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डॉक्‍टर बता नहीं सकता, रोगी बतायेगा नहीं, तो रुकेगा कैसे इन्‍फेक्‍शन

-गुजरात एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉ‍जिस्‍ट्स एंड माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट्स की मांग, मरीज के लिए भी सूचना देना अनिवार्य करें

डॉ राजेन्‍द्र लालानी और डॉ महेन्‍द्र पटेल

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। गुजरात एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉ‍जिस्‍ट्स एंड माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट्स का मानना है कि संक्रामक रोगों (infectious disease) को फैलने से रोकने के लिए रोगी को अपने संक्रामक रोग के बारे में बताना अनिवार्य किया जाना चाहिये। अगर रोगी अपने रोग को छिपाता है तो इसके लिए कड़े दंड का प्रावधान होना चाहिये। ऐसा करके बड़ी संख्‍या में दूसरे लोगों में इन्‍फैक्‍शन फैलने से रोका जा सकेगा। इसके अतिरिक्‍त संक्रामक रोगों के मामले में निजता के अधिकार में बदलाव करते हुए चिकित्‍सक को यह छूट होनी चाहिये कि वह दूसरे चिकित्‍सक और रोगी के परिजनों को रोग के बारे में जानकारी दे सके।

गुजरात पैथोलॉ‍जिस्‍ट्स एंड माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष डॉ राजेन्‍द्र लालानी और सचिव डॉ महेन्‍द्र पटेल ने एसोसिएशन की ओर से यह मांग की है, ‘सेहत टाइम्‍स’ से फोन पर हुई बातचीत में उन्‍होंने बताया कि यह देखा गया है कि कई बार रोगी डॉक्‍टर से भी अपना रोग छिपा लेते हैं, जिससे डॉक्‍टर सहित पूरे अस्‍पताल को संक्रमण का खतरा पैदा हो जाता है। उन्‍होंने बताया कि पिछले दिनों अहमदाबाद के एक अस्‍पताल में एक रोगी द्वारा अपेंडिक्‍स का ऑपरेशन कराते समय उसने कोरोना संक्रमण होने की जानकारी छिपा ली थी, नतीजा यह हुआ कि उसका ऑपरेशन तो हो गया, बाद में अस्‍पताल के कई डॉक्‍टर व अन्‍य स्‍टाफ संक्रमित हो गया था।

डॉ लालानी कहते हैं कि बड़ी संख्‍या में लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए आवश्‍यक है कि मरीज द्वारा किसी सार्वजनिक स्‍थान पर जाने पर जैसे ट्रेन, हवाई जहाज में सफर करते समय उसे स्‍वत: घोषित करना चाहिये कि वह संक्रामक रोग से ग्रस्‍त है। उन्‍होंने कहा मान लीजिये किसी व्‍यक्ति को टीबी है, ऐसे में वह ट्रेन, प्‍लेन जैसे किसी भी सार्वजनिक वाहन में सफर करता है तो अपने आसपास बैठे लोगों को संक्रमित कर सकता है। इसके विपरीत अगर उसके संक्रमण होने का पता रहेगा तो ऐसे व्‍यक्ति को दूसरे व्‍यक्तियों के पास बैठने से रोका जा सकेगा।

डॉ लालानी कहते हैं कि इसी तरह संक्रमित व्‍यक्ति अपनी बीमारी छिपाते हुए अपने कार्यालय या जहां भी वह कार्य करता है, वहां दूसरे लोगों को संक्रमित करता रहता है।

डॉ महेन्‍द्र पटेल ने कहा कि हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा 269 व धारा 270 में इसको लेकर प्रावधान है लेकिन इसका प्रचार-प्रसार न होने की वजह से लोगों को जानकारी नहीं है।  “भारतीय दंड संहिता की धारा 269 के अनुसार, कोई भी व्‍यक्ति लापरवाही या गैरकानूनी रूप से किसी व्‍यक्ति के जीवन को जोखिम डालने वाला संक्रमण फैलाने जैसा कार्य करता है तो उसे जुर्माना या छह माह का कारावास या दोनों से दंडित किया जायेगा। इसी प्रकार आईपीसी की धारा 270 के अंतर्गत संक्रमण फैलाने के लिए जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण किये गये संक्रमण फैलाने जैसा कार्य के लिए जुर्माना या दो साल का कारावास अथवा दोनों का प्रावधान है।

डॉ लालानी का कहना है कि जिस प्रकार किसी भी डॉक्‍टर को टीबी, डिप्‍थीरिया या कोई संक्रमण बीमारी का पता चलने पर उसे सरकार को सूचित करना आवश्‍यक है, और ऐसा न करने पर 6 माह की जेल का प्रावधान है, ऐसा ही प्रावधान मरीज के लिए भी होना चाहिये, लेकिन निजता का अधिकार के तहत ऐसा नहीं है।

डॉ लालानी इसे स्‍पष्‍ट करते हुए कहते हैं कि मान लीजिये किसी व्‍यक्ति को एचआईवी या दूसरा संक्रामक रोग (infectious disease) डायग्‍नोस हुआ, मौजूदा नियम के अनुसार चिकित्‍सक ने सिर्फ मरीज को बता दिया, उसके घरवालों और डॉक्‍टर किसी को नहीं बताया, अब अगर उस व्‍यक्ति ने अपनी बीमारी अपने घरवालों से और डॉक्‍टर से छिपा ली तो वह व्‍यक्ति अपने परिजनों, डॉक्‍टर और समाज सभी को संक्रमित कर सकता है। इसलिए यह आवश्‍यक है कि व्‍यक्ति के लिए अपने परिजनों और इलाज करने वाले डॉक्‍टर को यह बताना आवश्‍यक होना चाहिये कि वह अमुक संक्रमक रोग से ग्रस्‍त है। एसोसिएशन का मानना है कि यह प्रावधान होना चाहिये कि अगर व्‍यक्ति अपनी बीमारी के बारे में छिपाता है तो उसे दंड का प्रावधान हो, साथ ही अगर उसके कृत्‍य से चिकित्‍सा संस्‍थान को जो भी नुकसान हुआ है तो उसकी भरपायी भी उससे की जाये।