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सीओपीडी के 40 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है धूम्रपान

-विश्व सीओपीडी दिवस की पूर्व संध्या पर केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग ने आयोजित की पत्रकार वार्ता 

सेहत टाइम्स
लखनऊ। सीओपीडी सभी उम्र के व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है, परन्तु यह वृद्ध आबादी को अधिक प्रभावित करता है, विशेष रूप से 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में यह बीमारी प्रभावित करती है। भारत में 5.5 करोड़ से अधिक लोग सीओपीडी से पीड़ित हैं। जोखिम कारकों में प्रमुखतः धूम्रपान शामिल है, जो भारत में लगभग 40 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है।
यह जानकारी यहां केजीएमयू के पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग द्वारा विश्व सीओपीडी दिवस (19 नवम्बर) की पूर्व संध्या पर सीओपीडी की रोकथाम, उपचार और शीघ्र निदान की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित पत्रकार वार्ता में दी गयी। पत्रकार वार्ता में विभागाध्यक्ष प्रो वेद प्रकाश, रे​स्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रो0 आरएएस कुशवाहा और पीएमआर विभाग के डॉ. संदीप गुप्ता ने भाग लिया।
पत्रकार वार्ता में बताया गया कि विश्व सीओपीडी दिवस, जो इस वर्ष 19 नवंबर को मनाया जाएगा, दुनिया भर में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और सीओपीडी रोगी समूहों के सहयोग से ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (गोल्ड) द्वारा आयोजित किया जाता है। विश्व सीओपीडी दिवस 2025 की THEME: “Short of Breath? Think COPD”  “सांस फूले तो सोचिये सीओपीडी”। इस थीम का उद्देश्य सांस फूलने पर सीओपीडी की बीमारी की जाॅच एवं इसके समुचित उपचार के महत्व को प्रदर्शित करना है।
चिकित्सकों ने कहा कि खाना पकाने और हीटिंग के लिए बायोमास ईंधन का उपयोग सीओपीडी को बढ़ाता है जैसे विशेष रूप से ग्रामीण घरों में इस्तेमाल होने वाले कंडे, उपलो से होने वाला इनडोर वायु प्रदूषण सीओपीडी को ग्रासित परिवेश में हाने वाली प्रमुख बीमारी बनाता है। सीओपीडी अक्सर अन्य पुरानी बीमारियों, जैसे हृदय संबंधी स्थितियां, मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य विकारों के साथ सह-अस्तित्व में रहती है, जिससे समग्र स्वास्थ्य परिणाम और इस बीमारी का समुचित प्रबंधन जटिल हो जाता है।
बताया गया कि वर्ष 2025 में विश्व भर में 50 करोड़ से अधिक लोग सीओपीडी की बीमारी से ग्रसित रहे है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में विशेष रूप से महिलाओ में सीओपीडी की बीमारी का प्रकोप समय के साथ साथ बढने का अनुमान है। वैश्विक स्तर पर अनुमानत वर्ष 2023 तक लगभग 48 करोड़ लोग सीओपीडी से ग्रसित थे। सीओपीडी दुनिया भर में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, जो गैर-संचारी रोगों होने वाली मृत्यु दर में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

सीओपीडी क्या है?

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) फेफड़ों की एक निरंतर बढ़ने वाली बीमारी है जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इसमें क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और एम्फाइसीमा जैसी स्थितियां शामिल हैं। सीओपीडी वाले लोग अक्सर पुरानी खांसी, सांस की तकलीफ, घरघराहट और सीने में जकड़न जैसे लक्षणों का अनुभव करते हैं। यह बीमारी दैनिक जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकती है और अगर ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं।

सीओपीडी के सामान्य लक्षण

ऽ पुरानी खांसी
ऽ सांस लेनेे में तकलीफ
ऽ घरघराहट
ऽ सीने में जकडन
ऽ थकान
ऽ बार-बार श्वसन संक्रमण होना
ऽ अनपेक्षित वजन घटना
ऽ दैनिक क्रियाकलाप करने में कठिनाई होना।

