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मरीज को बेहोश करके वापस होश में लाना किसी चुनौती से कम नहीं

सर्जरी में देरी की वजहों पर प्रकाश डाला पीजीआई के विशेषज्ञ ने

लखनऊ। सर्जरी कराने जा रहे हैं तो सर्जरी में शामिल एनेस्‍थीसियोलॉजिस्‍ट यानी बेहोशी के डॉक्‍टर के प्रति विश्‍वास और धैर्य अवश्‍य रखें, कई बार मरीज की स्थिति और अनेक बार संसाधनों की उपलब्‍धता के चलते सर्जरी टल जाती है। एनेस्‍थीसियोलॉजिस्‍ट की स्‍पष्‍ट सोच होती है कि उसका मरीज ऑपरेशन टेबल पर जिस स्थिति में जाये, उससे बेहतर स्थिति में टेबल से वापस लौटे।

 

यह कहना है संजय गांधी पीजीआई के एनेस्‍थीसियोलॉजिस्‍ट प्रों संदीप साहू का। उन्‍होंने बताया कि रविवार को समाप्‍त हुए सातवें एसजीपीजीआर्इपीजी एनेस्‍थीसियोलॉजी रिफ्रेशर कोर्स में अनेक मुद्दों पर विशेषज्ञों ने विचार रखे। यह मुद्दा भी उन्‍हीं में से एक है। प्रो संदीप साहू ने बताया कि जैसा कि आंकड़े बताते हैं कि आजकल दिल की बीमारियां, ब्‍लड प्रेशर, ब्‍लड शुगर, पल्‍मोनरी डिजीज आदि लोगों में तेजी से बढ़ी हैं। ऐसे में इन बीमारियों पर अच्‍छे नियंत्रण के बिना सर्जरी करने में बहुत जोखिम रहता है।

 

उन्‍होंने बताया कि किसी भी सर्जरी में एनेस्‍थीसियोलॉजिस्‍ट यानी बेहोशी के डॉक्‍टर की भूमिका बहुत महत्‍वपूर्ण होती है, क्‍योंकि एनेस्‍थीसियोलॉजिस्‍ट ही मरीज की स्थिति का आकलन कर यह अंदाज लगाता है कि सर्जरी के दौरान मरीज बेहोशी की दवाओं व ऑपरेशन में प्रयोग होने वाली दवाओं के असर को कितना झेल सकता है। उन्‍होंने बताया कि अधिकतर दिल के दौरे सर्जरी के समय ही पड़ते हैं। प्रो संदीप ने कहा कि विशेषकर अगर बच्‍चे या बुजुर्ग की सर्जरी होनी है तो उनकी जनरल कंडीशन दुरुस्‍त होना बहुत मायने रखता है। इसी प्रकार गर्भवती स्‍त्री की अगर सर्जरी भी बहुत महत्‍वपूर्ण होती है क्‍योंकि उस स्थिति में दो जीवन दांव पर लगे होते हैं।

 

उन्‍होंने बताया कि अनेक बार मरीज और उसके तीमारदार को यह गलतफहमी हो जाती है कि बेहोशी वाले डॉक्‍टर ऑपरेशन को टाल रहे हैं, उन्‍होंने बताया कि मरीज और उनके तीमारदार का यह सोचना कि मेरा मरीज तो ठीकठाक चल-फि‍र रहा है उसे कोई ऐसी दिक्‍कत नहीं है। जबकि असलियत यह है कि इस दौरान मरीज को दवायें देकर उसका शरीर इस प्रकार बनाया जाता है कि वह सर्जरी का स्‍ट्रेस झेल सके।

 

यह भी होती है वजह

प्रो साहू ने बताया कि करीब 30 फीसदी सर्जरी इसलिए भी टल जाती है कि टाइम मैनेजमेंट नहीं हो पाता है। इसे स्‍पष्‍ट करते हुए उन्‍होंने बताया कि सर्जन ऑपरेशन के लिए लिस्‍ट जो तैयार करते हैं वह ऑपरेशन के प्रकार को देखते हुए करते हैं। लेकिन होता यह है कि कभी-कभी अनुमान के विपरीत जिस सर्जरी में एक घंटा लगना होता है, उसमें अनेक कारणों से दिक्‍कत होने से चार घंटे लग जाते हैं, ऐसे में उस दिन जितनी सर्जरी निर्धारित की गयी होती हैं, उतनी नहीं हो पातीं। इसका दोष भी बेहोशी वाले डॉक्‍टर के सिर मढ़ दिया जाता है।

 

एनेस्‍थीसियोलॉजिस्‍ट मरीज का दुश्‍मन नहीं

उन्‍होंने बताया कि मेरी यह अपील है कि बेहोशी वाला चिकित्‍सक मरीज का दुश्‍मन नहीं है कि वह सर्जरी जान-बूझकर टाले। उसका लक्ष्‍य होशोहवास वाले मरीज को सर्जरी के दर्द का अहसास न कराने के लिए बेहोशी में ले जाना और सर्जरी के बाद वापस होश में लाना होता है, जो किसी चुनौती से कम नहीं होता है। इसलिए अपने चिकित्‍सक पर विश्‍वास बनाये रखें और खुद को स्‍वस्‍थ करने में चिकित्‍सक को अपना सहयोग दें।