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क्वारेंटाइन खत्म करने व 14 दिन की ड्यूटी के विरोध में रेजीडेंट्स डॉक्टर भी, 29 मई से बांधेंगे काला फीता

– कर्मचारी संघों के साथ आयी एसजीपीजीआई की रेजीडेंट्स डॉक्‍टर्स एसोसिएशन

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। कोविड-19 महामारी के दौर में 14 दिन की लगातार ड्यूटी तथा उसके बाद क्‍वारेंटाइन खत्‍म करते हुए दो दिन के रेस्‍ट के बाद फि‍र 14 दिन की ड्यूटी के नये आदेश के विरोध में संजय गांधी पीजीआई की रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन भी खुलकर सामने आ गई है। एसोसिएशन ने साफ कह दिया है की इस मुद्दे पर उनकी एसोसिएशन कर्मचारी संघों के साथ खड़ी है तथा इस पर गांधीवादी तरीके से शुक्रवार से ही काला फीता बांधकर विरोध शुरू कर दिया जाएगा।

एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ आकाश माथुर ने आज यहां पत्रकारों से जूम ऐप के माध्‍यम से कहा कि अमेरिका में 3 मई तक लगभग 1.1 मिलियन लोग कोरोना का शिकार हुए जिसमें लगभग 9200 स्वास्थ्य कर्मी थे इसका अर्थ यह हुआ कि हर 1000 मरीजों में 8 स्वास्थ्य कर्मी हैं, भारत में यही आंकड़ा प्रति 1000 मरीजों पर 19 स्वास्थ्य कर्मियों का है जो कि अमेरिका से 2.5 गुना ज्यादा है जबकि अमेरिका में भारत से 50 गुना ज्यादा कोरोना के मरीज हैं उन्होंने कहा ऐसे में स्पष्ट रूप से हम अपने स्वास्थ्य कर्मियों को अधिक जोखिम में डाल रहे हैं।

उन्‍होंने कहा कि ऐसे में क्वॉरेंटाइन खत्म करने का निर्णय स्वास्थ्य कर्मियों के लिए और मुश्किलें खड़ी कर देगा। उन्होंने कहा मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि एम्स नई दिल्ली में ही स्वास्थ्य कर्मियों में कोरोना के 195 मामले सामने आ चुके हैं जिनमें 2 लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं, ऐसे में वर्तमान नीति के अनुसार क्वॉरेंटाइन खत्म किया जाना निश्चित ही प्रदेश के हित में नहीं है।

एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी डॉ अनिल गंगवार ने कहा कि कोरोना जैसी बड़ी महामारी के उपचार में लगे हमारे उत्तर प्रदेश में अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू यानी रेजिडेंट डॉक्टर एवं नर्सिंग कर्मियों की सुरक्षा एवं उन्हें संक्रमण से बचाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के कुशल नेतृत्व में अभी तक तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छी तरह से इस महामारी को संभाला गया है उन्होंने इसकी तुलना महाराष्‍ट्र से करते हुए कहा कि वहां की जनसंख्या उत्तर प्रदेश से आधी है जबकि वहां कुल सक्रिय केस उत्तर प्रदेश से 10 से 12 गुना ज्यादा हैं।

उन्होंने कहा कि कोरोना वार्ड में ड्यूटी करने के बाद अपने बूढ़े मां-बाप जिसमें से अधिकतर शुगर, किडनी, हृदय रोगी हैं, के साथ ही छोटे बच्चों तथा अन्य परिवार जनों के स्‍वास्‍थ्‍य को जोखिम में डालना किस तरह न्यायोचित माना जा सकता है। डॉ गंगवार ने कहा कि कोरोना ड्यूटी के बाद सीधे नॉन कोविड ड्यूटी पर स्वास्थ्य कर्मी को लगाये जाने से मरीजों को संक्रमण का बहुत खतरा रहेगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान नीति के अंतर्गत पीपीई ब्रीच होने पर ही व्यक्ति को क्‍वारेंटाइन किया जाएगा जबकि यह देखा गया है कि अब तक जितने भी स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित हुए हैं उनमें से किसी का भी पीपी ब्रीच हुआ हो ऐसा उन्होंने रिपोर्ट नहीं किया है।

एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉक्टर श्रुति ने कहा कि दूसरा बड़ा मुद्दा है 14 दिन लगातार ड्यूटी करने का। उन्‍होंने कहा कि पीपीई किट पहनकर इस गर्मी में ड्यूटी करना आसान नहीं है। लगातार 7 दिन तक ड्यूटी कर लोग जिस तरह की थकान का अनुभव करते हैं उसके साथ 7 दिन और ड्यूटी करना मरीजों के हित में नहीं है। लगातार 16 से 18 घंटे प्रतिदिन मरीजों की सेवा सुश्रुषा में लगे रहने वाले यदि यह सोचते हैं कि 7 दिन से ज्यादा ड्यूटी मानवीय रूप से संभव नहीं है तो उस भावना की कद्र की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि सभी डॉक्टर कुछ दिन बाद वापस 7 दिन ड्यूटी करने के लिए सहर्ष तैयार हैं, ऐसे में 14 दिन का रोस्टर बनाना समझ से परे है इस मामले में शासन से आग्रह है कि तुरंत संज्ञान लें तथा इस मुद्दे पर मरीजों के हित में 7 दिन ड्यूटी तथा उसके बाद 14 दिन का क्वॉरेंटाइन जारी रखा जाए तत्पश्चात जरूरत पड़ने पर या को रोना मरीज बढ़ने पर इस स्थिति पर पुनरावलोकन किया जा सकता है। देश के विभिन्न कोनों में लगातार ड्यूटी कर रहे डॉक्टर पीटीएसडी यानी पोस्‍ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण भी देखे जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य कर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी इस तरह लगातार 14 दिन की ड्यूटी ठीक नहीं है उन्होंने कहा डॉक्टर्स एसोसिएशन इस मुद्दे पर सभी कर्मचारी संघों के साथ खड़ी है तथा इस मुद्दे पर कल यानी शुक्रवार से ही आंदोलन की शुरुआत की जाएगी गांधीवादी तरीकों से विरोध की अपनी परंपरा के अनुरूप सर्वप्रथम शुक्रवार से काली पट्टी बांधकर काम किया जाएगा।