-संकाय सदस्यों, रेजीडेंट, नर्सिंग स्टाफ, टेक्नोलॉजिस्ट और स्थायी कर्मचारियों ने वितरित की पोषण पोटली
सेहत टाइम्स
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ ने “75 क्षय रोगियों के लिए गोद लेने और पोषण कार्यक्रम” का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य इस रोग के बारे में जागरूकता पैदा करना और क्षय रोगियों को गोद लेना था। एसजीपीजीआई परिवार के विभिन्न संकाय सदस्यों, रेजीडेंट, नर्सिंग स्टाफ, टेक्नोलॉजिस्ट और स्थायी कर्मचारियों द्वारा 75 से अधिक क्षय रोगियों को गोद लिया गया। इनमें से प्रत्येक रोगी को गुड़, चना सत्तू, मूंगफली और हॉर्लिक्स युक्त “पोषण पोटली” वितरित की गई।
यह जानकारी देते हुए संस्थान द्वारा बताया गया है कि यह पहल उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से प्रेरित थी। संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमन के मार्गदर्शन में, कार्यक्रम का आयोजन एसजीपीजीआई में माइक्रोबायोलॉजी की प्रोफेसर और बीएसएल3 ट्यूबरकुलोसिस लैब की नोडल अधिकारी डॉ. ऋचा मिश्रा द्वारा किया गया। उन्होंने राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के अंतर्गत ‘निक्षय मित्र पहल’ और ‘निक्षय पोषण योजना’ की भूमिका पर प्रकाश डाला। सामुदायिक भागीदारी और पोषण संबंधी सहायता उन रोगियों के सफल उपचार परिणामों में प्रमुख भूमिका निभाती है, जो आमतौर पर कुपोषित होते हैं और समाज के गरीब सामाजिक-आर्थिक स्तर से आते हैं। एक समर्पित अभिभावक न केवल मासिक पोषण सहायता देता है और उपचार की निगरानी करता है, बल्कि रोगी के पूरे परिवार को भावनात्मक और सामाजिक समर्थन भी प्रदान करता है।
स्वागत भाषण देते हुए, पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ ने व्यापक टीबी देखभाल के प्रति अपने विभाग की प्रतिबद्धता दोहराई। निदेशक प्रो. आर.के. धीमन ने कहा कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य “करुणा से उपचार” है। उन्होंने कहा कि भारत में दुनिया में टीबी और दवा प्रतिरोधी टीबी रोगियों का बोझ सबसे ज़्यादा है, लेकिन अगर सभी निदान किए गए रोगियों की देखरेख एक स्वैच्छिक अभिभावक द्वारा की जाए, जो उनके पोषण का ध्यान रखे और उपचार की निगरानी करे, तो हम निश्चित रूप से कुछ वर्षों में टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल कर लेंगे।
लखनऊ के जिला टीबी अधिकारी डॉ. अतुल सिंघल ने राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की। माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अक्षय आर्य और डॉ. विक्रम जीत सिंह ने सक्रिय रूप से भाग लेकर कार्यक्रम की सफलता में योगदान दिया।
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