-रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में आयोजित हुआ विश्व निद्रा दिवस जागरूकता कार्यक्रम
सेहत टाइम्स
लखनऊ। सोते समय अगर किसी को खर्राटे आते हैं तो यह न माना जाए कि वह घोड़े बेचकर सो रहा है, जैसी कहावत है बल्कि यह माना जाए कि वह सोते समय बहुत सारी बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है। ऐसे लोगों को खर्राटे का खतरा ज्यादा है जो लोग मोटे है एवं जिनकी गर्दन छोटी और मोटी है, जिनके शर्ट का कॉलर साइज 17 इंच( 42 नम्बर) से ज्यादा है, जिनकी ठोड़ी अंदर धंसी हुई है या छोटी है, जिनकी नाक की हड्डी टेढ़ी है, जिनका तालू बहुत नीचे है या जिनकी जीभ का पिछला हिस्सा बहुत मोटा है। अगर आपके आस-पास, परिवार में या कहीं भी ऐसे लोग दिखते हैं तो उन्हें केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में जाने की सलाह दें और उन्हें अवगत करायें कि विभाग में खर्राटे की पहचान एवं स्लीप स्टडी की जांच एवं उपचार उपलब्ध है।
यह बात केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में आज 15 मार्च को विश्व निद्रा दिवस जागरूकता कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष डॉ0 सूर्यकान्त ने कही। इस अवसर पर निद्रा (नींद) का महत्व एवं इसके साथ-साथ नींद में आने वाले खर्राटों का स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव की चर्चा की गई। इस चर्चा का आयोजन डॉ0 सूर्यकान्त ने विभाग के समस्त शिक्षकों, जूनियर डॉक्टर्स, स्वास्थ्य कर्मियों एवं रोगियों के परिजनों के साथ किया।
डॉ0 सूर्यकान्त ने बताया कि पूरी दुनिया में मार्च के महीने के दूसरे शुक्रवार को विश्व निद्रा जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि खर्राटे जब आते हैं तो सांस का प्रवाह कम हो जाता है या कई बार रुक जाता है, जो एक नई बीमारी को जन्म देता है, जिसका नाम है ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐपनिया। जब सांस सोते समय रुक जाती है तो शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है और कई बार तो थोड़ी देर के लिए रुक जाता है ऐसी स्थिति में जिस अंग में ऑक्सीजन की सप्लाई रात भर कम होती है, उन अंगों में बहुत सी बीमारियां पैदा हो जाती है जैसे डायबिटीज, ब्लड-प्रेशर, हार्ट-अटैक, स्ट्रोक आदि।
मौका मिलते ही कहीं भी सोने लगते हैं लोग
उन्होंने बताया कि जो ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐपनिया से पीड़ित हैं वह दिन में जहां भी उनको मौका मिलता है, थोड़ी देर के लिए वहां वह सोने लगते हैं। कोई कुर्सी पर बैठकर सोता है, कोई ट्रेन में बैठकर, कोई फ्लाइट में बैठकर, कोई सोफे पर बैठकर, मार्केट एवं होटल व रेस्टोरेंट की लॉबी में सो जाता है तथा कई बार तो लोग अपने कार, स्कूटर व मोटरसाइकिल को ड्राइव करते-करते सो जाते हैं और एक्सीडेंट हो जाता हैं। वास्तव में खर्राटे आने और स्लीप ऐपनिया के होने के कारण देश-दुनिया में जो एक्सीडेंट होते हैं, उसका भी एक प्रमुख कारण है। जो लोग ड्राइविंग लाइसेंस का रजिस्ट्रेशन के लिए एप्लीकेशन देते हैं, उन पर खर्राटों के सम्बन्ध में हुए रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के द्वारा शोध किया गया था जिसमें यह पाया गया था कि ऐसे 17 प्रतिशत लोग है जो सोते समय तेज खर्राटे लेते हैं व जिनमें ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐपनिया के लक्षण पाये गये। अब सोचिए ऐसे 17 प्रतिशत लोग अगर ड्राइवर बन जाएंगे तो उन्हें गाड़ी चलाते-चलाते सोने का खतरा है और एक्सीडेंट करने का भी खतरा है। ऐसे लोग अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने आए तो उनका खर्राटे सम्बन्धी परीक्षण किया जाए तथा जरूरत पड़ने पर उनकी स्लीप स्टडी भी की जाए और उसके लिए उनसे कहा जाए कि पहले अपने खर्राटों का इलाज कराये तभी आपको ड्राइविंग लाइसेंस मिल सकता है। डॉ0 सूर्यकान्त ने भारत सरकार के परिवहन विभाग और उत्तर प्रदेश के परिवहन विभाग से यह अपील की है कि रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग इस सम्बन्ध में टेक्निकल सपोर्ट देने के लिए तैयार है।
डॉ0 सूर्यकान्त के इन्हीं विचारों पर एक पुस्तक भी उपलब्ध है जो उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने प्रकाशित की है उसका नाम ’’खर्राटे हैं खतरनाक’’ है। इस पुस्तक के माध्यम से लोग जागरूक हो सकते हैं एवं जागरूकता फैला सकते हैं।
इस अवसर पर विभाग के चिकित्सक डॉ0 आर ए एस कुशवाहा, डॉ0 राजीव गर्ग, डॉ0 अजय कुमार वर्मा, डॉ0 आनन्द श्रीवास्तव, डॉ0 दर्शन बजाज, डॉ0 ज्योति बाजपेयी एवं विभाग के सभी रेजिडेन्ट्स, पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेन्टर की टीम एवं विभाग के कर्मचारी व मरीजों के परिजन भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर रोगियों के परिजनों को बताया गया कि खर्राटे एवं ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐपनिया का प्रमुख कारण मोटापा है जो कि हरी सब्जियां एवं फल तथा व्यायाम से कम हो सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए सभी परिजनों को फल भी वितरित किया गए।