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दीक्षांत समारोह विद्यार्थियों की विजय और बदलाव का दिन, अब मिलेंगी कल्पना से परे चुनौतियां

-एसजीपीजीआई के 29वें दीक्षांत समारोह में डिग्रीधारकों को प्रो. डी. नागेश्वर रेड्डी ने बताये मार्गदर्शन के सूत्र

प्रो. डी. नागेश्वर रेड्डी

सेहत टाइम्स

लखनऊ। एसजीपीजीआई का 29वाँ दीक्षांत समारोह 16 सितंबर को संस्थान के श्रुति सभागार में आयोजित किया गया। इसके मुख्य अतिथि एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (एआईजी) के संस्थापक और अध्यक्ष प्रो. डी. नागेश्वर रेड्डी ने अपने दीक्षांत भाषण के माध्यम से उपाधि प्राप्त करने वालों को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि दीक्षांत दिवस मुख्य अतिथि के बारे में नहीं होता, बल्कि उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों के बारे में होता है। यह आपकी विजय का दिन है, आपके बदलाव का दिन है। आपने एसजीपीजीआईएमएस के पोषण और संवर्धन करने वाले माहौल में वर्षों बिताए हैं, एक ऐसा संस्थान जिसने चिकित्सा शिक्षा, रोगी देखभाल और शोध में मानक स्थापित किए हैं, और अब, आप वास्तविक दुनिया में कदम रख रहे हैं… एक ऐसी दुनिया जो आपको चुनौती देगी, आपकी परीक्षा लेगी, और, मुझे आशा है, आपको ऐसे पुरस्कृत करेगी जिनकी आपने अभी तक कल्पना भी नहीं की होगी।

यह समारोह उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं एसजीपीजीआई की कुलाध्यक्ष आनंदी बेन पटेल की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एवं कैबिनेट मंत्री, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार ब्रजेश पाठक और राज्य मंत्री, संसदीय कार्य, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मयंकेश्वर शरण भी उपस्थित थे।

प्रख्यात भारतीय गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट प्रो. डी. नागेश्वर रेड्डी, जो पद्मश्री (2002), पद्म भूषण (2016) और पद्म विभूषण (2025) तीनों पुरस्कारों से सम्मानित पहले भारतीय हैं, ने आगे भाषण में अपना एक किस्सा साझा करते हुए कहा कि उस समय, एंडोस्कोपी को एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक कैरियर नहीं माना जाता था। वास्तव में, यूरोपीय सम्मेलनों में से एक के दौरान, वरिष्ठ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट में से एक ने मुझसे कहा था कि अगर मैं एंडोस्कोपी करता हूं तो मैं एक तकनीशियन बनूंगा, लेकिन मेरे गुरु डॉ जंग दिलावरी से प्रेरित होकर मैंने चिकित्सीय एंडोस्कोपी को अपना पेशा बना लिया। उन्होंने बताया कि इसके बाद जो हुआ, वह वाकई अत्यंत व्यस्त निजी प्रैक्टिस का दौर था और जिसे आर्थिक सफलता भी कहा जा सकता है। लेकिन एक दिन, मेरे पिता, जो एक प्रतिष्ठित पैथोलॉजिस्ट और शिक्षाविद थे, ने कुछ ऐसा कहा जिसने मुझे पूरी तरह से हिलाकर रख दिया। उन्होंने कहा कि तुम जितना पैसा कमा रहे हो, मैं तुम्हें सफल व्यक्ति नहीं मानता। उन्होंने मुझसे सवाल किया, “तुमने समाज के लिए क्या किया है? क्या तुमने किसी को प्रशिक्षित किया है? क्या तुमने कोई शोध प्रकाशित किया है? क्या तुमने कुछ ऐसा बनाने के बारे में सोचा है जो तुमसे भी ज़्यादा समय तक चले?”