सीओपीडी के कारणः

ऽ तम्बाकू धूम्रपानः सिगरेट या बीड़ी प्राथमिक कारण है।
ऽ अप्रत्यक्ष धूम्रपानः धूम्रपान न करने वालों को भी धूम्रपान के संपर्क में आने से सी0ओ0पी0डी0 होने का खतरा होता है।
ऽ व्यावसायिक प्रदूषणः कार्यस्थल के प्रदूषकों और धूल,रसायन और धुएं जैसे पदार्थों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से सी0ओ0पी0डी0 विकसित होने का खतरा बढ सकता है।
ऽ घर के अंदर वायु प्रदूषण: जलाने के लिए बायोमास ईंधन (गोबर के उपले, कोयला, लकड़ी) के उपयोग से घर के अंदर वायु प्रदूषण हो सकता है, जिसमें सी0ओ0पी0डी0 का खतरा बढ सकता है।
ऽ अनुवांशिक (जेनेटिक) कारण: अल्फा-1 एंटीट्रिप्सिन की कमी एक दुर्लभ आनुवांशिक स्थिति है जो जल्दी सी0ओ0पी0डी0 की शुरुआत का कारण बन सकती है।
ऽ बार-बार श्वसन संक्रमण: बार-बार श्वसन संक्रमण, विषेष रूप से बचपन के दौरान होने वाले संक्रमण जीवन में बाद में सी0ओ0पी0डी0 विकसित होने का खतरा बढ सकता है।
ऽ खराब सामाजिक – आर्थिक बिमारियां: स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच, और अपर्याप्त पोषण सी0ओ0पी0डी0 के विकास और प्रगति में योगदान कर सकते है।
ऽ पहले से मौजूद श्वसन संबंधी स्थितियाः अस्थमा जैसी पहले से मौजूद श्वसन संबंधी स्थितियों से पीडित व्यक्तियों में सी0ओ0पी0डी0 विकसित होने का खतरा बढ सकता है।
विशेषज्ञों ने कहा ​कि नियमित फेफड़ों के कार्य परीक्षण से सीओपीडी को प्रारंभिक चरण में पकड़ने में मदद मिल सकती है, जब यह सबसे अधिक प्रबंधनीय होता है। बीमारी के पता चलने से शीघ्र समय पर समुचित उपचार किया जा सकता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और रोग की प्रगति धीमी हो सकती है।

सीओपीडी पर वायु प्रदूषण का प्रभाव

पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ₂), और सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ₂) जैसे वायु प्रदूषकों के लगातार संपर्क से फेफड़ों में सूजन और क्षति हो सकती है, जिससे इसका खतरा बढ़ जाता है।
डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि सीओपीडी देखभाल में उत्कृष्टता प्रदान करने में पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हमारे केन्द्र पर सीओपीडी के लक्षणों वाले मरीजों की पूरी शारीरिक जांच कर के बीमारी का निदान किया जाता है। हम कड़े संक्रमण नियंत्रण प्रोटोकाल और आई0सी0यू0 स्वच्छता प्रथाओं का पालन करके वेंटिलेटर- सम्बद्ध निमोनिया (वैप) के जोखिम को 10ः से भी कम करने में सक्षम हुये है, जो कि एक उत्कृष्ट आंकड़ा है।
डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि इस मौके पर एक चर्चा का आयोजन किया गया जिसमें पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग से डॉ. सचिन कुमार, डॉ. मोहम्मद आरिफ और डॉ. अनुराग त्रिपाठी, डॉ यश जगधारी एवं डॉ रिचा त्यागी भी उपस्थित थे। चर्चा में सीओपीडी प्रबंधन में केजीएमयू की पहल, टीकाकरण के महत्व और सीओपीडी से बचाव पर जोर दिया गया। इस आयोजन ने नैदानिक उत्कृष्टता, सामुदायिक आउटरीच और सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से सीओपीडी से निपटने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

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