Thursday , February 20 2025

टीबी का इलाज पूर्ण होने के बाद दुष्प्रभाव रोकने के लिए दो साल तक फॉलोअप जरूरी : डॉ सूर्य कान्त

-49 देशों में हुए शोधों से यह निष्कर्ष उजागर, भारत में सर्वाधिक समस्याएं आयीं न्यूरोलॉजिकल की

डॉ सूर्य कान्त

सेहत टाइम्स

लखनऊ। टीबी संक्रामक लेकिन लाइलाज बीमारी नहीं है। नियमित दवाओं के सेवन से यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है लेकिन ठीक होने के बाद भी नियमित फॉलो अप के अभाव में इसके दुष्प्रभाव सामने आते हैं। ट्यूबरकुलोसिस, रैपिड असेस्मेंट इंडिया, 2023 के अनुसार 49 देशों में किये गए शोधों से यह निष्कर्ष सामने आया कि टीबी से उबरने के बाद 23.1 फ़ीसद लोगों में मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें, 20.7 फीसद लोगों में श्वसन सम्बन्धी, 17.1 फीसद लोगों में मस्कुलोस्केलेटल, 14.5 फीसद लोगों में सुनने सम्बन्धी समस्याएँ, 9.8 फीसद में देखने सम्बन्धी, 5.7 में किडनी सम्बन्धी और 1.6 फीसद में न्यूरोलोजिकल समस्याएं देखने को मिलीं। इसके साथ ही भारत जैसे निम्न आय वाले देशों में न्यूरोलोजिकल नुकसान के सबसे ज्यादा 25.6 फीसद मरीज तथा अधिक आय वाले देशों में टीबी मरीजों में श्वसन सम्बन्धी परेशानियां 61 फीसद में और 42 फीसद में मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतें देखने को मिलीं।

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष व राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के नॉर्थ जोन टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन डॉ सूर्य कान्त बताते हैं कि टीबी की दवाओं के सेवन के दौरान कुछ लोगों में प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देते हैं जैसे देखने में समस्या, लिवर सम्बन्धी समस्याएँ आदि। इन समस्याओं का समय से पहचान होने से इलाज सम्भव हो जाता है।

टीबी का इलाज पूरा हो जाने के बाद भी दो साल तक फॉलो अप जरूरी होता है क्योंकि उसके बाद भी परेशानियाँ बनी रहती हैं। इसलिए खान-पान का विशेष ध्यान रखें और अगर कुछ भी असामान्य लगे तो विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें। जैसे यदि सांस सम्बन्धी समस्या है तो साँस रोग विशेषज्ञ को, मानसिक समस्या है तो मानसिक रोग विशेषज्ञको दिखाएं। इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें। चिकित्सक की सलाह का पालन करें।

कुछ टीबी रोगियों को पल्मोनरी पुनर्वास (rehabilitation) की जरूरत होती है। उत्तर प्रदेश का पहला पल्मोनरी पुनर्वास केंद्र (pulmonary rehabilitation centre) केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में स्थापित है। इसके संस्थापक डॉ. सूर्य कान्त बताते हैं कि टीबी के उपचार के बाद भी सांस की समस्या बने रहने के निवारण के लिए इस केंद्र पर सभी सुविधाएं मौजूद हैं और ऐसे रोगियों की यहां पर निशुल्क चिकित्सा की जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.