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गर्भ ठहरने के बाद से 1000 दिन शिशु के पूरे जीवन के लिए कितने महत्‍वपूर्ण, जानकर चौंक जायेंगे आप

-वैज्ञानिक रूप से हो चुका है सिद्ध, जैसा चाहें वैसा बना लें अपने बच्‍चे को
-ब्रह्मकुमारीज से जुड़ीं चिकित्‍सक बीके डॉ शुभादा नील ने दीं अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण जानकारियां
बीके डॉ शुभादा नील

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। हम मां का सपना होता है कि उसकी संतान स्‍वस्‍थ हो, सदा मुस्‍कुराती रहे, मजबूत हो, भावनाओं की कद्र करने वाली हो, मजबूत इरादों वाली हो, यानी सर्वगुण सम्‍पन्‍न हो। ऐसा संभव है और इसके लिए करना सिर्फ इतना है कि शिशु जब से गर्भ में आये तब से पैदा होने तक तथा पैदा होने के बाद दो साल यानी गर्भावस्‍था और दो साल को मिलाकर करीब 1000 दिन तक मां को अपने खानपान, अपनी सोच, आचार-विचार पर अवश्‍य ध्‍यान देना होगा, इसके साथ ही बच्‍चे के आसपास का माहौल भी अच्‍छा खुशहाल, पॉजिटिव एनर्जी वाला होगा तो निश्चित रूप से बच्‍चा गुणवान होगा।

यह बात यहां स्‍मृति उपवन में चल रहे ऑल इंडिया ऑब्‍स्‍ट्रेटीशियन्‍स एंड गाइनीकोलॉजिस्‍ट्स एसोसिएशन की 63वीं कॉन्‍फ्रेंस AICOG 2020 में चौथे दिन बीके डॉ शुभादा नील ने कही। आपको बता दें कि डॉ शुभादा नील ब्रह्मकुमारी से भी जुड़ी हुई हैं तथा नवी मुम्‍बई में उनका 50 बेड का हॉस्पिटल है। बीके डॉ शुभादा ने कहा कि बच्‍चे आजकल इमोशनली स्‍टेबिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन जरूरत इस बात की है कि चाहे कुछ भी परिस्थिति आयें उनसे बाहर निकालने के लिए बच्‍चों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ और मजबूत होना जरूरी है।

डॉ शुभादा बताती हैं कि गर्भावस्‍था में तथा डिलीवरी के बाद का दो साल का पीरियड जो होता है उसमें बच्‍चे के सीखने की शक्ति बहुत जबरदस्‍त होती है, इस अवधि में बच्‍चा जो भी अपने आसपास देखेगा, वह उसे जिन्‍दगी भर के लिए सीख जायेगा। जैसे इस दौरान आसपास पॉजिटिव वातावरण होगा तो पॉजिटिव, निगेटिव वातावरण होगा तो निगेटिव बातें वह सीख जायेगा। जैसे छोटी-छोटी बातों में मूड ऑफ होना, रोना, दुख करना और चाहें यह कि बच्‍चा सदा मुस्‍कुराता रहे तो यह नहीं हो सकता है। उन्‍होंने बताया कि इसीलिए गर्भवती माताओं को खुश रहने की सलाह दी जाती है। उनके खानपान, एक्‍सरसाइज, योगा, खुश रहने के लिए मेडीटेशन की सलाह दी जाती है।

डॉ शुभादा ने बताया कि कम्‍प्‍यूटर की भाषा में समझें तो यह समय ऐसा होता है जब बच्‍चे में सॉफ्टवेयर डेवलेप हो रहा होता है, तो जैसी मां होगी वैसा ही सॉफ्टवेयर डेवलेप होगा जैसा सॉफ्टवेयर होगा वैसा हार्डवेयर होगा यानी बड़ा होकर बच्‍चे का स्‍वभाव वैसा ही होगा।