उन्होंने कहा कि यह मेरे जीवन में बदलाव का एक महत्वपूर्ण क्षण था। मुझे एहसास हुआ कि सच्ची सफलता आपकी बड़ी प्रैक्टिस या आपके बड़े बैंक बैलेंस से नहीं, बल्कि दूसरों पर आपके छात्रों पर, मरीजों पर, और खुद सिस्टम पर आपके प्रभाव से मापी जाती है। उस चिंतन ने मुझे समान विचारधारा वाले सहयोगियों के एक छोटे समूह को इकट्ठा करने और एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के निर्माण की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया। यह काम आसान नहीं था – संसाधन कम थे, बुनियादी ढांचा पुरातन था – लेकिन हम डटे रहे। संयोग ने भी अपनी भूमिका निभाई। एक रात, मुझे दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री की पत्नी का इलाज करने के लिए बुलाया गया। वह पित्त की नली में पथरी के साथ सेप्टिक शॉक में थी। हमने एक इमेरजेन्सी ईआरसीपी करके पथरी निकाली और उनकी जान बचाई। मुख्यमंत्री ने, बहुत आभारी होकर, हमें एक बिल्डिंग प्राप्त करने में मदद की, जो गैस्ट्रोएंटरोलॉजी को पूरी तरह से समर्पित 200-बेड वाला पहला अस्पताल बना। उन्होंने कहा कि आज, हम सैकड़ों साथियों को प्रशिक्षित करते हैं, प्रासंगिक शोध करते हैं, और दूरदराज के इलाकों से जुड़ने के लिए टेलीमेडिसिन का उपयोग करते हैं—यह सब उस एक पल के चिंतन की वजह से है, जिसने मेरी प्राथमिकताओं को बदल दिया था।

प्रो रेड्डी ने विद्यार्थियों से कुछ मार्गदर्शक सिद्धांतों को अपनाने का आह्वान किया। इनमें
1. अपने माता पिता से प्रेम करें। उनका आदर करें।
2. अपने शिक्षकों का सम्मान करें।
3. आजीवन सीखते रहें। चिकित्सा विज्ञान हर दिन बदलता है। आप यहाँ जो सीखते हैं, वह आधार है, अंतिम शब्द नहीं। पढ़ते रहें, प्रश्न करते रहें, अपने कौशल को उन्नत करते रहें।
4. अनुशासन, दृढ़ संकल्प और दृष्टिकोण विकसित करें।एक तेज़ दिमाग ही पर्याप्त नहीं है। केवल बुद्धिमत्ता ही नहीं,अपितु अनुशासन, दृढ़ संकल्प और एक सकारात्मक सहयोगी रवैया ही आपको आगे लेकर जाएगा।
5. मजबूत सहकर्मी नेटवर्क बनाएँ। यहाँ आपने जो दोस्ताना और व्यावसायिक संबंध बनाए हैं, उन्हें संजो कर रखें। ये आने वाले दशकों तक आपका साथ देंगे।
6. अनुभूति और संचार कौशल विकसित करें। केवल बीमारी का इलाज करना ही पर्याप्त नहीं है; आपको व्यक्ति को भी ठीक करना होगा। अपने मरीज़ों के भय को सुनें, समझें और उनसे करुणा से बात करें।
7. नेतृत्व और टीम वर्क सीखें। आज से, आपको लीडर के रूप में देखा जाएगा। विनम्रता, कृतज्ञता और ज़रूरत पड़ने पर “धन्यवाद” और “क्षमा करें” कहने की क्षमता के साथ नेतृत्व करें।
8. उद्यमशीलता और वित्तीय साक्षरता को अपनाएँ। धन, यदि बुद्धिमानी से उपयोग किया जाये, तो यह संस्थानों के निर्माण, शोध को बढ़ावा देने और ज़रूरतमंदों तक स्वास्थ्य सेवा पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण ज़रिया है।
9. विनम्र रहें। याद रखें, आपसे हमेशा कोई न कोई बेहतर ज़रूर होगा। विनम्रता आपको ज़मीन से जुड़ा रखेगी और विकास के लिए तैयार रखेगी।
10. स्वास्थ्य और परिवार के साथ काम का संतुलन बनाए रखें। चिकित्सा एक चुनौतीपूर्ण पेशा है, लेकिन अपने स्वास्थ्य, अपने रिश्तों और अपने प्रियजनों की उपेक्षा न करें। ये ऐसी अनमोल धरोहर हैं जिन्हें एक बार खो जाने के बाद दोबारा नहीं बनाया जा सकता।
उन्होंने कहा कि अगर आप जिज्ञासु बने रहें, करुणामय बने रहें, और उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध रहें, तो आप कितनी दूर तक जा सकते हैं, इसकी कोई सीमा नहीं है।

