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लोहिया संस्‍थान से निकाले गये कर्मचारियों का प्रकरण उलझा, टकराव के आसार

-आगे की रणनीति के लिए 8 जून को राज्‍य कर्मचारी संयुक्‍त परिषद ने  बैठक बुलायी

फाइल फोटो

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्‍थान से सम्‍बद्ध होकर कार्य कर रहे 9 कर्मचारियों को संस्‍थान से निकाले जाने के मामले ने अब तूल पकड़ लिया है। आज 7 जून को प्रकरण के निस्‍तारण की बात निदेशक द्वारा कही गयी थी, लेकिन खबर है कि ऐसा हो नहीं सका, निदेशक ने स्‍वास्‍थ्‍य महानिदेशक के पत्र, जिसमें उन्‍होंने कर्मचारियों की संख्‍या पूछी थी, को आधार बताते हुए कर्मचारियों की सम्‍बद्धता समाप्‍त किये जाने के आदेश को वापस लेने से इनकार कर दिया है। फलस्‍वरूप अब टकराव की स्थिति बन रही है। निकाले गये कर्मचारियों के समर्थन में राज्‍य कर्मचारी संयुक्‍त परिषद पहले से ही है, अब परिषद बैठक कर आगे की रणनीति तय करेगी।

यह जानकारी परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने देते हुए बताया बीती 1 जून को निदेशक डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान गोमती नगर लखनऊ द्वारा डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में विलय से पहले कार्यरत कर्मचारियों, जिनकी प्रतिनियुक्ति पर तैनाती संस्‍थान द्वारा की गयी लिखापढ़ी में गलती के कारण नहीं हो पाई थी, इसलिए शासन द्वारा उन्‍हें संस्‍थान से सम्‍बद्ध कर दिया गया था।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस संबंध में 4 अक्टूबर 2019 को शासन में हुई बैठक में अधिकारियों के समक्ष समझौता हुआ था कि बचे हुए कर्मचारियों को अतिशीघ्र जो कमियां हैं उनको दूर कराकर प्रतिनियुक्ति  पर ले लिया जाएगा। इस बारे में संस्‍थान द्वारा कुछ लोगों को प्रतिनियुक्ति दी गयी जबकि नौ कर्मचारियों का मामला लटका रहा।  

अतुल मिश्रा ने बताया कि आज निदेशक के निर्णय के बाद लोहिया कर्मचारी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के अध्यक्ष डी डी त्रिपाठी, उपाध्यक्ष अनिल कुमार, राजेश श्रीवास्तव सहित अन्‍य पदाधिकारी महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य से मिले। जिस पत्र को लोहिया संस्‍थान की निदेशक ने रिलीव करने का आधार बनाया है, अपने उस पत्र के विषय में उन्होंने स्पष्ट किया कि मैं कर्मचारियों को रिलीव करने का आदेश कैसा कर सकता हूं जबकि सारा प्रकरण मुख्य सचिव के द्वारा बनाई गई कमेटी व शासन में लिए गए निर्णय के अधीन है। मेरे द्वारा मात्र सूची मांगी गई थी बाकी लिये गए निर्णय से मैं सहमत नहीं हूं, चूंकि शासन में सारा प्रकरण विचाराधीन है व इनका वर्तमान परिवेश में समायोजन बिना शासन के निर्णय के सम्भव भी नहीं है ।

परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने बताया कि कुछ अप्रिय लोग जो संस्थान के हितैषी नहीं हैं, उनकी बात को तवज्जो देकर कर्मचारियों को आंदोलन करने पर विवश किया जा रहा है व एस्मा की चेतावनी दी जा रही है, जो निश्चित रूप से कोरोना वारियर्स के लिए अपमानजनक है, जबकि इस के संबंध में वर्ष 2019 वर्ष 2020 वर्ष 2021 में लगातार पत्र शासन को प्रेषित किए गए हैं कोरोना काल होने के कारण शासन में  कोई निर्णय नहीं हो पाया। शासन के निर्णय का इंतजार किए बिना किसी आदेश के तानाशाही रवैया को अपनाते हुए महानिदेशक स्वास्थ्य के आदेश का उल्लेख करते हुए कार्य मुक्त कर दिया गया। आदेश का उल्लेख किया है वह आदेश सूचना संबंधित था कि कुल कितने कर्मचारी संस्थान में सम्‍बद्ध हैं।

अतुल मिश्रा ने बताया कि बाध्य होकर कल 8 जून को चिकित्सा स्वास्थ्य, चिकित्‍सा शिक्षा व परिवार कल्याण विभाग के समस्त सम्बद्ध संगठनों की अतिआवश्यक बैठक आहूत की गई है जिसमे निदेशक तथा मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा शासनादेशों को नजरंदाज करते हुए आदेश निर्गत किये गए हैं, के मामले में आगे की रणनीति तय की जायेगी। इसमें कई महत्वपूर्ण बिंदु पर भी चर्चा होगी, परिषद कर्मचारियों, जो कोरोना वारियर्स हैं, उनके साथ किसी भी तरीके का उत्पीड़न किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।

उन्‍होंने कहा कि शासन में बैठे उच्चाधिकारियों को समझना चाहिये कि यदि इसी तरह उनकी बातों की नीचे के अधिकारियों द्वारा अवहेलना की जाएगी तो निश्चित रूप से कर्मचारी संगठनों का विश्वास टूटेगा औऱ उसके दुष्परिणाम भी परिलिक्षित होंगे।  

परिषद ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि यदि शासक, जो शासन के अधिकारी हैं, उनकी बात नीचे के अधिकारी मानने से इनकार करेंगे तो निश्चित रूप से गलत परिपाटी पड़ेगी इसलिए मुख्य सचिव द्वारा लिए गए निर्णय आपकी सहमति से माने जाते हैं, ऐसे में उनकी रक्षा करना आपका यानी प्रदेश के मुखिया का दायित्व है। फाइल फोटो