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चौंकाने वाले आंकड़े : 90 प्रतिशत से ज्‍यादा लोग तनाव में जी रहे

10 में से एक व्‍यक्ति रोजाना तीन घंटे से ज्‍यादा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का प्रयोग करता है
केजीएमयू के मनोचिकित्‍सा विभाग ने चार जिलों में किया सर्वेक्षण

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि 90 प्रतिशत से ज्‍यादा लोग किसी न किसी प्रकार के तनाव के शिकार हैं, तनाव के कारणों में सबसे आम कारण है वित्‍तीय कठिनाई, लेकिन अगर किशोरों की बात की जाये तो उनके तनाव का मुख्‍य कारण उनकी पढ़ाई है।

यह चौंकाने वाले आंकड़े किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय (केजीएमयू) के मनोचिकित्‍सा विभाग द्वारा उत्‍तर प्रदेश के चार जिलों में किये गये सर्वेक्षण में सामने आये हैं। मनोचिकित्‍सा विभाग द्वारा इस आंकड़ों को जारी करते हुए बताया गया है कि उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, झांसी, महाराजगंज और लखीमपुर खीरी की सामुदायिक आबादी में अपनी तरह का एक बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण किया गया है। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य 13 वर्ष से 75 वर्ष की आयु तक की सामुदायिक जनसंख्या में कथित तनाव, तनाव से मुकाबला करने की क्षमता, सामाजिक सहायता, अवसाद, चिंता और इंटरनेट की लत (सोशल मीडिया विकार) का अध्‍ययन करना था।

इस सर्वेक्षण में सभी सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों से 12,000 से अधिक जनसंख्या को शामिल किया गया। इस सर्वेक्षण ने उपरोक्त कारकों के अलावा विभिन्न जीवन शैली से संबंधित कारकों जैसे नशे का प्रयोग, मनोरंजन के साधनों को भी मापा गया। अध्‍ययन में पाया गया कि तनाव से ग्रस्‍त लोगों में 90 प्रतिशत से ज्‍यादा लोग तनाव के साथ उसका सामना करने में सक्षम थे। कम सामाजिक सहायता, चिंता, अवसाद और दिनचर्या में असंतुष्‍ट व्‍यक्तियों द्वारा अधिक तनाव का अनुभव किया गया है। किशोरों और शिक्षित लोगों द्वारा अधिक मात्रा में सामाजिक सहायता का अनुभव किया गया है।

सर्वेक्षण में पाया गया कि नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में 27.6 प्रतिशत लोग चबाये जाने वाली तम्‍बाकू, 10.6 प्रतिशत लोग धूम्रपान, 10.3 प्रतिशत लोग शराब, 0.6 फीसदी भांग या उसके प्रकार, 0.11 प्रतिशत अफीम//ओपिओइड का सेवन करने वाले पाये गये। एक तिहाई से भी कम लोग खाली समय में शा‍रीरिक गतिविधियों में लिप्‍त रहते हैं, ऐसे में जीवन शैली से संबंधित विकारों का खतरा बढ़ सकता है।

अध्‍ययन में पाया गया कि हर पांचवां व्‍यक्ति लम्‍बे समय से चली आ रही किसी न किसी बीमारी से ग्रस्‍त है, इनमें ज्‍यादातर को उच्‍च रक्‍तचाप या खून की कमी की शिकायत है। सर्वेक्षण में पाया गया कि इंटरनेट के उपयोग का सबसे आम कारण सोशल मीडिया का उपयोग है। प्रति 10 में से एक व्‍यक्ति इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का अत्‍यधिक गैर पेशेवर तरीके यानी प्रतिदिन तीन घंटे से ज्‍यादा उपयोग करता है। इंटरनेट का प्रयोग करने वाले हर छह में से एक व्‍यक्ति को सोशल मीडिया विकार होने की संभावना हो सकती है। सोशल मीडिया विकार उन व्‍यक्तियों में ज्‍यादा पाया गया जो मध्‍यम स्‍तर के तनाव का अनुभव करते हैं और अपनी दैनिक गतिविधियों से संतुष्‍ट नहीं रहते। शिक्षित, अविवाहित और उच्‍च आय वर्ग में ज्‍यादातर लोगों में दैनिक गतिविधियों को लेकर संतुष्टि देखी गयी। केवल एक चौथाई लोगों को तनाव और सं‍बंधित विकारों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सुविधाओं की उपलब्‍धता के बारे में पता था। यह सर्वेक्षण उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य प्रणाली सुदृढ़ीकरण परियोजना (UPHSSP) द्वारा समर्थित था।