बीके डॉ शुभादा ने बताया कि वैज्ञानिक रिसर्च में देखा गया है कि 1000 दिन की अवधि का बच्‍चे के निर्माण में जो असर पड़ता है उसमें सिर्फ जीन्‍स का नहीं, पर्यावरण का भी काफी असर पड़ता है। जैसे हमारे घर में बहुत खुशी होगी, प्‍यार होगा तो होने वाले बच्‍चे बहुत खुशी, शांति, प्‍यार से रहते हैं और अगर गुस्‍सा हो रहा है तो बच्‍चे भी गुस्‍से वाले हो जाते हैं, तथा मन और शरीर से ऐसे बच्‍चे कमजोर भी रहते हैं क्‍योंकि मां अगर गुस्‍सा कर रही है तो उसका ब्‍लड सप्‍लाई भी बच्‍चे की तरफ कम जाता है ऐसे में बच्‍चा कमजोर होता है, कमजोर बच्‍चे कभी-कभी अंदर पॉटी कर देते हैं तो उनको बचाने के लिए गर्भवती का मां का सिजेरियन करना मजबूरी हो जाती है। उन्‍होंने बताया कि वैज्ञानिक रूप से भी यह प्रमाणित है कि कमजोर बच्‍चे जो होते हैं उन्‍हें आगे चलकर ब्‍लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियां (एडल्‍ट डिजीजेज) होने की संभावना ज्‍यादा रहती है।

उन्‍होंने बताया कि खानपान पर वातावरण और सोच का असर होता है। जैसे कि हलुआ होटल से खरीद कर खायें, हलुआ घर पर बनाकर खायें और हलुआ भंडारे में प्रसाद के रूप में खायें, तीनों हलुओं का स्‍वाद अलग-अलग होगा, ऐसा इसलिए कि तीनों को तैयार करते समय तैयार करने वाले और आसपास के वातावरण में भिन्‍नता थी। उन्‍होंने बताया कि इसकी मान्‍यता हमारी संस्‍कृति में तो थी लेकिन वैज्ञानिक रिसर्च में भी यह बात पायी गयी है कि खाने-पीने की चीजों पर भी भावनाओं का कितना असर होता है। रिसर्च के बार में उन्‍होंने बताया कि जापानी साइंटिस्‍ट डॉ मैसारो इमाटो ने रिसर्च की जिसमें उन्‍होंने दो बोतल पानी की लीं एक पर लिखा प्‍यार और दूसरी पर लिखा नफरत। इन बोतलों से  पानी किसी को पीना नहीं था बस लोग आयें और उन बोतलों को देखकर सिर्फ मन ही मन बोलना था कि प्‍यार और नफरत। इसके बाद  उन बोतलों से पानी की एक-एक बूंद लेकर उसे इलेक्‍ट्रॉन माइक्रोस्‍कोप के अंदर रखा गया और विशेष फोटोग्राफी मशीन से फोटोग्राफ लिये गये तो पाया गया कि जिस बोतल में प्‍यार लिखा था उसकी पानी की बूंद की फोटो सुंदर रंगोली जैसी आयी और जिस पर नफरत लिखा था उसकी फोटो काली स्‍पॉट वाली आयी।

बीके डॉ शुभादा ने कहा कि आजकल बीमारियां जो बढ़ रही है उसका बीज हमारी सोच में छिपा है इसलिए पहले कहा जाता था कि पहले सोचो फि‍र बोलो, फि‍र कहा गया करने से पहले सोचो तब बोलो और अब कहा जाता है कि सोचने से पहले सोचो कि क्‍या आपकी सोच में शांति है, खुशी है, प्‍यार है क्‍योंकि जो आप सोचोगे, वही आप बोलोगे, और वही कर्म करोगे, और जब वही कर्म बार-बार करेंगे तो आपका वही आपका चरित्र बनेगा और फि‍र वही भाग्‍य बनेगा। इसलिए जो मां सोचेगी वही उसके बच्‍चे का भाग्‍य बनने वाला है इसीलिए मां को बहुत सोच समझकर सोचना है।

उन्‍होंने कहा कि इसीलिए किसी ने क्‍या खूब कहा है

सोच को बदलिये तो सितारे बदल जायेंगे,

नजर को ब‍दलिये तो नजारे बदल जायेंगे,

कश्तियों को बदलने की जरूरत नहीं सिर्फ

दिशायें बदलिये तो किनारे खुद-ब-खुद बदल जायेंगे

डॉ शुभादा ने कहा कि अगर किसी के खानदान में कोई बीमारी है, तो कहा जाता है कि बच्‍चे को तो होगी ही, लेकिन ऐसा नहीं है, शरीर में जीन्‍स अगर कैंसर के हैं तो हमारा वातावरण, खानपान, व्‍यायाम, हमारी सोच इसे होने से रोक सकती है, यह रिसर्च हो चुकी है।