जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 29
प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्य बुजुर्ग बच्चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से ‘सेहत टाइम्स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्वास्थ्य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…
प्रस्तुत है 29वीं कहानी –दिखावे का पुण्यकर्म
एकादशी से अगले दिन एक भिखारी एक सज्जन की दुकान पर भीख मांगने पहुंचा। सज्जन व्यक्ति ने 1 रुपये का सिक्का निकाल कर उसे दे दिया।
भिखारी को प्यास भी लगी थी, वो बोला बाबूजी एक गिलास पानी भी पिलवा दो,गला सूखा जा रहा है। सज्जन व्यक्ति गुस्से में बोला, तुम्हारे बाप के नौकर बैठे हैं क्या हम यहां, पहले पैसे, अब पानी, थोड़ी देर में रोटी मांगेगा, चल भाग यहां से।
भिखारी बोला:-बाबूजी गुस्सा मत कीजिये मैं आगे कहीं पानी पी लूंगा। पर जहां तक मुझे याद है, कल इसी दुकान के बाहर मीठे पानी की छबील लगी थी और आप स्वयं लोगों को रोक-रोक कर जबरदस्ती अपने हाथों से गिलास पकड़ा रहे थे, मुझे भी कल आपके हाथों से दो गिलास शर्बत पीने को मिला था। मैंने तो यही सोचा था, आप बड़े धर्मात्मा आदमी है, पर आज मेरा भ्रम टूट गया।
कल की छबील तो शायद आपने लोगों को दिखाने के लिये लगाई थी। मुझे आज आपने कड़वे वचन बोलकर अपना कल का सारा पुण्य खो दिया। मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ज्यादा बोल गया हूं तो।
सज्जन व्यक्ति को बात दिल पर लगी, उसकी नजरों के सामने बीते दिन का प्रत्येक दृश्य घूम गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। वह स्वयं अपनी गद्दी से उठा और अपने हाथों से गिलास में पानी भरकर उस बाबा को देते हुए उसे क्षमा प्रार्थना करने लगा।
भिखारी – बाबूजी मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं, परन्तु अगर मानवता को अपने मन की गहराइयों में नही बसा सकते तो एक-दो दिन किये हुए पुण्य व्यर्थ है। मानवता का मतलब तो हमेशा शालीनता से मानव व जीव की सेवा करना है।
आपको अपनी गलती का अहसास हुआ,ये आपके व आपकी सन्तानों के लिये अच्छी बात है।
आप व आपका परिवार हमेशा स्वस्थ व दीर्घायु बना रहे ऐसी मैं कामना करता हूं, यह कहते हुए भिखारी आगे बढ़ गया।
सेठ ने तुरंत अपने बेटे को आदेश देते हुए कहा -कल से दो घड़े पानी दुकान के आगे आने-जाने वालों के लिए जरूर रखे हों। उसे अपनी गलती सुधारने पर बड़ी खुशी हो रही थी।
सिर्फ दिखावे के लिए किये गए पुण्यकर्म निष्फल हैं, सदा हर प्राणी के लिए आपके मन में शुभकामना, शुभ भावना हो, यही सच्चा पुण्य है।