-दो दिवसीय पेलवी-एसिटाबुलर सीएमई और कैडवेरिक वर्कशॉप सम्पन्न
सेहत टाइम्स
लखनऊ। सड़क दुर्घटना में यदि कमर और उसके नीचे चोट लगी हो तो उसे नजरंदाज बिल्कुल न करें क्योंकि अगर कूल्हे का सॉकेट टूट गया है तो उसका इलाज दस दिन के अंदर हर हाल में शुरू हो जाना चाहिये इसको पता लगाने का सबसे सही तरीका एक्सरे कराना होता है जिसमें इस बात का पता चल जाता है कि सॉकेट टूटा है अथवा नहीं। इसमें तुरंत इलाज बहुत जरूरी है, क्योंकि ज्यादा ब्लीडिंग से जान जाने का खतरा रहता है। इसलिए जब भी कमर में चोट लगे तो कमर पैलविक बैंड या कपड़े से कस कर बांध देना चाहिये जिससे कम्प्रेशन हो जाता है और ब्लीडिंग रुक जाती है।
यह जानकारी देते हुए केजीएमयू के ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग द्वारा अटल बिहारी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में आयोजित दो दिवसीय पेलवी-एसिटाबुलर सीएमई और कैडवेरिक वर्कशॉप के आयोजन सचिव डॉ धर्मेन्द्र कुमार ने बताया कि पैलविस बोन थ्री डायमेंशनल होती है, यह वह जोड़ होता है जहां पर खून की सप्लाई बहुत तेज होती है और यहीं पर पेट के ऑर्गन भी रहते हैं, इसलिए सॉकेट टूटने पर इसे सही ढंग से बैठाना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि हड्डी बैठाने में दूसरे ऑर्गन को नुकसान न पहुंचे इसका ध्यान रखना होता है, इसीलिए इसके लिए विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है।
डॉ धर्मेन्द्र ने बताया कि हमारी इस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य इसी ट्रेनिंग को देना था, उन्होंने बताया कि इसका इलाज पहले बिना सर्जरी के किया जाता था जिससे यह समस्या दूर नहीं हो पाती थी, और आजीवन दिव्यांगता का डर रहता था। लेकिन अब इसका उपचार सर्जरी से किया जाना संभव है। इसी सर्जरी की ट्रेनिंग के लिए कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन आज कैडेवर पर सर्जरी वर्कशॉप का आयोजन किया गया।
इस वर्कशॉप का उद्घाटन केजीएमयू के कुलपति ले.ज.डॉ बिपिन पुरी ने किया। इस कॉन्फ्रेंस में इंडियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष व पीजीआई चंडीगढ़ के पूर्व प्रोफेसर डॉ आरके सेन विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित थे। कॉन्फ्रेंस के आयोजन अध्यक्ष प्रति कुलपति व ऑर्थोपेडिक विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो विनीत शर्मा हैं। उनका कहना है कि विभाग द्वारा जल्दी ही इस पर एक स्पेशियलिटी क्लीनिक शुरू की जायेगी।
डॉ धर्मेन्द्र कुमार ने बताया कि आज देश के जाने-माने गेस्ट फैकल्टी डॉ आरके सेन, डॉ अभय एल्हेन्स, डॉ दिनेश काले, डॉ नदीम फारुकी और डॉ संजय श्रीवास्तव ने केजीएमयू के ऑर्थोपेडिक संकाय और आयोजन सचिव डॉ धर्मेन्द्र कुमार और उनकी टीम डॉ संजीव कुमार, डॉ अर्पित सिंह, रवीन्द्र मोहन की देखरेख में सर्जरी की। उन्होंने बताया कि कैडवरिक वर्कशॉप का मुख्य आकर्षण विभिन्न सर्जिकल दृष्टिकोणों से कैडवर पर वे सर्जिकल प्रदर्शन थे जो एसिटाबुलर फ्रेक्चर के प्रबंधन के लिए किये जाते हैं। डॉ धर्मेन्द्र से कहा कि सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि के कारण एसिटाबुलर फ्रेक्चर की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं, इसलिए इस प्रकार की कार्यशालाएं आज के समय की आवश्यकता है।