-24 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी एनीमिया से पीडि़त, उम्र का तकाजा मानकर ध्यान नहीं देते हैं घरवाले
-चार दिवसीय हेमेटोकॉन 2025 शुरू, पहले दिन आयोजित सीएमई में दीें कई महत्वपूर्ण जानकारियां

सेहत टाइम्स
लखनऊ। दुनिया की लगभग 24% बुजुर्ग आबादी एनीमिया से पीड़ित है और इससे 40% तक की मृत्यु दर जुड़ी है। बढ़ती उम्र के कारण लोग इस पर कम ध्यान देते हैं और परिवार के सदस्य भी इसे अनदेखा कर देते हैं। एनीमिया याददाश्त में कमी से भी जुड़ा है और कभी-कभी इसे डिमेंशिया भी माना जाता है। एनीमिया होने के कारणों में आयरन, विटामिन बी 12, फॉलिक एसिड की कमी होना के अलावा सूजन और कैंसर भी शामिल हैं। इसी प्रकार जठरांत्र संबंधी विकृतियाँ एनीमिया के सामान्य कारण हैं। खास बात यह भी है कि विटामिन बी12 की कमी वाले 40% बुजुर्ग रोगियों में मनोभ्रंश, अवसाद और न्यूरोपैथी जैसी तंत्रिका संबंधी समस्याएँ पाई जाती हैं।

यह जानकारी यहां लखनऊ में 6 से 9 नवम्बर तक आयोजित हो रहे भारतीय रुधिर विज्ञान एवं रक्त आधान सोसायटी Indian Society of Hematology & Blood Transfusion के 66वें वार्षिक सम्मेलन हेमेटोकॉन 2025 के प्रथम दिन आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में सम्मेलन के आयोजन अध्यक्ष बीएचयू वाराणसी के प्रो विजय तिलक ने बुजुर्गों में एनीमिया की समस्या विषय पर अपने लेक्चर में दी।
उन्होंने इसे जन स्वास्थ्य संकट बताते हुए कहा कि एनीमिया के मामले की जाँच करते समय प्रारंभिक संदेह, एक अच्छा नैदानिक इतिहास और अच्छी शारीरिक जाँच आवश्यक है। उपचार अंतर्निहित कारण के अनुसार होना चाहिए। उपचार के प्रति प्रतिक्रिया न होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण गलत निदान है। प्रत्येक बुजुर्ग व्यक्ति को वर्ष में कम से कम एक बार सीबीसी (कम्पलीट ब्लड काउंट) स्क्रीनिंग अवश्य करानी चाहिए।
हेमेटोकॉन 2025 अलग-अलग स्थानों पर दस समानांतर कार्यशालाओं के साथ शुरू हुआ। इनमें किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में पाँच कार्यशालाएँ, डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में दो, मेदांता अस्पताल में दो तथा अपोलो हॉस्पिटल में एक कार्यशाला शामिल है।
सीएमई में रुधिर विज्ञान के विभिन्न पहलुओं से संबंधित कई अन्य विषयों को भी शामिल किया गया। नर्सिंग, पैरामेडिकल स्टाफ और लैब तकनीशियनों के लिए सत्र आयोजित किए गए। सम्मेलन में लगभग 600 डॉक्टर, नर्सिंग उम्मीदवार और लैब तकनीशियन, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विशेषज्ञ और इच्छुक उपस्थित थे।
इस मौके पर भारतीय रुधिर विज्ञान महाविद्यालय और एपीआई, एफओजीएसआई और बाल रोग संघ के संयुक्त सत्र भी आयोजित किए गए। सम्मेलन के संरक्षक और मार्गदर्शक प्रो एके त्रिपाठी की उपस्थिति में आईसीएच के सचिव डॉ. रवींद्र कुमार जेना ने सभा को संबोधित किया और रुधिर संबंधी विकारों के प्रति सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया। यूपी एपीआई के अध्यक्ष डॉ. संजय टंडन ने भी संयुक्त डी के दीर्घकालिक सहयोग पर ज़ोर दिया। यह एक ऐसा मंच है जहाँ हम विभिन्न विशेषज्ञताओं वाले रोगियों के प्रति दृष्टिकोण पर चर्चा करते हैं। आईसीएच-एओपी सत्रों में हमने नवजात शिशुओं में एनीमिया पर चर्चा की। डॉ. निशांत वर्मा ने इसके विभिन्न कारणों और प्रबंधन पर चर्चा की। केजीएमयू की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अमिता पांडे ने आईसीयू में डिसेमिनेटेड इंट्रावैस्कुलर डिसेमिनेशन पर चर्चा की और बताया कि यह एक जानलेवा बीमारी है और इसके मुख्य कारण संक्रमण, भ्रूण की अंतर्गर्भाशयी मृत्यु और प्लेसेंटल डिटेचमेंट हैं।

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