इससे पूर्व समारोह की शुरुआत में पारंपरिक भव्यता के साथ शैक्षणिक जुलूस के आगमन के बाद, सभी ने राष्ट्रगान के साथ खड़े होकर स्वागत किया। तत्पश्चात, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने दीक्षांत समारोह की औपचारिक शुरुआत की घोषणा की। निदेशक प्रो. आर.के. धीमन ने स्वागत भाषण दिया और संस्थान की पिछले वर्ष की प्रगति रिपोर्ट के साथ-साथ संस्थान की भविष्य की योजनाओं की जानकारी भी दी। इसके बाद निदेशक द्वारा सभी उपाधि विजेताओं को शपथ दिलाई गई।

राज्यपाल द्वारा सभी उपाधियाँ वर्चुअल माध्यम से डिजी लॉकर में अपलोड की गईं। राज्यपाल द्वारा योग्य विजेताओं को प्रो. सब्य साची सरकार पुरस्कार, प्रो. एस.आर. नाइक पुरस्कार, प्रो. एस.एस. अग्रवाल पुरस्कार और प्रो. आर.के. शर्मा पुरस्कार प्रदान किए गए। चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण ने सभा को संबोधित किया और छात्रों एवं शिक्षकों को एसजीपीजीआई को चिकित्सा विज्ञान में प्रथम स्थान दिलाने के लिए कड़ी मेहनत और प्रगति के लिए प्रोत्साहित किया।

ब्रजेश पाठक ने पुरस्कार विजेताओं को उनकी कड़ी मेहनत और लगन के लिए बधाई दी। डॉ. आर.के. धीमन ने मुख्य अतिथि डॉ. डी. नागेश्वर रेड्डी का औपचारिक परिचय और स्वागत किया।

इसके बाद राज्यपाल आनंदी बेन पटेल का संबोधन हुआ। उन्होंने मेधावी छात्रों को बधाई दी और उनसे ग्रामीण क्षेत्रों में भी सेवा करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “आज उपाधि प्राप्त करने वाले छात्रों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे जीवन में एक बार पाँच रोगियों का निःशुल्क उपचार करेंगे। उनकी चिकित्सीय सेवाओं का आधार सहानुभूति होनी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि “मान्यता और रैंकिंग की प्रक्रिया आपको यह देखने का अवसर देती है कि हमारी क्या कमी है और इस प्रकार हमें सुधार करने का अवसर प्रदान करती है।” उन्होंने कहा कि रोगियों के हित में हमारे संसाधनों का शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इन्हें बेकार नहीं छोड़ा जाना चाहिए। राज्यपाल ने जल प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण पर भी अपनी चिंता व्यक्त की।

राज्यपाल द्वारा दो पुस्तकों का भी विमोचन किया गया, जिनमें 1. योगा कॉफ़ी टेबल बुक: हार्मनी इन हीलिंग और 2. हैंड बुक ऑफ़ कार्डिएक नर्सिंग केयर’ शामिल हैं, जिसके लेखक-कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. आदित्य कपूर हैं। इस अवसर पर स्कूली बच्चों द्वारा पर्यावरण के महत्व पर लघु नृत्य नाटिका और भाषण प्रस्तुत किया गया, जिसकी दर्शकों ने खूब सराहना की। इन बच्चों को राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत किया गया। राज्यपाल द्वारा भाषण प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता के विद्यार्थियों को भी पुरस्कृत किया गया। उन्होंने 5 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को किट भी प्रदान की।

निदेशक एसजीपीजीआई प्रोफेसर आर के धीमन ने मंच पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों को पौधे भेंट करके सम्मानित किया। विभिन्न श्रेणियों में उत्तीर्ण सभी 415 विद्यार्थियों को मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर. डी. नागेश्वर रेड्डी द्वारा उपाधि प्रदान की गई। मुख्य विकास अधिकारी, रायबरेली अर्पित उपाध्याय और प्रधानाचार्य, माध्यमिक विद्यालय, कल्ली पश्चिम, प्रकाश चंद्र तिवारी को विद्यालयों में वितरण के लिए राजभवन की पुस्तकें सौंपी गईं।

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