने एक ‘लेटर टू एडिटर’ लिखा और सम्‍पादक से मिलकर उसे छापने का अनुरोध किया, लेकिन अफसोस सम्‍पादक इसके लिए तैयार नहीं हुए।

वे लिखते हैं कि इसके बाद मैं लगातार सम्‍पादक से मिलकर अपनी बात कहता रहा, इसका नतीजा यह हुआ कि वे मेरा पत्र, जिसमें मैंने होम्‍योपैथी के सिद्धांतों की वैज्ञानिकता की व्‍याख्‍या की थी, उसे छापने पर सम्‍पादक राजी हो गये। डॉ गुप्‍ता लिखते हैं कि टिप्‍पणी करने वाले वे नामचीन चिकित्‍सक भी इसे पढ़ लें, यह सुनिश्चिờत करने के लिए मैं समाचार पत्र की प्रति उन चिकित्‍सक की क्‍लीनिक में स्‍वयं देकर आया। डॉ गुप्‍ता लिखते हैं कि इस घटना ने मुझे यह सोचने का मसाला दे दिया कि होम्‍योपैथिक पर लगे प्‍लेसिबो थेरेपी, साइको थेरेपी के इस टैग को किस प्रकार वैज्ञानिकता की कसौटी पर कंक्रीट तरीके से साबित करते हुए हटाया जाये।

और यही वह शुरुआत थी जिसने उनकी राह को रिसर्च की ओर मोड़ दिया। डॉ गुप्‍ता लिखते हैं कि इसके बाद मैंने सोचा कि अगर होम्‍योपैथिक दवाओं का असर पौधों के रोगों पर साबित कर दिया जाये तो लोगों को साइको थेरेपी कहने का मौका ही नहीं मिलेगा क्‍योंकि पौधों में नर्वस सिस्‍टम नहीं होता है। पौधों के रोगों पर होम्‍योपैथिक दवाओं का असर साबित करने के लिए मैंने नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट (एनबीआरआई) की ओर कदम बढ़ाये… जारी

(डॉ गिरीश गुप्‍ता के आगे के संघर्ष की दास्‍तां पुस्‍तक समीक्षा के अगले एपीसोड में… जुड़े रहिये ‘सेहत टाइम्‍स’ से)

पुस्‍तक समीक्षा का भाग-2 पढ़ने के लिए क्लिक करें -आसान नहीं रहा एनबीआरआई और सीडीआरआई में रिसर्च प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने का सफर

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