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एसजीपीजीआई के डॉ अमित गोयल के रिसर्च पेपर को मिला सर्वश्रेष्ठ मौलिक शोध पत्र पुरस्कार

-नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग में भारत की स्थिति पर तैयार किया है शोध पत्र

-हर तीसरा व्यक्ति नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर का शिकार, बच्चे व बड़े दोनों शामिल

 

सेहत टाइम्स

लखनऊ। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान एसजीपीजीआई में हेपेटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. अमित गोयल ने फैटी लिवर रोग, विशेष रूप से नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इंडियन नेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ द लिवर (INASL) ने फैटी लिवर रोग पर उनके कार्य को मान्यता देते हुए उन्हें “भारत में नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग की व्यापकता : एक व्यवस्थित समीक्षा और मेटा-विश्लेषण” शीर्षक वाले उनके शोध पत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ मौलिक शोध पत्र पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया है। इस शोध पत्र में फैटी लिवर रोग पर सभी भारतीय लेखों का सारांश प्रस्तुत किया गया और यह निष्कर्ष निकाला गया कि देश में हर तीन में से एक व्यक्ति इस स्थिति से पीड़ित है। इसमें यह भी पाया गया कि भारत में हर तीन में से एक बच्चा इससे प्रभावित है। उनके कार्य को विश्व स्तर पर व्यापक रूप से उद्धृत किया गया है।

यह जानकारी संस्थान के मीडिया सेल द्वारा जारी विज्ञप्ति में देते हुए बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर लिवर की बीमारियों में गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (NAFLD) के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। भारत की बात करें तो जीवनशैली में बदलाव, उच्च कार्बोहाइड्रेट आहार, मोटापा और मधुमेह के कारण भारत फैटी लिवर के मामलों में तेज़ी से दुनिया का अग्रणी देश बनता जा रहा है। नियमित जाँच होने तक अक्सर इसका पता नहीं चल पाता, जिससे यह शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में एक चुपचाप बढ रही महामारी बन गया है।

इस रोग के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, भारत सरकार ने NAFLD की जाँच और प्रबंधन को राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग कार्यक्रम में शामिल किया है, और अस्पताल शीघ्र पहचान के लिए फाइब्रोस्कैन जैसे उपकरणों का उपयोग बढ़ा रहे हैं।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि एसजीपीजीआईएमएस का हेपेटोलॉजी विभाग जागरूकता और रोकथाम संबंधी पहलों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देता है। विभाग फाइब्रोस्कैन के साथ-साथ विभिन्न रक्त परीक्षण भी प्रदान करता है, जिससे फैटी लिवर रोग का गैर-आक्रामक और शीघ्र पता लगाना संभव हो जाता है, जो फाइब्रोसिस, सिरोसिस, लिवर फेलियर और हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा जैसी अधिक गंभीर लिवर स्थितियों को बढ़ने से रोकने में महत्वपूर्ण है।

पूरे हेपेटेलॉजी समुदाय को समर्पित किया सम्मान

डॉ. गोयल ने अपनी शोध टीम, सहयोगियों और एस जी पी जी आई एम एस के प्रति उनके अटूट समर्थन के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा, “यह सम्मान केवल मेरे लिए नहीं, बल्कि भारत में लिवर रोगों के समाधान के लिए अथक प्रयास कर रहे पूरे हेपेटोलॉजी समुदाय के लिए है।”

डॉ. गोयल की उपलब्धि भारत में लिवर रोग अनुसंधान में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए एसजीपीजीआईएमएस की प्रतिबद्धता का प्रमाण है, क्योंकि यह राज्य में अपनी तरह का एकमात्र समर्पित हेपेटोलॉजी विभाग है। यह नैदानिक देखभाल, अनुसंधान और शैक्षणिक उत्कृष्टता में निरंतर मानक स्थापित कर रहा है।

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