-एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल केमिस्ट्री एंड लैब मेडिसिन प्रैक्टिशनर्स की नेशनल कॉन्फ्रेंस एसीसीएलएमपीकॉन 2025 की प्री सीएमई आयोजित
सेहत टाइम्स
लखनऊ। अत्याधुनिक तकनीक और उपकरणों का उपयोग करके नयी-नयी बीमारियों की शीघ्र डायग्नोसिस, गर्भावस्था में अजन्मे शिशु में होने वाले अनुवांशिक रोगों का समय रहते पता लगाने के उद्देश्य से कई स्थानों से आये विशेषज्ञों ने अपनी-अपनी जानकारियां एक सीएमई में साझा कीं। एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल केमिस्ट्री एंड लैब मेडिसिन प्रैक्टिशनर्स की नेशनल कॉन्फ्रेंस एसीसीएलएमपीकॉन 2025 से पूर्व होने वाली इस सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) का आयोजन एसोसिएशन के यूपी चैप्टर द्वारा आज 6 अक्टूबर को यहां डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में किया गया।
यह जानकारी देते हुए लोहिया संस्थान के बायोकेमिस्ट्री विभागाध्यक्ष डॉ मनीष राज कुलश्रेष्ठ ने बताया कि इस सीएमई में कई विषयों पर जानकारियां दी गयीं। उन्होंने बताया कि डॉ सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज, आगरा से आयीं बायोकेमिस्ट्री विभागाध्यक्ष, डॉ कामना सिंह ने एलआईएच सॉल्यूशन के उपयोग पर जानकारी देते हुए बताया कि लैब्स में सीमा से अधिक हीमोलिसिस तथा लाइपेमिया के सैंपल आना आम बात है। कई बार कोरी आंखों से देखने में लगता है कि नमूने में इसकी उपस्थिति नहीं है, जबकि हीमोलिसिस तथा लाइपेमिया की उपस्थिति रहती है, नतीजा यह है कि रिपोर्टिंग गलत हो जाती है, ऐसे में यदि एलआईएच सॉल्यूशन डालकर नमूना चेक किया जाये तो हीमोलिसिस तथा लाइपेमिया की उपस्थिति साफ दिख जाती है।
संस्थान के निदेशक डॉ सी एम सिंह ने कहा कि संस्थान में आईआरएफ़ होने के कारण अधिकांश जाँचे यहीं हो जाती हैं। एनजीएस जैसी उच्च सुविधा को मरीज़ों के हितार्थ संस्थान में लाने के लिए विभाग को प्रेरित किया। लोहिया संस्थान की ऑब्स एंड गायनी विभाग की एसोसियेट प्रोफेसर डॉ रूपिता कुलश्रेष्ठ ने बताया कि ड्युअल एवम क्वाड्रपल टेस्ट के माध्यम से बच्चे के पैदा होने से पहले ही डाउन सिंड्रोम, ट्राइसोमी 18, या एडवर्ड सिंड्रोम और न्यूरल ट्यूब दोष जैसी आनुवंशिक विसंगतियों का पता किया जा सकता है। संदेह की स्थिति में जेनेटिक टेस्टिंग भी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त डॉ रूपिता ने गर्भावस्था में ही हाइपरटेंसिव डिसऑर्डर्स बायोमाकर्स के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
डॉ अरविंद चौधरी, संस्थापक, कॉर्डन जीनोमिक्स ने विस्तारपूर्वक बताया कि जेनेटिक जाँचों के माध्यम से संक्रामक रोगों को समय से पहचाना जा सकता है।ये जाँचे फ़िलहाल थोड़ी महँगी होती हैं परंतु समय पर रोग पहचान होने से मरीज़ को हॉस्पिटल में कम समय बिताना होगा जिससे अंततोगत्वा मरीज़ को आर्थिक एवं शारीरिक सुविधा होगी।
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ से आए एसोसियेट प्रोफेसर डॉ राघवेंद्रन लिंघाइया ने मास स्पेक्ट्रोमेट्री को भविष्य की बायोकेमिस्ट्री प्रयोगशालों के लिए अपरिहार्य बताया क्योंकि ये मशीनें बहुत ही संवेदनशील होती है और मिलते-जुलते सूक्ष्म अणुओं में भी भेद करने में सक्षम होती हैं। यहाँ तक कि कैंसर डायग्नोसिस में भी यह तकनीक काफ़ी कारगर है।
इस अवसर पर जाने माने वरिष्ठ पल्मोनोलोजिस्ट डॉ राजेंद्र प्रसाद भी उपस्थित रहे, उन्होंने बताया कि किस प्रकार नयी निदान सुविधाओं द्वारा ब्रांकोपल्मोनरी एस्पेरिजिलोसिस जैसे भयावह किंतु उपचार किए जा सकने योग्य फंगल इन्फेक्शन को पहचाना जा सकता है। कुछ वर्ष पूर्व यह तकनीक ना होने के कारण इसे टीबी या कैंसर से पृथक करना काफ़ी मुश्किल था। इसके अतिरिक्त उन्होंने कंपोनेंट रेसोल्वड डायग्नॉस्टिक्स का भी ज़िक्र किया, उदाहरणार्थ यदि किसी व्यक्ति को दूध के किसी ख़ास घटक से एलर्जी है तो जाँच द्वारा इसका पता लगाया जा सकता है और संभव है कि वह व्यक्ति दूध को उबालकर अथवा दूध से कुछ ख़ास प्रकार के व्यंजनों का सेवन कर सकता है।
डॉ प्रभात, एसोसियेट प्रोफेसर, एम्स, गोरखपुर ने बताया कि सामान्य दिखने वाले नवजात शिशु भी आनुवंशिक बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने आईसीएमआर के निदान प्रोजेक्ट के विषय में ज्ञानवर्धन किया। यदि इन बीमारियों का जन्म के समय ही पता लगा लिया जाये तो बच्चों का मानसिक विकास अवरुद्ध होने से बचाया जा सकता है।
प्रोफेसर अरुण कुमार हरित, अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़, फ़रीदाबाद ने हीमोग्लोबिन विसंगतियों में HbA1C मापने के लिये capillary इलेक्ट्रोफ़ोरेसिस जैसी नयी तकनीक के महत्व का वर्णन किया। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर संस्थान से एसोसियेट प्रोफेसर डॉ प्रतिभा गावेल ने कैंसर के मरीज़ों में दवाओं के टॉक्सिक लेवल का पता करने हेतु जाँच पर बल दिया।
बायोकेमिस्ट्री विभागाध्यक्ष डॉ मनीष राज कुलश्रेष्ठ तथा सीनियर प्रोफेसर डॉ वंदना तिवारी ने बताया कि इनमें से नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग (एनजीएस) को छोड़कर अधिकांश सुविधाएँ संस्थान में मौजूद हैं तथा एनजीएस के लिए प्रक्रिया भी चल रही है।