जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 59
प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्य बुजुर्ग बच्चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्द्र सिंह के माध्यम से ‘सेहत टाइम्स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्वास्थ्य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…
प्रस्तुत है 59वीं कहानी – अपने को टटोलें
एक राह पर चलते -चलते दो व्यक्तियों की मुलाकात हुई। दोनों का गंतव्य एक था, तो दोनों यात्रा में साथ हो चले। सात दिन बाद दोनों के अलग होने का समय आया तो एक ने कहा- भाई साहब ! एक सप्ताह तक हम दोनों साथ रहे, क्या आपने मुझे पहचाना ?
दूसरे ने कहा:- नहीं, मैंने तो नहीं पहचाना।
पहला यात्री बोला:- महोदय, मैं एक नामी ठग हूँ , परन्तु आप तो महाठग हैं। आप मेरे भी गुरू निकले ।
दूसरा यात्री बोला:- कैसे ?
पहला यात्री- कुछ पाने की आशा में मैंने निरंतर सात दिन तक आपकी तलाशी ली, मुझे कुछ भी नहीं मिला। इतनी बड़ी यात्रा पर निकले हैं तो क्या आपके पास कुछ भी नहीं है ? बिल्कुल खाली हाथ हैं।
दूसरा यात्री:- मेरे पास एक बहुमूल्य हीरा है और थोड़ी-सी रजत मुद्राएं भी हैं।
पहला यात्री बोला:- तो फिर इतने प्रयत्न के बावजूद वह मुझे मिले क्यों नहीं ?
दूसरा यात्री- मैं जब भी बाहर जाता, वह हीरा और मुद्राएं तुम्हारी पोटली में रख देता था और तुम सात दिन तक मेरी झोली टटोलते रहे। अपनी पोटली संभालने की जरूरत ही नहीं समझी। तो फिर तुम्हें कुछ मिलता कहां से ?
यही समस्या हर इंसान की है। आज का इंसान अपने सुख से सुखी नहीं है। दूसरे के सुख से दुखी है, क्योंकि निगाह सदैव दूसरे की गठरी पर होती है !!
ईश्वर नित नई खुशियां हमारी झोल़ी में डालता है, परन्तु हमें अपनी गठरी पर निगाह डालने की फुर्सत ही नहीं है। यही सबकी मूलभूत समस्या है। जिस दिन से इंसान दूसरे की ताकझांक बंद कर देगा उस क्षण सारी समस्या का समाधान हो जाऐगा !!
“अपनी गठरी ही टटोलें।” जीवन में सबसे बड़ा गूढ़ मंत्र है। स्वयं को टटोलें और जीवन-पथ पर आगे बढ़ें …सफलतायें आप की प्रतीक्षा में हैं।