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कपड़ों का आदर

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 68 

डॉ भूपेन्‍द्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 68वीं कहानी –  कपड़ों का आदर

एक बार की बात है किसी गांव में एक पंडितजी रहते थे।  वैसे तो पंडित जी को वेदों और शास्त्रों का बहुत ज्ञान था लेकिन वह बहुत ग़रीब थे। ना ही रहने के लिए अच्छा घर था और ना ही अच्छे भोजन के लिए पैसे|

एक छोटी सी झोपड़ी थी, उसी में रहते थे और भिक्षा मांगकर जो मिल जाता उसी से अपना जीवन यापन करते थे।

एक बार वह पास के किसी गांव में भिक्षा मांगने गये, उस समय उनके कपड़े बहुत गंदे थे और काफ़ी जगह से फट भी गये थे।

जब उन्होंने एक घर का दरवाजा खटखटाया तो सामने से एक व्यक्ति बाहर आया, उसने जब पंडित को फटे-चिथड़े कपड़ों में देखा तो उसका मन घृणा से भर गया और उसने पंडित को धक्के मारकर घर से निकाल दिया, बोला- पता नहीं कहां से गंदा पागल चला आया है।

पंडित दुखी मन से वापस चला आया, जब अपने घर वापस लौट रहा था तो किसी अमीर आदमी की नज़र पंडित के फटे कपड़ों पर पड़ी तो उसने दया दिखाई और पंडित को पहनने के लिए नये कपड़े दे दिए।

अगले दिन पंडित फिर से उसी गांव में उसी व्यक्ति के पास भिक्षा मांगने गया। व्यक्ति ने नये कपड़ों में पंडित को देखा और हाथ जोड़कर पंडित को अंदर बुलाया और बड़े आदर के साथ थाली में बहुत सारे व्यंजन खाने को दिए।  पंडित जी ने एक भी टुकड़ा अपने मुंह में नहीं डाला और सारा खाना धीरे-धीरे अपने कपड़ों पर डालने लगे और बोले- ले खा और खा।

व्यक्ति यह सब बड़े आश्चर्य से देख रहा था, आख़िर उसने पूछ ही लिया कि- पंडित जी आप यह क्या कर रहे हैं सारा खाना अपने कपड़ों पर क्यूं डाल रहे हैं|

पंडित जी ने बहुत शानदार उत्तर दिया- क्यूंकि‍ तुमने ये खाना मुझे नहीं बल्कि इन कपड़ों को दिया है इसीलिए मैं ये खाना इन कपड़ों को ही खिला रहा हूं, कल जब मैं गंदे कपड़ों में तुम्हारे घर आया तो तुमने धक्के मारकर घर से निकाल दिया और आज तुमने मुझे साफ और नये कपड़ों में देखकर अच्छा खाना पेश किया।  असल में तुमने ये खाना मुझे नहीं, इन कपड़ों को ही दिया है, वह व्यक्ति यह सुनकर बहुत दुखी हुआ|

मित्रों, किसी व्यक्ति की महानता उसके चरित्र और ज्ञान पर निर्भर करती हैं पहनावे पर नहीं। अच्छे कपड़े और गहने पहनने से इंसान महान नहीं बनता उसके लिए अच्छे कर्मों की ज़रूरत होती है।  यही इस कहानी की प्रेरणा है।

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