चौथे बैच के 42 चिकित्सकों के साथ अब तक 151 पीएमएस के डॉक्टरों को प्रशिक्षण
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार दिया जा रहा विशेष प्रशिक्षण : डॉ सुनील पाण्डेय
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में मानसिक रोग चिकित्सकों की कमी पूरी करने के लिए विशेष प्रशिक्षण देकर तैयार किये जा रहे चिकित्सकों की संख्या में 42 और का इजाफा हो गया। साधारण मानसिक रोगों का इलाज करने के लिए एक माह का प्रशिक्षण यहां केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के शिक्षकों द्वारा दिया जा रहा है, इस प्रशिक्षण को लेने वाले चिकित्सकों की कुल संख्या अब 151 हो गयी है। 42 चिकित्सकों के चौथे बैच को आज प्रशिक्षण प्रमाण पत्र दिये गये। प्रशिक्षण प्रमाण पत्र उत्तर प्रदेश के मानसिक रोग प्राधिकरण के नोडल ऑफीसर डॉ सुनील पांडेय ने केजीएमयू के शिक्षक प्रो विवेक अग्रवाल और प्रो आदर्श त्रिपाठी के साथ प्रदान किये।
विदित हो कि आजकल की भागमभाग भरी जिन्दगी में रहने, खाने, सोने आदि का ढंग बदल गया है, आरामतलब जिन्दगी, व्यायाम से रहित जीवन जैसे अनेक कारण हैं जो व्यक्ति को कई प्रकार की मानसिक बीमारियां दे रहे हैं, आबादी के हिसाब से चिकित्सकों की कमी से तो देश जूझ ही रहा है ऊपर से कुछ रोग ऐसे हैं जिनके विशेषज्ञों की भारी कमी है, इन्हीं में से एक है मानसिक रोग।
मानसिक रोग प्राधिकरण के नोडल ऑफीसर डॉ सुनील पांडेय ने बताया कि मानसिक रोगों का इलाज करने वाले चिकित्सकों की इस कमी को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि प्रांतीय चिकित्सा सेवा के चिकित्सकों को मेडिकल कॉलेजों में एक माह का प्रशिक्षण देकर मानसिक रोगों का इलाज करने लायक बनाया जाये। उन्होंने बताया कि प्रमुख सचिव के निर्देशानुसार इस समय किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय, वाराणसी, आगरा, बरेली के मानसिक रोग संस्थानों के साथ ही झांसी, प्रयागराज और सहारनपुर स्थित मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों को एक माह का विशेष प्रशिक्षण देकर मानसिक रोगों का उपचार की ट्रेनिंग दी जानी है, इसमें केजीएमयू में यह प्रशिक्षण कार्य शुरू हो चुका है, शीघ्र ही बाकी जगह भी प्रशिक्षण कार्य शुरू किया जायेगा। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि प्राथमिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों सहित जहां भी मानसिक रोग विशेषज्ञ नहीं हैं वहां पर मिर्गी, चिंता, उदासी, दौरा (हिस्टीरिया) जैसी बीमारियों के इलाज के लिए चिकित्सकों को एक विशेष ट्रेनिंग देकर तैनात किया जाये ताकि मरीजों को लाभ मिल सके।
डॉ पाण्डेय ने बताया कि चिकित्सकों का प्रशिक्षण शुरू होने से पहले एक बार परीक्षा ली जाती है तथा प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद फिर से परीक्षा ली जाती है, इसमें उत्तीर्ण होने वाले चिकित्सकों को ही मानसिक चिकित्सा प्रशिक्षण लेने का प्रमाण पत्र दिया जाता है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण प्राप्त इन चिकित्सकों की तैनाती पीएचसी, सीएचसी, जिला अस्पतालों में की जा रही है।
यह पूछने पर कि इसे एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में क्यों नहीं शामिल किया जा रहा है तो उन्होंने कहा कि एमसीआई का कहना है कि पहले से ही पाठयक्रम काफी है, ऐसे में और विषयों को जोड़ना तभी संभव है जब किसी विषय को हटाया जाये। डॉ पाण्डेय ने बताया कि हालांकि इंटर्नशिप के दौरान एक माह की मानसिक रोगों की चिकित्सा की ट्रेनिंग अब अनिवार्य कर दी गयी है जो कि पहले ऐच्छिक थी। हर जिला चिकित्सालय पर मानसिक रोगियों के लिए दस बेड आरक्षित किये गये हैं, साथ ही दवायें भी भेजी गयी हैं।