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एक नर्व के सहारे लटक रहे क्षतिग्रस्‍त हाथ को नौ घंटे की सर्जरी के बाद जोड़ा

-मेदांता हॉस्पिटल में हुई जटिल सर्जरी में हाथ बचाने में मिली सफलता

-सर्जरी के नौ दिन में ही हाथ का सेंसेशन और मूवमेंट सामान्य की ओर

 स्‍लाइड के जरिये पत्रकार वार्ता में दिखाया कि किस तरह डैमेज होकर लटक रहा था हाथ।

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। 21 वर्षीय मे‍डिकल छात्र का भीषण एक्‍सीडेंट में बुरी तरह क्षतिग्रस्‍त दाहिना जो हाथ सिर्फ अलना नर्व के सहारे लटक रहा था। इस हाथ को नौ घंटे चली सर्जरी के बाद बचाने में सफलता मिली है। डॉक्‍टरों का कहना है कि ऐसी भीषण दुर्घटना में जिसमें कुछ भी हो सकता था, लेकिन इस केस में जो अच्‍छी बात रही कि जिस नर्व के सहारे हाथ लटक रहा था वह अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण अलना नर्व थी जो उंगलियों में हरकत पैदा करती है। इसके अतिरिक्‍त जिन सावधानियों ने इस सफल सर्जरी की इबारत लिखी उनमें एक्‍सीडेंट के बाद तुरंत हाथ को सावधानी से लपेटकर बांधना, सभी सुविधाएं और सुपरस्‍पेशियलिस्‍ट डॉक्‍टर की उपस्थिति वाले अस्‍पताल का चुनाव, दो घंटे के अंदर अस्‍पताल पहुंचना, तथा अस्‍पताल पहुंचते ही चिकित्‍सकों की टीम का सक्रिय होना शामिल हैं, क्‍योंकि किसी भी इमरजेंसी में गोल्‍डन आवर्स में प्रॉपर इलाज मिलना बहुत मायने रखता है। वरना जैसे-जैसे समय बढ़ता जाता है वैसे-वैसे शरीर ठीक होने की सम्‍भावनाएं घटती जाती हैं।

इस सम्‍बन्‍ध में आज मंगलवार को अस्‍पताल में आयोजित पत्रकार वार्ता में सर्जरी करने वाले सीनियर प्‍लास्टिक सर्जन डॉ वैभव खन्‍ना ने न सिर्फ सर्जरी के बारे में बताया बल्कि दुर्घटना का शिकार हुए मेडिकल छात्र को भी मीडिया के सामने रूबरू कराया। मेडिकल छात्र व उसके परिजन डॉक्‍टरों का शुक्रिया करते नहीं थक रहे हैं। छात्र का कहना है कि अपने साथ हुए हादसे में मैंने जितना और जिस तरह से डॉ खन्‍ना को देखा, उसने मेरा रुख प्‍लास्टिक सर्जन बनने की तरफ मोड़ दिया है।

बीती पांच जुलाई को मोहान रोड पर एक भीषण दुर्घटना हुई थी जिसमें बाइक चला रहा सौरभ कुंडू गंभीर रूप से घायल हो गया था। एमबीबीएस सेकेंड इयर के स्टूडेंट सौरभ का दायां हाथ लगभग कटकर अलग हो चुका था। सौरभ को जब मेदांता हॉस्पिटल लाया गया तो उसका दाहिना हाथ केवल एक नर्व से लटक रहा था। सौरभ के दाएं हाथ की ह्यूमरस मिड शॉफ्ट टूट गई थी। इसके अलावा ब्रेकियल आर्टरी, मीडियल नर्व और रेडियल नर्व, मस्कुलोक्यूटिनियस नर्व, क्यूटेनियस नर्व पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी। साथ ही उसे फेशियो मैक्सिलरी इंजरी भी थी।

हाथ पर मल्टीपल इंजरी और न्यूरोवस्कुलर डैमेज की वजह से ऐसे में प्लास्टिक सर्जरी के कंसल्टेंट डॉ वैभव खन्ना ने सौरभ की तुरंत रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी (आरटीए) करने का निर्णय लिया। मरीज को 6 जुलाई को सुबह चार बजकर 15 मिनट पर ओटी ले जाया गया। डॉ वैभव खन्‍ना ने बताया कि सबसे पहले मरीज को खून चढ़ाया गया, उन्‍होंने बताया कि मरीज का ब्‍लड ग्रुप निगेटिव होने के बावजूद किसी डोनर का इंतजार न कर कर पहले खून उपलब्‍ध कराया गया। सौरभ के अपर लिंब की पूरे नौ घंटे तक लंबी सर्जरी चली, जिसमें एनेस्थीसिया की टीम ने सभी नर्वोवेस्कुलर स्ट्रक्चर और सॉफ्ट टिश्यूज को रिकंस्ट्रक्ट किया। वहीं वैस्कुलराइजेशन के लिए सीने से मांसपेशी का एक फ्लैप ट्रांसप्लांट कर हाथ की मसल्स को रिपेयर किया गया। वहीं टूटी हुई ह्यूमर को जोड़ने के लिए आर्थोपेडिक टीम ने इंटरनल बोन फिक्सेशन करने का निर्णय लिया। ऑपरेशन के बाद मरीज को आईसीयू में शिफ्ट किया गया जहां उसे हिमोडायनेमिकली स्टेबलाइज और आईवी मेडिकेशन सपोर्ट दिया गया। डॉ वैभव ने बताया कि मरीज के हाथों में ऑपरेशन के बाद से ही मूवमेंट आने लगा था। अब सौरभ का अपर लिंब यानि दाहिना हाथ अच्छी तरह से रिकवर कर रहा है और वैस्कुलराइज्ड और स्टेबल हो गया है। साथ ही उसमें मूवमेंट भी आ गया है। इतने जटिल प्रोसेस के बाद सौरभ अपनी रिकवरी और आपरेशन के महज 10 ही दिन में अपने अपर लिंब के वैस्कुलराइजेशन, मूवमेंट और सेंसेशन के वापस आने से बेहद खुश है। 

अंग कटने पर रखें ध्यान 

डॉ वैभव खन्ना ने बताया कि इस तरह के दुर्घटना वाले केस जिसमें मरीज के शरीर का कोई भी अंग कटकर अलग हो जाता है उसमें परिजनों या साथ में मौजूद लोगों को थोड़ी जागरूकता हो तो मरीज के अंगों को सही तरह से रिकंस्ट्रक्ट किया जा सकता है। ऐसे में दो चीजें बेहद जरूरी है। सबसे पहले जो भी अंग कटा है उसे अच्छे से पानी से धोकर कपड़े में लपेट लें। इसके बाद किसी बैग में रखें इस बैग को बर्फ के साथ दूसरे किसी बर्तन या पॉलिथिन में रखें। उन्‍होंने कहा कि याद रखें कि अंग को सीधे बर्फ के संपर्क में न रखें वरना अंग के खराब होने का डर रहता है। साथ ही ये भी ध्यान दें कि मरीज को किसी भी छोटे मोटे अस्पताल ले जाने के बजाय ऑनलाइन सर्च करके पास के ऐसे किसी सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल ले जाएं जहां प्लास्टिक सर्जरी या रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी होती हो। इस केस में भी अगर मरीज को एक डेढ घंटा देर हो जाती तो अंग को बचाना मुश्किल हो जाता। युवक हमेशा के लिए दिव्‍यांग हो सकता था।

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