रक्त संबंधित विकार के बारे में दी महत्वपूर्ण जानकारी
लखनऊ। थैलेसीमिया एक जन्मजात बीमारी है और ऐसी बीमारी है जिसे रोकने के लिए अब तक कोई कोई खोज नहीं की जा सकी है, यह जींस से ही मिलती है, माना जाता है कि हजारों सालों से यह बीमारी चल रही है लेकिन इस पर लगाम लगाने का एक तरीका यह हो सकता है कि थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चों को पैदा होने से रोकें। इसके लिए होना यह चाहिये कि शादी तय होते समय ही युवक व युवती दोनों की जांच कराकर यह देख लेना चाहिये कि दोनों थैलेसीमिया से ग्रस्त तो नहीं हैं क्योंकि अगर माता-पिता दोनों अगर माइनर थैलेेसीमिया से भी ग्रस्त होते हैं तो शिशु के मेजर थैलेसीमिया से ग्रस्त होने की पूरी संभावना है।
यह बात जेपी हॉस्पिटल के हिमेटो-ऑन्कोलॉजी एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पवन कुमार सिंह ने गुरुवार को होटल जैमिनी इंटरनेशनल में कही। वर्तमान में इस बात पर जागरूक किया जा रहा है कि गर्भवती मां की जांच कर पता लगाया जाये कि गर्भस्थ शिशु को थैलेेसीमिया की बीमारी तो नहीं है अगर है तो सलाह दी जाती है कि गर्भपात करा लिया जाये लेकिन इसमें भी आवश्यक यह है कि जांच 10 से 12 सप्ताह के गर्भ के समय ही करा ली जाये जिससे गर्भपात करना सुरक्षित हो।
लखनऊ में सप्ताह में एक दिन जेपी की ओपीडी
मल्टी सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा संस्थान जेपी हॉस्पिटल द्वारा रक्त संबंधी बीमारियों से लोगों को सचेत करने के लिए लखनऊ में स्वास्थ्य जागरूकता अभियान का आयोजन किया गया। इस मौके पर डॉ. पवन ने सैकड़ों लोगों को रक्त संबंधी गंभीर बीमारियों के बारे में विस्तार से बताया एवं इलाज कराने संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम में यह भी घोषणा की गई कि जेपी हॉस्पिटल द्वारा लखनऊ वासियों के लिए स्थानीय शेखर हास्पिटल में बीएमटी ओपीडी सेवा उपलब्ध कराई जाती है। यह सुविधा प्रत्येक महीने के तीसरे गुरुवार को उपलब्ध होती है।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी है थैलेसीमिया का इलाज
डॉ. पवन कुमार ने कहा, रक्त संबंधित दो तरह की बीमारियां होती हैं। पहला कैंसर वाली और दूसरी नॉन कैंसर वाली। नॉन कैंसर बीमारियों में ‘थैलेसीमिया’ और ‘ए प्लास्टिक एनिमिया’ प्रमुख बीमारियां होती हैं। थैलेसीमिया एक जन्मजात बीमारी है। भारत में हजारों लोग थैलेसीमिया से पीडि़त हैं और हर वर्ष करीब 10,000 नए थैलेसीमिया के शिशु पैदा होते हैं। इस रोग में शरीर में रक्त नहीं बनता और जीवन भर बाहरी रक्त के भरोसे जीना पड़ता है। रोगी को हर 3-4 हफ्ते में रक्त चढ़ाना पड़ता है। इस बीमारी पर दो तरीके से नियंत्रण पाया जा सकता है। पहला तरीका यह है कि शादी से पहले युवक एवं युवतियां अपने रक्त की जांच कराएं। यदि जांच में युवक और युवती दोनों थैलेसीमिया कैरियर पाए जाते हैं तो बच्चे को गंभीर रूप से थैलेसीमिया हो सकता है। दूसरा उपाय यह है कि यदि बच्चा थैलेसीमियाग्रस्त जन्म लेता है तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट द्वारा बीमारी ठीक की जा सकती है। इसके लिए 2 से 8 साल की उम्र सबसे उचित मानी जाती है।
ए प्लास्टिक एनीमिया का भी इलाज बीएमटी से
डॉ. पवन कुमार ने आगे बताया इसी तरह ‘ए प्लास्टिक एनिमिया’ में शरीर का रक्त सूख जाता है। बुखार, ब्लीडिंग और कमजोरी जैसे लक्षण वाली इस बीमारी में भी मरीज को रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। इस बीमारी का इलाज भी बोन मेरो ट्रांसप्लांट है जिसे बीमारी का पता लगते ही जल्द से जल्द करा लेना चाहिए।
हिमेटो-ऑन्कोलॉजी एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग के चिकित्सक डॉ. पवन कुमार सिंह ने, रक्त कैंसर में लेकिमिया, लिम्फोमा, मल्टीपल मायलोमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं। यह बीमारी बच्चों को भी हो सकती है लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इस बीमारी के होने की उम्मीद बढ़ जाती है। बुखार, ब्लीडिंग एवं कमजोरी जैसे लक्षण वाली इन बीमारियों का पता सीबीसी ब्लड जांच में एबनोर्मल रिपोर्ट के बाद होती है। इलाज के बिना ये बीमारियां जानलेवा होती हैं। जल्द से जल्द इलाज शुरू करने से इन बीमारियों को जड़ से खत्म किया जा सकता है।